सिंधिया समर्थक को स्वास्थ्य मंत्री बनाकर भूल गए शिवराज, कांग्रेस बोली जमीर है तो इस्तीफा दो

मध्यप्रदेश में कोरोना ने मचाया कोहराम, गायब हैं स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी, शिवराज के करीबी विश्वास सारंग देख रहे हैं स्वास्थ्य विभाग का कार्य, कांग्रेस बोली- धिक्कार है ऐसे मंत्रियों पर 

Updated: Apr 21, 2021, 12:08 PM IST

Photo Courtesy: Amar Ujala
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भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना ने कोहराम मचा रखा है। राज्यभर के अस्पतालों में चीख-पुकार मची हुई है। इस संकट की घड़ी में जब राज्य के लोगों को सबसे ज्यादा आवश्यकता अपने स्वास्थ्य मंत्री की है तब वे कई महीनों से गायब हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि स्वास्थ्य संबंधी बैठकों तक में उन्हें नहीं बुलाया जाता है। विपक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री से अपील की है कि यदि उनका जमीर जिंदा है तो आज रामनवमी के अवसर पर उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।

कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा ने स्वास्थ्य मंत्री की अनुपस्थिति को लेकर कहा कि, 'डॉ.प्रभुराम चौधरी को स्वास्थ्य मंत्री बनाकर सीएम शिवराज भूल गए, सीएम को याद भी नहीं कि चौधरी स्वास्थ्य मंत्री हैं, उन्हें स्वास्थ्य विभाग के बैठकों में भी नहीं बुलाता जाता है।' इतना ही नहीं मिश्रा ने दावा किया है कि प्रभुराम चौधरी के फोन कॉल भी ACS, स्वास्थ्य आयुक्त व अन्य अधिकार नहीं उठाते हैं। उन्होंने पूछा है कि निर्लज्जता के किस सीमा तक वे झूठ का स्वास्थ्य मंत्री खुद को कहलवाते फिरेंगे। आज रामनवमी है स्वास्थ्य मंत्री के अंदर थोड़ी भी जमीर बची हुई है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।'

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केके मिश्रा ने एक घटना की जानकारी देते हुए बताया कि स्वास्थ्य मंत्री के गृहक्षेत्र रायसेन स्थित एसबीआई बैंक के मैनेजर केके आर्य ने 12 अप्रैल को RTPCR जांच करवाई थी। इसके आठ दिन बाद यानी 20 अप्रैल तक जांच रिपोर्ट भी नहीं आई, इस तरह कागजों पर वे पॉजिटिव हुए बिना कोरोना से जंग लड़ते हुए मर गए। उन्होंने कहा, 'स्वास्थ्य मंत्री अपने गृहक्षेत्र के लोगों तक की मदद नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे मंत्रियों पर धिक्कार है। चौधरी को स्वयं भी यह मालूम है कि वे मंत्री बस कागजों पर हैं।'

दरअसल, मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी प्रभुराम चौधरी को बनाया गया है। लेकिन सिंधिया के अन्य मंत्रियों के तरह ही चौधरी की भी स्थिति है। स्वास्थ्य विभाग का सारा कार्यभार सीएम शिवराज के करीबी विश्वास सांरग देखते हैं। जबकि सारंग के पास कागजों पर महज मेडिकल शिक्षा विभाग है जिसका गठन शिवराज सरकार ने किया है। इतना ही नहीं मध्यप्रदेश के कोविड-19 कंट्रोल रूम में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम शिवराज सिंह चौहान के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति की तस्वीर है तो वे हैं विश्वास सारंग। यह तस्वीर बिना बोले सबकुछ बयां कर देती है।

शिक्षा मंत्री क्यों चलाते हैं स्वास्थ्य विभाग

स्वास्थ्य मंत्री के रहते स्वास्थ्य विभाग का कार्यभार मेडिकल शिक्षा मंत्री देखें यह अपने आप में बेहद अजीबोगरीब मामला है। लेकिन इसके पीछे वर्चस्व का खेल है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि, 'सिंधिया ने कमलनाथ सरकार गिराने के लिए जो शर्त रखी थी उसे मानना मध्यप्रदेश बीजेपी की मजबूरी थी। लेकिन शिवराज और सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, जिसमें शिवराज के सामने सिंधिया कहीं नहीं टिकते।' इतना ही नहीं जानकारों का यह भी कहना है कि शिवराज सिंधिया को उनकी हैसियत बताने का एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहते।

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पिछले साल जब से शिवराज दोबारा सत्ता में आए हैं तब से लगातार सिंधिया और उनके समर्थकों की उपेक्षा की खबरें आती रहती हैं। हाल ही में सिंधिया समर्थक पंचायती राज्य मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया से पूछे बगैर मुख्य सचिव ने फाइल को आगे बढ़ा दिया था और मंत्री को इस बात की जानकारी तक नहीं थी। मंत्रालय के अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सिंधिया के लगभग सभी मंत्रियों की हालत यही है। डील के मुताबिक उन्हें मनमाफीक विभाग तो दे दिया पर विभाग का चपरासी भी उनसे ज्यादा काम करवाने की हैसियत रखता है।

उन्होंने कहा कि, 'सिंधिया के मंत्रियों के विभागीय अधिकारियों को हाई कमान का निर्देश है कि सारे फैसले बीजेपी के पुराने नेताओं के अनुसार लिया जाए। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं के पद के अनुसार उनकी बातों को तवज्जों न दी जाए। इसीलिए विभाग के अधिकारी ही मंत्रियों के बात नहीं सुनते। बिना सहमति के फाइलों को आगे बढ़ा दिया जाता है।' हालांकि, उन्होंने इस बात के बारे में कुछ नहीं कहा कि किसके इशारों पर ये अधिकारी काम कर रहे हैं।

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मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में भी इस बात की चर्चाएं तेज हैं कि बीजेपी में सिर्फ सिंधिया ही उपेक्षा के शिकार नहीं हो रहे हैं बल्कि पूरी टीम सिंधिया को इससे गुजरना पड़ रहा है। बीते कई दिनों से सिंधिया की भी नाराजगी है ऐसे में इस बात के भी कयास हैं कि सिंधिया बीजेपी छोड़ने के फैसले कर भी विचार कर सकते हैं। इसका कारण यह भी है कि उन्हें डील के मुताबिक केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। अपनी उपेक्षा के साथ ग्वालियर महाराज कबतक बीजेपी में रहते हैं ये तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस ने उनके लिए रास्ते हमेशा के लिए बंद कर दिया है। हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने कहा था कि सिंधिया यदि माफी मांगते हैं तो विचार किया जाएगा।