बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लौटे दिग्विजय सिंह ने CM को लिखा पत्र, तबाही में उजड़े लोगों को राहत, पुनर्वास और मुआवज़े की मांग

दिग्विजय सिंह ने अपने पत्र में नर्मदा में बाढ़ के लिए एमपी सीएम शिवराज चौहान को ज़िम्मेदार बताया है। साथ ही उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पर भी आरोप लगाया है कि पीएम का जन्मदिन मनाने की ख़ातिर उन्होंने सरदार सरोवर डैम के गेट समय पर नहीं खोले और ओंकारेश्वर से बड़वानी तक तमाम इलाक़े डूब की चपेट में आ गए

Updated: Sep 29, 2023, 07:01 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में इस महीने नर्मदा नदी के तटीय इलाकों में उत्पन्न हुई बाढ़ की स्थिति ने रहवासियों को खासा नुकसान पहुंचाया है। बाढ़ग्रस्त जिलों में स्थिति का जायजा व नुकसान का आंकलन कर वापस लौटे दिग्विजय सिंह ने सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर आंखों देखा मंजर बताया है। राज्यसभा सांसद ने इस विभीषिका को बयां करते हुए लिखा है कि राजनैतिक लाभ के लिए लोगों की जान को जोखिम में डाला गया। जिससे नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले हजारों किसानों, मजदूरों और व्यापारियों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने इसे मानव निर्मित आपदा करार देते हुए हाईकोर्ट के सिटिंग या सेवानिवृत्त जज से जांच कराने की मांग की है।

सीएम शिवराज सिंह चौहान को संबोधित खुला पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने लिखा है कि, 'राजनैतिक लाभ के लिये नर्मदांचल में निमाड़ क्षेत्र में रहने वाले हजारों लोगों के घर उजाड़ने वाली दो घटनाओं की सिटिंग या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज से जांच कराये जाने के लिये मैं आपको यह खुला पत्र लिख रहा हूँ। ताकि वोटों की खातिर लाखों परिवारों को तबाह करने वालों का काला चेहरा सामने आ सके। यह मध्यप्रदेश के ज्ञात इतिहास की निंदनीय घटना है, जिसमें लोगों की जान जोखिम में डालकर मॉ नर्मदा के किनारे रहने वाले हजारों किसानों, मजदूरों और व्यापारियों को तबाह कर दिया गया।'

सिंह ने लिखा है कि, 'पहली घटना तब हुई जब आदिगुरू शंकराचार्य जी की प्रतिमा का अवलोकन करने आप 15 सितंबर 2023 को ओंकारेश्वर जाने वाले थे, तब शीर्ष स्तर के अधिकारियों ने आप की ठकुरसुहाती करने की गरज से पवित्र नगरी ओंकारेश्वर के तट पर बसे लोगों की परवाह नही की और नर्मदा का जल स्तर बढ़ने के बाद भी बांध से निर्धारित मात्रा में पानी नही छोड़ा। जिससे आपकी शान और कार्यक्रम में कोई खलल न पड़े। लेकिन पानी बढ़ने पर 15 सितंबर की रात में बिना पूर्व सूचना और चेतावनी के ओंकारेश्वर बांध के गेट खोल दिये गये। सामान्य रूप से अभी तक म्उमतहमदबल में 35000 क्यूसेक पानी छोडा जाता है, पर इस बार पहले 44000 क्युसेक फिर 50,000 क्यूसेक पानी छोडा गया।'

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पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि, 'पानी का भयानक मंज़र देखकर रहवासियों और दुकानदारों में अफरा तफरी मच गई। लोग चिल्लाते हुए घरो से बाहर निकले। दुकानों में पानी भर गया। कई दुकानदार कीमती सामान तक बाहर नही निकाल सके। निवासियों के घरों की खाद्य सामग्री बह गई। घरों, दुकानों, और आश्रमों, धर्मशालाओं और होटलों में पानी घुस गया। वही नर्मदा नदी के तट पर बंधी अधिकांश नावे बह गई। राजनैतिक लाभ के लिये मचाई गई तबाही से न सिर्फ ओंकारेश्वर के दोनों तटों पर रहने वाले परिवार इस ‘‘वोटो की खातिर निर्मित बाढ़’’ से दरबदर हुए बल्कि नर्मदा के किनारों पर बसे अन्य जिलों के गांवों में भी पानी घुस गया। विगत दो दिन से मैंने डूब प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर तबाही की दास्तां सुनी। किसानों की लाखों रूपये की फसल बर्बाद हो गई। घरों और खेतों पर रखा सामान और मवेशी बह गये। रहवासी चीखते चिल्लाते रहे पर प्रशासन ने कोई बचाव कार्य नही किये। स्थानीय निवासियों का खुला आरोप है कि मुख्यमंत्री के काफिले को ओंकार पर्वत तक रपटे से पहुंचाने के लिये न सिर्फ पानी रोककर रखा गया बल्कि लोगों की जिंदगी और जानमाल से भी खिलवाड़ किया गया।' 

पूर्व मुख्यमंत्री सिंह ने इसे राजनैतिक लाभ लेने का निम्नतम स्तर करार दिया है। उन्होंने पत्र में लिखा कि, 'रात में लोग सो रहे थे, सुबह उठकर देखा तो घरों में पानी घुस रहा था। स्थानीय पार्षद से लेकर मंदिर के पुरोहितों तक का आरोप है कि यह मानव निर्मित बाढ़ थी। रात एक बजे पानी छोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो दूसरे दिन तक चलता रहा। इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर जिला प्रशासन और नर्मदा हाइड्रोलिक डेव्लपमेंट कॉर्पोरेशन के अफसर दोषी बताए जा रहे है। इस गंभीर लापरवाही से इन्दौर, खण्डवा हाईवे पर बना मोरटक्का पुल भी क्षतिग्रस्त हुआ है। जिसके उपर दस फिट तक पानी था। दो दिन तक यह हाईवे बंद रहा। लाखों लोग आवागमन रूकने से परेशान होते रहे। पुल की रेलिंग टूट गई, कुछ जगहों पर बह गई और डामर उखड़ने से गड्डे बन गये।' 

