Digvijaya Singh: निजीकरण से ख़त्म होगा आरक्षण, मौक़ा पाते ही संविधान बदल देंगे मोदी

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकारी कंपनियों के निजीकरण से उनमें मिलने वाला आरक्षण ख़त्म हो जाएगा, इससे आरक्षण वाली क़रीब 7 लाख नौकरियाँ ख़तरे में पड़ जाएँगी

Updated: Feb 13, 2021, 08:56 AM IST

Photo Courtesy: Hans India
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नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार की निजीकरण की नीति पर करारा हमला किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार जिस ढंग से सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेच रही है, उसका अनुसूचित जाति-जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और अन्य गरीब वर्गों को मिलने वाले आरक्षण पर क्या असर पड़ेगा? दिग्विजय सिंह ने कहा है कि सरकारी कंपनियों में जो आरक्षण मिलता है, वो निजीकरण के बाद खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे साफ़ है कि मोदी सरकार ग़रीबों और वंचित तबकों के पक्ष में नहीं है। कांग्रेस नेता ने यह आरोप भी मोदी सरकार मौक़ा मिलते ही भारतीय संविधान को भी बदल देगी।

राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने ट्विटर के ज़रिए सरकार को घेरते हुए सवाल उठाया है कि मोदी सरकार की निजीकरण और नौकरियों में आरक्षण के बारे में क्या नीति है। कितनी सरकारी कंपनियों का निजीकरण हो चुका है? क्या एससी-एसटी और ओबीसी को मिलने वाली नौकरियाँ ख़त्म हो जाएँगी? कांग्रेस नेता ने यह सवाल सरकारी कंपनियों के निजीकरण से आरक्षण पर पड़ने वाले असर के बारे में एक अख़बार में छपी रिपोर्ट को ट्विटर पर शेयर करते हुए उठाए हैं। 

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि “शासकीय कंपनियों में अजा अजजा पिछड़ा वर्ग महिलाओं व ग़रीब अन्य वर्गों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है जो निजी करण के बाद मिलना बंद हो जाएगा। निजी कंपनीयॉं क्या आरक्षण का लाभ देंगी? नहीं। अब बताइये क्या मोदी जी ग़रीबों के पक्ष में हैं? मौक़ा मिलते ही भारतीय संविधान को बदलेंगे।”

दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार के ताज़ा बजट को भी ग़रीबों की क़ीमत पर अमीरों को फ़ायदा पहुँचाने वाला करार दिया है। राज्यसभा में बजट पर हुई बहस के बाद निर्मला सीतारमण की तरफ़ से दिए गए जवाब पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री के भाषण का कुल मिलाकर यही मतलब था कि ग़रीबों के लिए चंद टुकड़े और अमीरों के लिए मक्खन-मलाई।

हाल में आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार इस साल कम से कम 23 कंपनियों को बेचने के फैसले को मंजूरी भी दी जा चुकी है। 2019 में हुए पब्लिक एंटरप्राइज सर्वे के मुताबिक भारत में 348 सरकारी कंपनियां हैं। जानकारों का मानना है कि अगर सरकार इसी तरह कंपनियों को बेचती रही तो जल्द ही सरकारी कंपनियों की संख्या 300 से घटकर महज़ दो दर्जन रह जाएगी। निजीकरण के बाद इन कंपनियों में अब तक दिए जाने वाले अरक्षण का क्या होगा, यह एक बड़ा सवाल है। 

मिसाल के तौर पर सरकार जिस भारत पेट्रोलियम (BPCL) का 53 फीसदी हिस्सा मोदी सरकार बेचने की तैयारी कर रही है, उसमें रोजगार पर क्या असर होगा? निजीकरण की इस प्रक्रिया में बड़ा सवाल यह है कि अब तक जिन युवाओं को सरकार नौकरियों में आरक्षण मिलता था उनका क्या होगा? अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के युवाओं के रोज़गार का क्या होगा जो आरक्षण की सहायता से रोजगार के अवसर प्राप्त करते आ रहे हैं? एक रिपोर्ट के मुताबिक BPCL में एक जनवरी 2019 तक 11,894 कर्मचारी काम कर रहे थे। इनमें अन्य पिछड़ा वर्ग के 2042, अनुसूचित जाति वर्ग के 1921 और अनुसूचित जनजाति के 743 कर्मचारी थे। इनमें 90 फीसदी को आरक्षण के तहत नौकरियां मिली थीं। कंपनी के निजीकरण के बाद इन सभी पदों पर आरक्षण खत्म हो जाएगा। 

कुछ ऐसी ही हालत उन तमाम सरकारी कंपनियों की होगी, जिनका निजीकरण होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की वजह से करीब 7 लाख आरक्षित नौकरियों पर संकट आने के आसार हैं। कुछ लोग तो यहां तक मानते हैं कि मोदी सरकार निजीकरण पर इतना ज़ोर इसीलिए दे रही है ताकि आरक्षण अपने आप ही खत्म हो जाए।