Monetary Policy: RBI मौद्रिक नीति समिति की बैठक टली, नई तारीखों की घोषणा जल्द

मंगलवार, 29 सितंबर को शुरू होनी थी रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की 3 दिन तक चलने वाली बैठक

Updated: Sep 29, 2020, 01:48 AM IST

Photo Courtesy: Financial Express
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नई दिल्ली। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की मंगलवार 29 सितंबर को शुरू होने वाली बैठक टल गई है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई में होने वाली इस समिति की बैठक तीन दिन तक चलने वाली थी। इस बैठक में ब्याज दरों में बदलाव पर विचार-विमर्श होना था। रिजर्व बैंक ने बयान जारी कर बताया है कि शीघ्र ही नई तारीखों की घोषणा होगी। हालांकि बयान में बैठक स्थगित करने की कोई वजह नहीं बताई गई है।

रिजर्व बैंक के बयान में कहा गया है,"मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 29 सितंबर, 30 और अक्टूबर 1, 2020 की बैठक को पुनर्निर्धारित किया जा रहा है। एमपीसी की बैठक की नई तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी।"

 

 

और कम हो सकती हैं ब्याज दरें
अगस्त में एमपीसी की पिछली बैठक में रिजर्व बैंक ने महंगाई में तेज़ी को काबू में रखने के इरादे से नीतिगत ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया था। हालांकि उसके बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि मॉनेटरी पॉलिसी में अभी और कदम उठाने की गुंजाइश है, लेकिन हमें इन उपायों का इस्तेमाल समझदारी से करना होगा। शक्तिकांत दास यह भी कह चुके हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए वे हर कदम उठाने को तैयार हैं। विशेषज्ञ इसे दरों में कटौती की संभावना का संकेत मानकर चल रहे हैं। फरवरी से अब तक रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में 1.15 फीसदी की कटौती कर चुका है।

ब्याज दरों में कटौती से क्या लाभ होगा
चालू कारोबारी पहली तिमाही में देश की जीडीपी विकास दर भयानक रूप से गिरकर माइनस 23.9 फीसदी हो चुकी है। ऐसे में रिजर्व बैंक पर विकास दर में सुधार लाने का दबाव है। विशेषज्ञों का कहना है कि त्योहारों से पहले ब्याज़ दरों में कटौती से बाज़ार में मांग की स्थिति में सुधार लाने में मदद मिल सकती है। खासतौर पर गाड़ियों और इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स की मांग में इससे कुछ तेज़ी आ सकती है।

असल ज़रूरत लोगों की जेब में पैसे डालने की है

हालांकि जानकारों का ये भी मानना है कि इकॉनमी की मौजूदा हालत में ब्याज दरों में कटौती, सस्ते और आसान कर्ज मुहैया कराने जैसे मॉनेटरी उपायों से होने वाले लाभ की एक सीमा है। इसकी जगह अगर सरकार लोगों की जेब में सीधे पैसे डालने और रोज़गार बढ़ाने वाले कदम उठाने पर खर्च करे, यानी फिस्कल पॉलिसी से जुड़े बड़े कदम उठाए, तो इकॉनमी को ज़्यादा फायदा हो सकता है।