बडवानी: धर्मांतरण के शक में महिला के गर्भ पर लात मारकर अजन्मे बच्चे को मारा

महिला ने भ्रूण हत्या व बदतमीजी का केस दर्ज कराने की शिकायत की लेकिन आरोपियों के रसूख़ से भयभीत पुलिस ने अपना टालमटोल का रवैय्या

Updated: Jan 08, 2021, 03:41 PM IST

बड़वानी। मध्य प्रदेश का आदिवासी बहुल बड़वानी जिला स्थानीय महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और निजता में दखल से सुलग रहा है। इलाके के ठीकरी तहसील में बीते एक सप्ताह से अशांति है। ठीक 31 दिसंबर की दोपहर जब सारी दुनिया नए साल के उमंग में थी, इलाके के गांव देवड़ा में कुछ दो दर्जन शोहदों ने महिलाओं और नाबालिग बच्चियों के साथ बद्तमीज़ी की हदें पार कर दीं।

एक महिला, लीलाबाई का गर्भस्थ शिशु गर्भ पर लातों की चोट खाकर बाहर आ गया और दम तोड़ दिया। नाबालिग बच्चियां छेड़खानी से दहशत में आ गईं और बुजुर्ग लाचार रह गए। अब लीलाबाई को अपने अजन्मे बच्चे के गुनहगार को सज़ा दिलानी है। बच्चियों को बदमाशों को सलाखों के पीछे देखना है और बुजुर्गों को न्याय पाना है, लेकिन आदिवासी बहुल इस दूर दराज़ के गांव तक आते आते कानून के हाथ शिथिल और छोटे हो गए हैं।

 

एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी ठीकरी पुलिस कभी साक्ष्य की कमी तो कभी महिला की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देकर केस लटकाने के अदाज़ में दिखती है। पीड़ित पक्ष का कहना है कि पुलिस मामला रफ़ा दफ़ा करने के लिए दबाव भी बना रही है। असल में लीलाबाई की शिकायत इतनी गंभीर है कि पुलिस कागज़ दबाकर बैठ गई प्रतीत होती है। 

लीलाबाई की आवाज़ दबती देख इलाके के आदिवासी संगठन जयस के कार्यकर्ताओं ने ठीकरी थाने के सामने धरना शुरू किया है। 24 घंटे गुज़र जाने के बावजूद पुलिस उनकी आवाज़ को भी आनसुनी कर रही है। पुलिस कह रही है कि उसे कार्रवाई के लिए पुख्ता सबूत नहीं मिल रहे हैं। महिला कह रही है कि मेरे अजन्मे बच्चे को मारने से बड़ा सबूत क्या होगा? 

 माज़रा कुछ यूं है कि 31 दिसंबर की दोपहर देवड़ा गांव की लीलाबाई अपने रिश्तेदार सरदार रिछू के घर पर थी, तभी घर में 25-26 लोग अचानक घुस आए और वहां मौजूद नाबालिग बच्चियों, बुज़ुर्गों और अन्य के साथ बद्तमीज़ी करने लगे। लीलाबाई ने पुलिस को जो शिकायती चिट्ठी लिखी है, उसके मुताबिक हंगामा करनेवालों में देवड़ा गांव के दो लोग भी शामिल थे।जिसमें एक पूर्व सरपंच और एक अन्य है। ये दोनों लगभग दो दर्जन लोगों के साथ घर में घुसे और मारपीट, छेड़खानी करने लगे।

उन युवकों को शक था कि लीलाबाई और उनके पति राकेश अलावा गांव में क्रिश्चियन सभाएं कराते हैं और उनके घर से गांव में धर्मांतरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। लीलाबाई कहती हैं कि उन्हें धमकाते हुए गुंडों ने उनके पेट पर लात मारी और 8 महीने का उनका अजन्मा बच्चा गर्भ से बाहर आ गया। बच्चे की बाहर आते ही उसकी मौत हो गई। लेकिन सात दिन से पुलिस जांच रिपोर्ट आने का इंतज़ार कर रही है।

मारपीट की रिपोर्ट, लड़कियों के साथ बद्तमीज़ी और अनुसूचित जाति जनजाति एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग उनलोगों के खिलाफ है, जो सत्ता के करीब हैं। इसलिए पुलिस के हाथ-पांव फूले हुए हैं। महिला का आरोप है कि मारपीट करनेवालों का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके आनुषंगिक संगठनों से था। शिकायतकर्ता ने पुलिस से मांग की है कि गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित किया जाए और अपराधियों को गिरफ्तार कर कठोर सज़ा दी जाए।

 

 

महिला की शिकायत तो पुलिस ने दर्ज नहीं की है लेकिन दूसरे पक्ष से भी एक शिकायती चिट्ठी पुलिस को मिली है। इस चिट्ठी में लीलाबाई और उसके पति राकेश अलावा पर धर्मांतरण कराने और नए लव जिहाद कानून के उल्लंघन का ज़िक्र बताया गया है। कार्यकर्ता मानते हैं कि लीलाबाई के परिवारवालों को सज़ा देना उनका अधिकार है।

दरअसल मध्य प्रदेश में हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट ने धर्मांतरण के विरूद्ध कानून पास किया है। एमपी कैबिनेट के द्वारा पास किए गए कानून में इस जुर्म की सज़ा 10 साल तय की गई है। दक्षिणपंथी संगठन अब इसे लागू कराने में अपनी ज़िम्मेदारी मानकर अपनी मर्ज़ी से धर्म परिवर्तन करने वाले महिला–पुरुषों के खिलाफ मुहिम छेड़ रहे हैं। यह मुहिम आदिवासी समाज को परेशान कर रहा है।

बड़वानी की घटना बताती है कि यह संघर्ष अभी और बढ़ सकता है। पुलिस का लापरवाह रवैय्या और सियासी दबाव दोनों तरफ से बढ़ने के आसार हैं। गांव के दबंग आरोपी इसे लव जिहाद का मामला बता रहे हैं तो विपक्ष अत्याचार बता रहा है।  हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एलान किया है कि शिवराज सरकार में आदिवासी समाज पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं। और वो इस उत्पीड़न से आदिवासी समाज को मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आदिवासी इसके लिए कांग्रेस की मदद ले सकते हैं।