किसान आंदोलन के बीच शंभू बॉर्डर पर बुजुर्ग अन्नदाता की मौत, ठंड लगने के बाद पड़ा दिल का दौरा

किसानों का प्रदर्शन फिलहाल पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहा है। किसान शंभू बॉर्डर पर डटे हुए हैं और दिल्ली आने की कोशिश कर रहे हैं।

Updated: Feb 16, 2024, 03:13 PM IST

नई दिल्ली। पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन के बीच एक बुजुर्ग किसान की जान चली गई। दिल का दौरा पड़ने के बाद शुक्रवार तड़के उन्होंने दम तोड़ दिया था। मृतक अन्नदाता की पहचान 78 वर्षीय ज्ञान सिंह के रूप में हुई है। वह पंजाब में गुरदासपुर के रहने वाले थे। बताया गया कि प्रदर्शन के दौरान रात को उन्हें ठंड लग गई थी जिसके बाद उनकी मौत हो गई।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ज्ञान सिंह को सुबह 4 बजे स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया, जहां से उन्हें पटियाला के गवर्नमेंट राजिंद्र अस्पताल में ट्रांसफर कर दिया गया था। यहां उनका इमरजेंसी वार्ड में इलाज चल रहा था। डॉक्टरों ने उनकी जान बचाने की पूरी कोशिश की, हालांकि, उन्होंने डेढ़ घंटे तक चले इलाज के बाद दम तोड़ दिया। पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर चल रहे किसानों के प्रदर्शन में के बीच ये किसी किसान की पहली मौत है।

अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया कि किसान की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई है। जब उन्हें यहां लाया गया तो उनकी स्थिति काफी नाजुक थी। उनकी मौत सुबह 6 बजे हुई है। पटियाला के डिप्टी कमिश्नर शौकत अहमद पर्रे ने भी किसान की मौत की पुष्टि कर दी है। उन्होंने बताया कि मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार किसान की मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई है। ज्ञान सिंह किसान मजदूर मोर्च के धड़े किसान मजदूर संघर्ष समिति के सदस्य थे।

ज्ञान सिंह ट्रॉली में पांच अन्य किसानों के साथ सो रहे थे। ये लोग शंभू बॉर्डर के पास मौजूद थे, जहां धरना चल रहा है। ज्ञान सिंह के भतीजे जगदीश सिंह ने बताया कि सुबह 3 बजे उन्होंने तबीयत खराब होने की बात कही। इसके बाद हमने शंभू पुलिस स्टेशन के पास खड़ी एंबुलेंस को तुरंत बुलाया और उन्हें राजपुरा सिविल अस्पताल लेकर गए। वहां पहुंचने पर हमें राजिंद्र मेडिकल कॉलेज, पटियाल भेज दिया गया। इस दौरान उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। एंबुलेंस में ही उन्हें ऑक्सीजन सप्लाई दी गई। सुबह 5 बजे तक हम मेडिकल कॉलेज पहुंचे, लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। ज्ञान सिंह की शादी नहीं हुई थी, वह अपने भतीजों के साथ ही रहते थे। उनकी 1.5 एकड़ की खेती की जमीन थी, जिस पर खेती करते थे।