यूपी में बीजेपी विधायक राजकुमार अग्रवाल की लाचारी, बेटे की मौत का नहीं करा पा रहे FIR

सीएम से लेकर हेल्थ मिनिस्टर तक कर चुके हैं शिकायत, एक महीना बीतने के बाद भी नहीं हुई एफआईआर, अपनी पार्टी की सरकार होने के बावजूद स्वास्थ्य माफियाओं के सामने असहाय हुए बीजेपी विधायक

Updated: May 28, 2021, 02:10 PM IST

हरदोई। उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में बीजेपी विधायकों की लाचारी और बेबसी के किस्से आम हो गए हैं। कोरोना काल में हालात इतने खराब हो गए हैं कि केंद्र और राज्य में अपनी ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद बीजेपी विधायक को एक एफआईआर के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। बेबसी का आलम यह है कि हरदोई के सांडिला विधानसभा क्षेत्र से विधायक राजकुमार अग्रवाल पिछले एक महीने से अपने जवान बेटे की मौत की एफआईआर तक दर्ज नहीं करा पाए हैं।

दरअसल बीजेपी एमएलए राजकुमार अग्रवाल के 30 वर्षीय बेटे आशीष को पिछले महीने कोरोना हुआ था। 22 अप्रैल को उन्हें राजधानी लखनऊ स्थित अथर्व हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। यहां ऑक्सीजन की कमी होने के कारण आशीष की मौत हो गई। बीजेपी विधायक के मुताबिक उनके दो बेटे अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर बैठे रहे। लेकिन काफी सिफारिशों के बाद भी अस्पताल ने बाहर का ऑक्सीजन सिलिंडर लेने से मना कर दिया। अंततः मनीष ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।

आशीष अग्रवाल खुद भी बीजेपी के नेता थे, साथ ही वह सरकारी संस्था पैक्स पैड के डायरेक्टर भी थे। विधायक राजकुमार अग्रवाल का कहना है कि अस्पताल की लापरवाही के कारण उनके जवान बेटे की मौत हुई है। उन्होंने इस बात की लिखित शिकायत काकोरी थाने में दी और अस्पताल के खिलाफ लापरवाही और षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया। चौंकाने वाली बात ये है कि शिकायत के एक महीने बाद भी पुलिस ने अस्पताल के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं किया है जबकि मामला सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक के बेटे की मौत का है।

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राजकुमार अग्रवाल अपने मृत बेटे को न्याय और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा चुके हैं लेकिन कार्रवाई तो दूर पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज नहीं किया। मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंच होने के बाद भी अग्रवाल स्वास्थ्य माफियाओं के सामने असहाय हो गए हैं। बीजेपी विधायक का कहना है कि वे राज्य के सीएम, स्वास्थ्य मंत्री, डीजीपी, पुलिस कमिश्नर और डीएम से कई बार गुहार लगा चुके हैं, लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी।

बेटे की मौत के गम और सिस्टम की कुव्यवस्थाओं से क्षुब्ध विधायक ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी है, और वे लगातार वृद्धावस्था में कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। उनका कहना है कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि मनीष जैसे प्रदेश के अन्य युवाओं का जीवन इस कुप्रबंधन की बलि न चढ़े। बहरहाल, योगी सरकार के बीजेपी विधायकों की बेबसी का ये कोई पहला किस्सा नहीं है। हाल ही में एक और बीजेपी विधायक का दर्द जनता के सामने आया था, जब उन्होंने मीडिया से कहा था कि हम विधायकों की हैसियत क्या है।

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सीतापुर के विधायक राकेश राठौर ने मीडिया के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि, 'उत्तरप्रदेश में सबकुछ ठीक चल रहा है। हम तो यही कहेंगे कि इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। हम सरकार तो नहीं हैं, हम इतना जरूर बता सकते हैं कि सरकार जो कह रही है उसे ही ठीक माना जाए। इस सरकार में हम जैसे विधायकों की हैसियत क्या है? हम ज्यादा बोलेंगे तो देशद्रोह और राजद्रोह का मुकदमा हम पर भी तो लगेगा।' 

उत्तरप्रदेश में आम लोगों की क्या स्थिति है इस बात का अंदाजा विधायकों की दशा देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। राज्य में कोरोना के पहली और दूसरी लहर के दौरान बीजेपी के ही कई मंत्रियों और विधायकों की मौत भी हो चुकी है।