चौकीदार की चौकीदारी कौन करेगा, SEBI चीफ पर हिंडनबर्ग रिसर्च के खुलासे के बाद बोली कांग्रेस

हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि सेबी की अध्यक्ष बुच और उनके पति के पास कथित अदाणी धन हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी थी।

Updated: Aug 11, 2024, 03:03 PM IST

नई दिल्ली। अमेरिका की शॉर्ट-सेलर फर्म Hindenburg Research ने एक और Report जारी की है। इसमें Adani Group और SEBI चीफ के बीच लिंक होने का दावा किया गया है। कांग्रेस ने हिंडनबर्ग द्वारा SEBI प्रमुख माधवी बुच पर लगाए गए आरोपों को लेकर उनकी निंदा की और लातिन कहावत का इस्तेमाल करते हुए कहा कि चौकीदार की चौकीदारी कौन करेगा।

दरअसल, हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि सेबी की अध्यक्ष बुच और उनके पति के पास कथित अदाणी धन हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी थी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोपों संबंधी हिंडनबर्ग की पोस्ट को टैग करते हुए सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘क्विस कस्टोडिएट इप्सोस कस्टोडेस’ (चौकीदार की चौकीदारी कौन करेगा?)।"

जयराम रमेश ने एक अन्य पोस्ट में कहा, 'संसद को 12 अगस्त की शाम तक कार्यवाही के लिए अधिसूचित किया गया था। अचानक 9 अगस्त की दोपहर को ही इसे अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। अब हमें पता है कि क्यों।'

कांग्रेस महासचिव ने बयान जारी कर कहा कि हिंडनबर्ग रिसर्च के कल के खुलासे से पता चलता है कि SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति ने उन्हीं बरमूडा और मॉरीशस स्थित ऑफ़शोर फंड में निवेश किया था, जिसमें विनोद अडानी और उनके क़रीबी सहयोगियों चांग चुंग-लिंग और नासिर अली शाहबान अहली ने बिजली उपकरणों के ओवर- इनवॉइसिंग से अर्जित धन का निवेश किया था। ऐसा माना जाता है कि इन फंड्स का इस्तेमाल SEBI के नियमों का उल्लंघन करते हुए अडानी ग्रुप की कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए भी किया गया था। यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि बुच की इन्हीं फंड्स में वित्तीय हिस्सेदारी थी।

रमेश ने आगे कहा, 'यह माधबी पुरी बुच के SEBI चेयरपर्सन बनने के तुरंत बाद 2022 में गौतम अडानी की उनके साथ लगातार दो बैठकों को लेकर नए सवाल खड़े करता है। याद रखें कि उस समय SEBI कथित तौर पर अडानी के लेन-देन की जांच कर रहा था। सरकार को अडानी की SEBI जांच में सभी हितों के टकराव को ख़त्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। तथ्य यह है कि देश के सर्वोच्च अधिकारियों की जो कथित मिलीभगत दिख रही है, उसे अडानी महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी का गठन करके ही सुलझाया जा सकता है।'