MP: शासकीय अस्पताल में नहीं मिला इलाज, पिता को कंधे पर लेकर कांग्रेस MLA के पास पहुंची बेबस बेटी

पिता को इलाज देने के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर बेटी, मदद की आस में कांग्रेस विधायक के पास पहुंची युवती, भाजपा शासन में आदिवासी समाज की पीड़ा देख भावुक हुए विधायक ओमकार सिंह मरकाम

Updated: Feb 02, 2023, 01:31 PM IST

डिंडौरी। मध्य प्रदेश के डिंडौरी एक विचलित कर देने वाली तस्वीर सामने आई है। यहां एक बेटी अपने बीमार पिता को कंधे पर लेकर इलाज के लिए इधर उधर भटकती रही क्योंकि शासकीय अस्पताल में न बिस्तर मिला न इलाज। अंत में पिता को कंधे पर लेकर वह मदद की आस में विपक्षी विधायक ओमकार सिंह मरकाम के पास पहुंची। इसके बाद कांग्रेस विधायक ने यथासंभव मदद कर इलाज शुरू कराया। भाजपा शासन में आदिवासी समुदाय के लोगों की पीड़ा देख मरकाम भी भावुक नजर आए। 

दरअसल, डिंडौरी जिले के अमरपुर विकासखंड के बिलगांव के रहने वाले शिव प्रसाद वनवासी पिछले सात महीने से गैंगरीन से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया कि वह तीन महीने पहले बीमार पत्नी सोमती बाई का इलाज कराने भोपाल गए थे। लेकिन बेहतर इलाज की अभाव में पत्नी की मौत हो गई। अब उनकी भी स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। बेटी रंजीता बाई और बेटा राजकुमार इलाज के लिए दर-दर भटक रहे थे।

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पिता को बेहतर इलाज मिल सके इस उम्मीद से बेटी रंजिता उन्हें लेकर जबलपुर गई थी। लेकिन यहां इलाज तो दूर उन्हें बिस्तर भी नसीब नहीं हुई। बेटी कलेक्टर के पास मदद मांगने गई लेकिन कोई सहायता नहीं मिली। स्थिति यह हुई कि चार दिनों तक कड़ाके की ठंड में वे एक पेड़ के नीचे बैठे रहे। रोज अस्पताल जाते फिर भी किसी ने एडमिट नहीं किया।

इसके बाद रंजिता अपने पिता को लेकर डिंडोरी पहुंची ताकि प्राथमिक इलाज भी मिल सके। लेकिन यहां भी उन्हें इलाज नहीं मिला। रंजिता आंखों में बेबसी के आंसू और कंधे पर बीमार पिता को लेकर अंत में कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम के पास पहुंची। उनकी पीड़ा देख मरकाम भी भावुक हो गए। उन्होंने तत्काल एक एंबुलेंस की व्यवस्था की और जिला अस्पताल लेकर गए। साथ ही रंजिता को आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाई।

मरकाम ने बताया कि पीड़ित को बेहतर इलाज के लिए बाहर भेजना होगा। इसके लिए वह निजी स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने भावुक होकर कहा कि, "आज ये बेटी अपनी पिता की जान बचाने के लिए एक आस लेकर मेरे पास आई है। मैं ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि एक आस के रूप में इन्होंने मुझे चुना। मैं इन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता।"

मरकाम ने आगे कहा कि, "मामा के राज मे लाचार पिता को पीठ मे लेकर भांजिया दर-दर भटक रही है, लेकिन इलाज नहीं मिल रहा। प्रदेश स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट हो गई है। इनमें न तो मानवता बची है और न ही शर्म बची है। आदिवासी समुदाय के मद में खर्च होने वाले रुपए ये इवेंट में खर्च कर देते हैं। बड़े बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन असलियत यही है कि पढ़ने की उम्र में एक बेटी अपने पिता की जान बचाने के लिए कितने कष्ट झेल रही है। झूठे शिवराज इस बेटी का दर्द नहीं समझेंगे। लेकिन हम अपने लोगों को बेसहारा तो नहीं छोड़ सकते। भले हमारी सरकार नहीं हो लेकिन जो बन पड़ेगा हम निजी स्तर पर करेंगे।"