मध्य प्रदेश में कथित लव जिहाद विरोधी बिल को कैबिनेट की मंज़ूरी

मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 में 10 साल तक की क़ैद का प्रावधान, अलग-अलग धर्मों में मानने वालों को शादी से पहले लेनी होगी कलेक्टर की इजाज़त

Updated: Dec 26, 2020, 06:04 PM IST

Photo Courtesy: Aaj Tak
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भोपाल। मध्य प्रदेश में कथित लव जिहाद रोकने के नाम पर लाए जा रहे विधेयक के मसौदे को आज राज्य की कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में विधेयक पर मुहर लगाई गई, जिसकी जानकारी राज्य के गृह मंत्री नरेंद्र सिहं तोमर ने मीडिया को दी है। दिलचस्प बात यह है कि कथित तौर पर ग़लत ढंग से होने वाले धर्मांतरण और धर्म परिवर्तन के मक़सद से की जाने वाली अंतर-धार्मिक शादियों पर रोक लगाने के घोषित उद्देश्य से लाए जा रहे इस क़ानून का नाम 'धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020'  है।

इस विधेयक में धर्म परिवर्तन के मक़सद से शादी करने या प्रलोभन, दबाव जैसे तरीक़ों से धर्मांतरण करवाने वालों को कड़ा दंड दिए जाने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में किए गए प्रावधानों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति/ जनजाति की लड़की या नाबालिग को बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन के इरादे से शादी करने वाले को दस साल तक की क़ैद हो सकती है। धर्म छिपाकर की गई शादी को अमान्य या रद्द घोषित करने का प्रावधान भी इस प्रस्तावित विधेयक में किया गया है। एक प्रावधान यह भी है कि अगर अलग-अलग धर्मों को मानने वाले व्यक्ति आपस में शादी करना चाहते हैं तो उन्हें एक महीने पहले कलेक्टर के पास आवेदन देकर अनुमति हासिल करनी होगी। अगर कलेक्टर की इजाज़त के बिना ऐसी शादी हुई तो शादी करने वाले और कराने वाले सभी दंडित किए जा सकते हैं।

 

 

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस विधेयक के मसौदे को कैबिनेट की मंज़ूरी मिलने की जानकारी देते हुए कहा कि अब यह विधेयक विधानसभा में पेश किया जाएगा। मध्य प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र 28 दिसंबर से होना है। मिश्रा ने यह दावा भी किया कि लव जिहाद रोकने के लिए मध्य प्रदेश में देश का सबसे कठोर कानून बनाया जा रहा है।

दरअसल बीजेपी शासित तमाम राज्यों में कथित लव जिहाद रोकने के नाम पर इसी तरह के क़ानून बनाने की तैयारी चल रही है। उत्तर प्रदेश ने तो नवंबर में ही अध्यादेश लाकर ऐसा ही एक क़ानून लागू भी कर दिया है। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने एक आदेश में साफ़ कर चुका है कि दो बालिग लोग अगर एक साथ रहने, शादी करने का फ़ैसला करते हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत आज़ादी का मसला है। जीवनसाथी चुनना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। वो किस धर्म को मानते हैं, इससे किसी दूसरे का कोई लेना-देना नहीं है। न ही इस तरह की शादियों में दखल देने का सरकारों को कोई अधिकार है।

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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इसे संविधान के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अनिवार्य हिस्सा माना है। इन्हीं आधारों पर यूपी के अध्यादेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती भी दी जा चुकी है। हाईकोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई  7 जनवरी को होनी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर भी कह चुके हैं कि यूपी का कथित लवव जिहाद विरोधी कानून संविधान के खिलाफ है।

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बीजेपी के लोग ऐसे क़ानूनों को आमतौर पर लव जिहाद विरोधी क़ानून बताते हैं, जबकि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय देश की संसद में लिखकर बता चुका है कि भारत में लव जिहाद जैसे किसी अपराध का कोई वजूद ही नहीं है। जबरन धर्म परिवर्तन या धोखाधड़ी के ज़रिये धर्म परिवर्तन के मामलों में क़ानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले ने भी साफ़ कर दिया है कि दो बालिग़ नागरिक अगर आपसी सहमति से शादी करना चाहते हैं तो उनके निजी जीवन में दखल देने का अधिकार किसी सरकार को नहीं है।