सिंह ने भाजपा नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि बाढ़ की इतनी बड़ी विभीषिका के बाद भी मध्यप्रदेश सरकार का कोई जिम्मेदार मंत्री, सांसद और विधायक बाढ़ पीड़ितों का हाल जानने नही पहुंचा। उन्होंने बताया कि स्थानीय छोटे नेताओं को लोगो ने गुस्से में खदेड़कर भगा दिया। शासन-प्रशासन ने भी राहत-बचाव कार्य तत्काल प्रारंभ करने की सुध नही ली। स्थानीय ग्रामवासियों ने अपने घरों से ले जाकर पीड़ितों को खाना-कपड़े पहुंचाये। प्रशासन की तरफ से न तो मुआवजा दिये जाने की कार्यवाही की गई है न ही उन्हें खाने को राशन दिया गया है।

सिंह पत्र में आगे लिखते हैं, 'एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजनैतिक यात्रा ने ओंकारेश्वर में तबाही मचाई। वहीं, दूसरी तरफ माननीय प्रधानमंत्री जी के जन्मदिन 17 सितम्बर 2023 को गुजरात के केवड़िया में बने सरदार सरोवर बांध को लबालब दिखाया जा सके इसीलिये पानी नही छोड़ा गया। उच्च स्तर का मामला होने से मध्यप्रदेश में शासन-प्रशासन के लोग खामोश रहे और धार, बड़वानी, खरगोन और अलीराजपुर जिले के गांवों में नर्मदा का जल स्तर बढ़ने से पानी भर गया। अनेक गांवों के हजारों किसानों की फसल खराब हो गई। मामला प्रधानमंत्री के जन्मदिन से जुड़ा था और गुजरात के मुख्यमंत्री रंगारंग इवेंट कर रहे थे। इसीलिये मध्यप्रदेश में सत्ताधारी दल के मंत्री चुपचाप रहे और बेबस किसान फसलों को खराब होते देखते रहे।'

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सिंह आगे लिखते हैं, 'इन दोनों घटनाओं के बाद मैने 27 और 28 सितंबर 2023 को बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा किया और प्रभावित लोगों से मुलाकात की। चारों तरफ बर्बादी का आलम देखा। घटना के पंद्रह दिन बीत जाने के बाद भी शासन-प्रशासन ने राहत और मुआवजा के लिये कोई कदम नही उठाये है। यह घोर असंवेदनशीलता का उदाहरण है। भोपाल में सरकार ‘‘हवाई शो’’ कराने में व्यस्त है, वहीं निमाड़ अंचल में बाढ़ पीड़ित सरकारी मदद को तरस रहे है। बड़वानी, धार, खरगोन और खण्डवा जिले में नर्मदा जी में बाढ़ आपदा से जो हानि हुई है उसके निराकरण के लिये जनहित में निम्न मांगे पीड़ित परिवारों की तरफ से आई हैं जिनका तत्काल निराकरण होना चाहिये।'

डूब पीड़ितों की मांग 

• डूब से प्रभावित समस्त ग्रामों को अन्य स्थान पर विस्थापित किया जाये। 
• जो भूमि डूब में आती है उसका मुआवजा भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अंतर्गत किया जाए।
• प्लॉट आवंटन के साथ ही उन्हें आवास निर्माण की राशि स्वीकृत की जाये।
• जिन ग्रामों में मकान इस बाढ़ के पानी से प्रभावित हुए है उनका समय-सीमा में सर्वे कराया जाये। 
• डूब में प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत दी जाये।
• अभी तक जो सर्वे हुआ है वहाँ कही भी नुकसान का पंचनामा नही बनाया गया है जोकि बनाना अनिवार्य है।
• कम से कम 3 माह का मुफ्त में राशन दिया जाये। 
• जनजानि पशुहानि का तत्काल मुआवजा दिया जाये।
• कपड़े, बर्तन, बिस्तर, फर्नीचर आदि का पर्याप्त मुुआवजा तत्काल दिया जाये।
• ओंकारेश्वर के दुकानदारों से अनेक अनावश्यक प्रमाण-पत्र मांगे जा रहे है। छोटे दुकानदारों के बैठने के स्थान पर तार लगाए जा रहे है जिससे उनका रोजगार छिन जाएगा।
• कई खेतों में मिट्टी चली गई और पूरे तरीके से खेत बर्बाद हो गये है उसका भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार भुगतान किया जाये। 
• सारी मुआवजा वितरण की प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से पारदर्शी होना चाहिए।

दिग्विजय सिंह ने पत्र के आखिर में लिखा कि, 'उच्च स्तर के राजनैतिक संरक्षण के बिना अधिकारी इतनी बड़ी लापरवाही नहीं करते। चूंकि यह दोनों मामले प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों से सीधे जुड़े हैं। इसलिए सभी चुप रहे। यह प्राकृतिक न होकर प्रशासनिक आपदा है। जिसकी जिम्मेदार शासन व्यवस्था भी है। शासन से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नही की जा सकती। मैं उच्च न्यायालय के सिटिंग या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से इन दोनों मामलों की निष्पक्ष जांच की मांग करता हूँ। साथ ही आपसे आग्रह करता हूँ कि राजनैतिक लाभ के लिये निर्मित आपदा से पीड़ित परिवारों, किसानों और व्यापारियों को तत्काल दो गुना मुआवजा दिया जाए।'