इतिहास मेरे प्रति उदार होगा, मनमोहन सिंह की वो आखिरी प्रेस कॉफ्रेंस जिसमें पूछे गए थे तीखे सवाल
मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘मैं यह नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं। मैं ईमानदारी से यह मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक दयालु होगा।'
नई दिल्ली। "हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी"... 27 अगस्त, 2012 को संसद में यह शेर पढ़ने वाले मनमोहन सिंह हमेशा के लिए खामोश हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री के निधन से पूरा देश ग़मज़दा है। सिंह के निधन के बाद सोशल मीडिया पर उनसे जुड़े तमाम किस्से और उनके वीडियो वायरल हो रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री रहते उनकी उस आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की भी खूब चर्चा हो रही है, जिसके बाद अबतक प्रधानमंत्री ने मीडिया से सार्वजनिक बातचीत नहीं की।
प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस तीन जनवरी 2014 को हुई थी, जो एक घंटे से ज़्यादा समय तक चली थी। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में देशभर के सैंकड़ों पत्रकार मौजूद थे और उन्होंने सवाल पूछने में कोई कोताही नहीं बरती। उनसे बेहद तीखे यहां तक की अनर्गल आरोपों वाले सवाल भी पूछे गए। लेकिन मनमोहन सिंह अपने चिर परिचित अंदाज में एक-एक सवाल का बेहद सौम्यता के साथ जवाब देते रहे।
मनमोहन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में ही देश के सामने आर्थिक चुनौतियों और वैश्विक आर्थिक मंदी की चर्चा की। देश में बढ़ती महंगाई को भी मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में स्वीकार किया था। सिंह ने कहा था कि उनका नेतृत्व कमजोर नहीं है। हमने जो 10 साल में काम किए हैं, उसका मूल्यांकन इतिहास करेगा। इतिहास उनके प्रति मीडिया और विपक्ष से ज्यादा उदार होगा।
मनमोहन सिंह ने जनवरी 2014 में दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए कहा था, 'मैं यह नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं। मैं ईमानदारी से यह मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में ज्यादा उदार होगा। राजनीतिक मजबूरियों के बीच मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है। परिस्थितियों के अनुसार मैं जितना कर सकता था, उतना किया है। यह इतिहास को तय करना है कि मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है।'
मनमोहन सिंह का कहना था कि मुझे उम्मीद है कि इतिहास मेरा मूल्यांकन करते समय ज्यादा उदार होगा। मनमोहन सिंह ने ये बात उन सवालों का जवाब देते हुए कही थी, जिनमें कहा गया था कि उनका नेतृत्व 'कमजोर' है और कई अवसरों पर वो निर्णायक नहीं रहे। सिंह ने मीडिया से बात करते हुए बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला था और मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल में 2002 में हुए गुजरात दंगों का भी जिक्र किया था।
सिंह से सवाल किया गया था कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी (उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री) आप पर कमज़ोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगाते हैं, तो उन्होंने कहा था कि वोृ नहीं मानते कि वो एक कमज़ोर प्रधानमंत्री हैं। उनका कहना था, 'यह फ़ैसला इतिहास को करना है। बीजेपी और इसके सहयोगी को जो बोलना चाहते हैं, वो बोल सकते हैं। अगर आपके मज़बूत प्रधानमंत्री बनने का मतलब अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोष नागरिकों का क़त्ल है, तो मैं नहीं मानता कि देश को ऐसे मज़बूत प्रधानमंत्री की ज़रूरत है।'
मनमोहन सिंह को आमतौर पर कम बोलने वाले लोगों में शुमार किया जाता था। उनसे इस मामले में भी सवाल किया गया कि पिछले दस साल में आप पर सबसे ज़्यादा चुप रहने का आरोप लगा है, ऐसी कोई कमी लगती है कि आपको वहां बोलना था और आप नहीं बोल सके? उन्होंने इसके जवाब में कहा, 'जहां तक बोलने का सवाल है, जब भी ज़रूरत पड़ी है, पार्टी फोरम में मैं बोला हूं और आगे भी बोलता रहूंगा।'
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मनमोहन सिंह जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो लोग उन्हें एक ग़ैर राजनीतिक, साफ छवि वाला अर्थशास्त्री के तौर पर देख रहे थे। उनसे पूछा गया कि आगे लोग उन्हें किस रूप में देखें? उनका कहना था, 'मैं जैसे पहले था, वैसा ही आज भी हूँ। इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। मैंने पूरे समर्पण और ईमानदारी के साथ देश की सेवा करने की कोशिश की है। मैंने कभी अपने दफ़्तर का इस्तेमाल अपने मित्रों और रिश्तेदारों के फ़ायदे के लिए नहीं किया।'