MSP की मांग पर FCI का हथौड़ा, गुणवत्ता को लेकर सख्ती ने बढ़ाई किसानों की चिंता

क्या बैकडोर से MSP पर प्रहार करना चाहती है सरकार, FCI के नए प्रस्तावों में गेहूं खरीद में नमी को 14 फीसदी से घटाकर 12 करने की बात, विशेषज्ञों ने बताया किसान विरोधी

Updated: Jan 13, 2022, 05:27 AM IST

भोपाल। कृषि कानूनों की वापसी के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग तेज हो गयी है। सरकार ने भी कमेटी गठित कर एमएसपी पर विचार करने का आश्वासन दिया है। लेकिन इसी बीच किसानों की फसल खरीद में सख़्त नियम लाने का प्रस्ताव सत्ता के गलियारों में घूम रहा है। भारतीय खाद्य निगम यानी FCI कुछ नए प्रस्ताव लेकर आई है जिसे एमएसपी की मांग पर प्रहार के रूप में देखा जा रहा है।

FCI के नये प्रस्ताव का जो ड्राफ्ट है उसमें अधिकांश पैरामीटर्स ऐसे हैं जिसे किसान पूरा नहीं कर सकते। नए प्रस्‍तावों में गेहूं खरीद में नमी को 14 फीसदी घटाकर 12 फीसदी करने का प्रस्ताव है। गेहूं का नमी कम करना किसानों के हाथ में नहीं है। गेहूं में दूसरे अनाज की मात्रा को 2 फीसदी से घटाकर 0.5 फीसदी करने का प्रस्ताव है। किसानों का कहना है कि वे जानबूझकर दूसरा अनाज नहीं मिलते, बल्कि वे पानी के बहाव के साथ खेतों में जाते हैं और कटाई के दौरान गेहूं से मिल जाते हैं। गेहूं का टूटा दाना की मात्रा को भी 4 फीसदी से घटाकर 2 फीसदी कर दिया गया है। किसानों का कहना है कि अब मशीनों से गेहूं निकाला जाता है ऐसे में दानों का टूटना स्वाभाविक है। 

इसी तरह धान के पैरामीटर्स में भी बदलाव किए गए हैं। धान की खरीद में नमी को 17 घटाकर 16 प्रतिशत किया गया है। इसके अलावा धान में पहले दो फीसदी कंकड़-मिट्टी लिया जाता था जिसे अब 1 फीसदी कर दिया गया है। लेकिन गेहूं की तरह धान में भी कटाई के दौरान कंकड़ पत्थर आना स्वाभाविक है। किसानों का कहना है कि वे जानबूझकर कंकड़ नहीं मिलाते। साथ ही पहले टूटा दाना जो पांच फीसदी तक स्वीकार किया जाता था उसे 3 फीसदी कर दिया गया है।

FCI का कहना है कि नए प्रस्तावों में फसल खरीदी के दौरान नमी कम रखने व अन्य नियम गुणवत्ता अच्छी करने के लिए लाए गए हैं। इसके पीछे तर्क ये है कि लोगों को अच्छी गुणवत्ता का खाद्यान्न मिले। यदि क्वॉलिटी अच्छी होगी तो उसे लंबे वक्त तक रखा भी जा सकता है। हालांकि, कृषि विशेषज्ञ बता रहे हैं कि ये MSP पर एक और वार है।

कृषि विशेषज्ञ व किसान नेता केदार शंकर सिरोही का कहना है कि कृषि कानूनों को लेकर बैकफुट पर आने के बाद अब सरकार बैकडोर से उन कानूनों को थोपने का प्रयास कर रही है। इसी का नतीजा है कि किसानों का कमर तोड़ने के लिए FCI ने ऐसे प्रस्ताव बनाए हैं। उपज बिक्री के समय FCI के जो गाइडलाइन हैं उसका पालन करना होता है। लेकिन हर बात में किसानों पर शिकंजा कसना, कभी मॉश्चयर के नाम पर तो कभी क्वॉलिटी के नाम ये कहां तक उचित है। सरकार बिल्कुल किसान विरोधी कायदे कानून बना रही है।