MP: मिड डे मील योजना पर पड़ा भ्रष्टाचार का ग्रहण, पोषण की जगह बच्चों की थाली में परोसा जा रहा पानी
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में मिड-डे मील योजना की हालत बिलकुल बदतर है। स्कूलों में बच्चों को मेन्यू के अनुसार भोजन नहीं दिया जा रहा, बल्कि पानीदार दाल और सूखा चावल परोसा जा रहा है। भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण बच्चों के पोषण के लिए बनी योजना अब कुपोषण का कारण बनती जा रही है।

उमरिया। मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में मिड-डे मील योजना का हाल सरकारी दावों को बिल्कुल झूठा साबित कर रहा है। बच्चों के पोषण के लिए शुरू की गई यह योजना अब कुपोषण का कारण बनती जा रही है। प्राथमिक स्कूलों में परोसे जा रहे दोपहर के भोजन की हालत ऐसी है कि बच्चों की थाली में दाल से ज्यादा पानी और पोषक तत्वों से ज्यादा लापरवाही मिल रही है।
करकेली ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले प्राथमिक स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र पतरेई से जो दृश्य सामने आए हैं, वे सरकारी योजनाओं की जमीनी सच्चाई दिखाती है। यहां बच्चों को रोजाना सिर्फ दाल-चावल परोसा जा रहा है। दाल इतनी पतली है कि उसे दाल कहना भी गलत होगा। तय मेन्यू के मुताबिक, बच्चों को हफ्ते के अलग-अलग दिनों में सब्जियां, दही और अन्य पौष्टिक व्यंजन मिलना चाहिए। लेकिन असलियत यह है कि न तो मेन्यू की परवाह है और न ही बच्चों के पोषण की।
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मिड-डे मील योजना की शुरुआत नवंबर 2001 में तमिलनाडु में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूरे देश में इसे लागू कर दी गई थी। इसका उद्देश्य स्कूलों में बच्चों के पोषण स्तर को बढ़ाना और कुपोषण घटाना था। लेकिन उमरिया जिले में यह योजना अपनी मूल भावना खो चुकी है। स्कूलों में काम कर रहे कर्मचारियों और ठेकेदारों के भ्रष्टाचार ने इस योजना की रीढ़ तोड़ दी है। बच्चों के निवालों पर डाका डालने वालों के कारण अब यह व्यवस्था बच्चों के लिए बीमारी का सबब बन चुकी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मिड-डे मील के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। बच्चे मजबूरी में वही पानीदार दाल और सूखा चावल खा रहे हैं। जबकि योजना के तहत हर दिन गर्म, ताजा और पौष्टिक भोजन देने का प्रावधान है। प्रशासन की उदासीनता और निगरानी की कमी ने स्थिति को और बदतर बना दिया है।
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