Jyotiraditya Scindia: क्या बीजेपी को नहीं चाहिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा, भोपाल के पार्टी दफ्तर में क्यों नहीं है तस्वीर

Jyotiraditya Scindia Missing From BJP Posters: भोपाल के बीजेपी मुख्यालय में पोस्टर ही पोस्टर, लेकिन कहीं नहीं दिख रहा सिंधिया का चेहरा

Updated: Oct 19, 2020, 02:03 AM IST

Photo Courtesy: New Indian Express
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भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी से नाराज़ होने की पिछले कई दिनों से चल रही चर्चाओं को अब एक नया आधार मिल गया है। अब ये बात सामने आ रही है कि भोपाल के बीजेपी मुख्यालय में पार्टी के जितने भी पोस्टर हैं, उनमें सिंधिया की तस्वीर नदारद है। ये हालत तब है, जबकि उपचुनाव के मद्देनजर भोपाल का बीजेपी  मुख्यालय पोस्टरों से भरा हुआ है। खास बात यह है कि इन पोस्टरों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया तो दिख रहीं हैं लेकिन ज्योतिरादित्य कहीं नहीं हैं। बीजेपी के चुनावी रथों पर तो पहले ही ज्योतिरादित्य को जगह नहीं दी गई थी, जिसे उनकी नाराज़गी की एक वजह माना जाता है।

बीजेपी दफ्तर के बाहर लगे पोस्टरों में भी यही लिखा है कि शिवराज है तो विश्वास है। इन पोस्टर्स में सीएम शिवराज सिंह चौहान, पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की तस्वीरें हैं। वहीं कुछ पोस्टर्स में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी दिख रही हैं। ये वो पोस्टर हैं जो राजमाता की 100वीं जयंती के समारोह के मौके पर लगाए गए थे।

कांग्रेस ने पूछा कितना जलील करोगे यार

सिंधिया की तस्वीर अब पार्टी मुख्यालय में भी नहीं लगाए जाने के बाद विपक्ष ने बीजेपी से पूछा है कि सिंधिया को आखिर कितना जलील करोगे? कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने ट्वीट कर लिखा, 'भोपाल स्थित प्रदेश भाजपा मुख्यालय से भी गायब! पूरा कार्यालय होर्डिंग,पोस्टरों से पटा, नहीं हैं तो सिर्फ "श्रीअन्त"! कितना ज़लील करोगे यार? शायद भोपाल दौरा भी रद्द?'

कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस हालत पर इतनी चुटकी इसलिए ले रही है, क्योंकि सिंधिया के पाला बदलने की वजह से ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरी और जनता द्वारा विपक्ष में बैठाई गई बीजेपी को एक बार फिर सत्ता की कुर्सी नसीब हुई। अब उन्हीं सिंधिया को बीजेपी में आने के बाद उपेक्षित किए जाने की खबरें लगातार आ रही है। सिंधिया को न तो उनके गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल इलाके के चुनावी कार्यक्रमों में पूरा महत्व दिया गया और न ही बीजेपी के चुनावी रथ में जगह मिली। इसके बाद पार्टी ने स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें दसवें नंबर पर डाल दिया। और अब पार्टी मुख्यालय में लगे पोस्टरों में उनकी तस्वीर को जगह न मिलने की चर्चा। सिंधिया के साथ बीजेपी के इस रवैये से लोग हैरान हैं। मध्य प्रदेश की सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि सिंधिया इस उपेक्षा से अंदर ही अंदर बेहद नाराज हैं, और इसीलिए चुनावी गहमा-गहमी से कई दिनों तक दूर रहे। 

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इस दौरान विरोधियों ने बार-बार ये सवाल भी उठाए कि क्या सिंधिया पिछले कुछ दिनों तक अपनी मर्ज़ी से नाराजगी के कारण प्रचार से दूर रहे या बीजेपी ने ही उन्हें प्रचार से रोक रखा था? कुछ लोगों का यह भी मानना है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने ही उन्हें दिल्ली में रहने को कहा था। इसके पीछे दलील ये दी जा रही है कि कांग्रेस उपचुनाव में लगातार सिंधिया की गद्दारी को मुद्दा बनाती आ रही है। इतना ही नहीं, अंग्रेजों के जूते उठाने और झांसी की रानी को धोखा दिए जाने जैसे जुमले भी उनके खिलाफ खूब उछाले जाते हैं।

शिवराज के पुराने भाषणों के वो वीडियो भी वायरल हो रहे हैं, जिनमें वे कहते दिख रहे हैं कि अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी। इसका असर यह है कि सिंधिया को बीजेपी कार्यकर्ता भी नापसंद कर रहे हैं। ऐसे में डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी अब शिवराज को इकलौता चेहरा बनाने का दांव चल रही है ताकि सिंधिया की नकारात्मक छवि के कारण उसे उपचुनाव में नुकसान न उठाना पड़े।

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बहरहाल, वजह कुछ भी हो, इतना तो सच है कि कांग्रेस में रहते जिन सिंधिया की गिनती मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेताओं में होती थी, चुनाव में जिन्हें पार्टी अपने प्रमुख चेहरों में शामिल करती थी, बीजेपी में जाने के बाद उनकी हैसियत नेताओं की भीड़ में गुम होकर रह गई है।