उज्जैन कलेक्टर का तुगलकी फरमान, वैक्सीन नहीं तो वेतन नहीं, सरकारी कर्मचारियों को किया जा रहा बाध्य
एक्सपर्ट्स के मुताबिक वैक्सीनेशन संबंधी सरकार का आदेश स्वैच्छिक है, इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, लेकिन प्रशासन ने अपनाया समझाने के बजाए धमकाने का रास्ता

उज्जैन। एमपी अजब है, सबसे गजब है! इस कहावत को उज्जैन जिला प्रशासन के एक फरमान ने चरितार्थ कर दिया है। "नो वैक्सीन, नो सैलरी" यानी टीका नहीं तो वेतन भी नहीं। उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने सरकारी कर्मचारियों के लिए आदेश जारी कर कहा है कि अगले महीने से उन लोगों को ही सैलरी दी जाएगी, वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट जमा करेंगे।
उज्जैन कलेक्टर ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए तर्क दिया है कि शत प्रतिशत वैक्सीनेशन के सुनिश्चित कराने के लिए यह कदम उठाया गया है। यह आदेश मंगलवार से लागू हो चुकी है और कर्मचारियों को 31 जुलाई तक का समय दिया गया है ताकि वो वैक्सीन का कम से कम एक डोज समय रहते ले लें। कलेक्टर ने उज्जैन कोषागार अधिकारी को जून के वेतन वितरण के साथ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट इकट्ठा करने का निर्देश दिया है।
31 जुलाई तक शत-प्रतिशत शासकीय सेवक वैक्सीनेशन करवाना सुनिश्चित करें, जुलाई का वेतन तभी आहरित होगा जब वैक्सीनेशन का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर दिया जाएगा - कलेक्टर श्री आशीष सिंह @JansamparkMP
— Collector Ujjain (@collectorUJN) June 22, 2021
इसके अलावा जिले में कार्यरत विभिन्न विभागों के प्रमुखों को दैनिक वेतन भोगी एवं संविदा कर्मचारियों के टीकाकरण संबंधी डिटेल्स उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश में कहा गया है कि जिले में कोविड-19 के कारण हुई सरकारी कर्मचारियों की मौत की समीक्षा के दौरान जानकारी मिली कि उन्होंने वैक्सीन नहीं लिया था।
एक्सपर्ट्स बोले तुगलकी फरमान
मेडिकल और लीगल एक्सपर्ट्स इस आदेश को तुगलकी फरमान करार दे रहे हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीनेशन संबंधी सरकार का आदेश वालंटरी यानी पूरी तरह से स्वैच्छिक है, यह बाध्यकारी नहीं है। किसी भी व्यक्ति को वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, लेकिन उन्हें जबरन वैक्सीन लगाना कानूनी रूप से गलत है।
समझाने के बजाए धमकाने का रास्ता पसंद
दरअसल, वैक्सीन को लेकर समाज में तरह-तरह की भ्रांतियां फैली हुईं है। ग्रामीण इलाके ही नहीं शहरी इलाके में भी लोग टीका लेने से कतरा रहे हैं। यह सरकार के प्रति अविश्वास का नतीजा ही है कि आम लोग तो दूर सरकार के कर्मचारी तक वैक्सीन को सुरक्षित मानने से इनकार कर रहे हैं। उधर प्रशासन को भी समझाने के बजाए धमकाने का रास्ता ज्यादा पसंद आ रहा है। सोशल एक्सपर्ट्स के मुताबिक जबरदस्ती करने से टीके को लेकर भ्रांतियां कम होने के बजाए और बढ़ेंगी।