पेसा कोऑर्डिनेटर्स की नियुक्ति में हुआ घोटाला, सिर्फ आरएसएस कार्यकर्ताओं के चयन पर आदिवासी नेताओं ने खोला मोर्चा

मेरिट को दरकिनार कर BJP-RSS वर्कर बनाए गए PESA कॉर्डिनेटर, यूथ कांग्रेस अध्यक्ष डॉ विक्रांत भूरिया ने की सीबीआई जांच की मांग, कई जिलों में जयस का विरोध प्रदर्शन

Updated: Mar 12, 2023, 01:59 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में चुनाव पूर्व बड़ा घोटाला सामने आया है। राज्य में 119 पेसा कॉर्डिनेटर्स की भर्ती में बड़े स्तर पर धांधली के आरोप लगे हैं। पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती में हुई अनिमितताओं के विरुद्ध कांग्रेस, जयस व अन्य संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस ने जहां मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है, वहीं जयस ने नियुक्तियां रद्द करने की मांग को लेकर चरणबद्ध तरीके से आंदोलन शुरू कर दिया है।

मप्र में (हाल ही में लागू किए गए) PESA Act को लेकर जागरुकता अभियान चलाने और क्रियान्वयन के लिए पेसा समन्वयकों की नियुक्तियां की गई हैं। प्रदेश के 89 आदिवासी बाहुल्य ब्लॉकों में ब्लॉक कॉर्डिनेटर्स और 20 जिलों में जिला कॉर्डिनेटर्स को चुना गया। आरोप है कि इन नियुक्तियों में अधिकांश कॉर्डिनेटर आरएसएस के स्वयंसेवक हैं। 

युवा आदिवासी नेता डॉ विक्रांत भूरिया ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रदेश में आदिवासियों के हित में लायी गयी पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती योजना बड़े घोटाले में तब्दील हो गई है। प्रदेश के 89 आदिवासी बाहुल्य ब्लॉकों में पेसा कानून के प्रचार-प्रसार के लिए प्रदेश सरकार ने आवेदन बुलाए थे। आवेदकों से 500 से 600 रुपए प्रति आवेदक फीस वसूली गई। जिससे सरकार को एक करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। इंटरव्यू के लिए आवेदकों की मेरिट लिस्ट तैयार की गई। जिसमें से 890 आवेदकों को छांटकर फरवरी-2022 में इंटरव्यू के लिए बुलाया भी गया, लेकिन बिना कारण बताए इंटरव्यू कैंसिल कर दिए गए।

यूथ कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. भूरिया का आरोप है कि बिना कोई इंटरव्यू लिए एमपीकॉन के माध्यम से गोपनीय तरीके से एक विचारधारा विशेष से जुड़े 89 ब्लाक और 20 डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर के पद भर दिए गए। इन चयनित संघ के लोगों को अब सरकारी खजाने से वेतन दिया जाएगा। जहां 25 हजार रुपए मासिक वेतन ब्लॉक कॉर्डिनेटर्स के लिए और 45 हजार डिस्ट्रिक कॉर्डिनेटर के लिए तय किया गया है। भूरिया ने आरोप लगाया कि ये चयनित लोग पेसा कानून का प्रचार करने की बजाय भाजपा के चुनावी बूथ मैनेजमेंट का काम करेंगे। भाजपा सरकार ने शिक्षित बेरोजगार युवाओं के साथ छल किया है। भूरिया ने पूछा है कि जो 119 नियुक्तियां हुईं, उसमें एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया। क्या एक भी महिला इस पद के काबिल नहीं थी?

भूरिया ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि पेसा कोऑर्डिनेटर्स के लिए व्यापमं/कर्मचारी चयन आयोग एवं लोक सेवा आयोग से चयन न करवाते हुए आउटसोर्सिग एजेंसी एमपीकॉन को माध्यम क्यों बनाया गया? उन्होंने मांग करते हुए कहा कि एमपीकॉन द्वारा कराई गई अब तक की भर्तियों की सीबीआई से जांच कराई जाए। भूरिया ने पूछा कि जिन लोगों के चयन हुए हैं उन सभी के सोशल मीडिया, फेसबुक अकाउंट भाजपा और संघ विचारधारा से ही क्यों जुड़े हुए पाए जाते हैं। उन्होंने मांग की है कि गोपनीय तरीके से की गई इन भर्तियों को निरस्त कर पुनः नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए। साथ ही इस प्रक्रिया में आरक्षण के तहत महिलाओं को भी अवसर प्रदान किया जाए।

पेसा समन्वयकों की नियुक्तियों को लेकर आदिवासी संगठन ‘जयस’ के कार्यकर्ताओं ने भी मोर्चा खोल रखा है। जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और मनावर विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने इस मामले को विधानसभा में उठाने का ऐलान किया है। साथ ही जयस कार्यकर्ता जिला और ब्लॉक स्तर पर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। व्यापमं घोटाले के व्हिसलब्लोअर डॉ आनंद राय ने कई कॉर्डिनेटर्स की तस्वीरें भी साझा की हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि वे आरएसएस का गणवेश धारण किए हुए हैं। खास बात ये है कि इस मुद्दे पर जयस के सभी गुट एकजुट होकर शिवराज सरकार का विरोध कर रहे हैं।

मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा, "जब 2023 का चुनाव निकट आया तो सरकार को PESA याद आया। PESA क़ानून लागू करने के लिए आदिवासी युवकों को कॉर्डिनेटर नियुक्त करने की योजना बनाई। लेकिन भर्ती में योग्य आदिवासी युवक-युवतियों को नियुक्त करने की बजाय नियमों के विरूद्ध अपने चहेते राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भर्ती करने का षड्यंत्र किया गया। लेकिन सचेत आदिवासी युवकों ने इनका षड्यंत्र उजागर कर दिया।"

यह मसला इसलिए बड़ा रूप ले रहा है क्योंकि राज्य में लगभग बाइस फीसदी आदिवासियों की जनसंख्या पर दोनों ही राजनीतिक दलों की निगाह है। पिछले कुछ वर्षों में आदिवासी समाज के बीच सेंध लगाने में बीजेपी ने ऐडी चोटी एक कर दी है क्योंकि प्रदेश की सैंतालीस सीटों पर उसकी पकड़ अब तक ज्यादा मजबूत नहीं रही है। हालांकि इन नियुक्तियों ने आदिवासियों के मन में बीजेपी के पक्षपातपूर्ण रवैय्ये को और हवा दे दी है।