MP में वरिष्ठ होंगे गरिष्ठ, शिवराज की टेंशन

शिवराज केंद्रीय नेतृत्व, संघ की पसंद और संगठन की युवा चेहरों को मौका देने की कोशिशों के बीच समन्वय कैसे करें?

Publish: May 12, 2020, 03:05 AM IST

मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार अभी भी तय नहीं हो पाया है लेकिन इसको लेकर लगातार कश्मकश जारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रिमंडल विस्तार के लिए माथापच्ची कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या आ रही है वरिष्ठ मंत्रियों को लेकर। मंत्रिमंडल में स्थान सीमित हैं और इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को भी प्रमुखता से जगह देनी है। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व नए लोगों को मौका देना चाहता है। ऐसे में बहुत सारे ऐसे विधायक हैं जो वरिष्ठ हैं, जिनको नजरअंदाज करना मुश्किल है।

दरअसल, इलाका चाहे ग्वालियर-चंबल संभाग का हो या फिर बुंदेलखंड का या फिर मध्य प्रदेश का निमाड़-मालवा, महाकौशल या मध्य क्षेत्र हो, हर तरफ भारतीय जनता पार्टी के पास कई ऐसे नेता मौजूद हैं जो पिछली कई बार से विधानसभा में विधायक हैं। मध्यप्रदेश में 2003 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2018 तक चली। इसके बाद 2018 में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं बनी तो भी भारतीय जनता पार्टी के विधायक बड़ी संख्या में जीत कर आए।  इसीलिए बहुत सारे ऐसे विधायक हैं जो 3 बार या फिर उससे ज्यादा बार चुनाव जीत चुके हैं।

अगर ग्वालियर चंबल संभाग की करें तो यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का ही पलड़ा भारी दिखता है और उनके ही समर्थकों को ज्यादातर मंत्री बनाए जाना है।  लेकिन इसमें भारतीय जनता पार्टी को सुकून इस बात का है कि इस इलाके में बहुत ज्यादा कद्दावर नेता भारतीय जनता पार्टी के पास फिलहाल नहीं हैं क्योंकि इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इसीलिए केवल शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया को छोड़ दिया जाए तो बाकी कोई भी नेता इस इलाके से भारतीय जनता पार्टी में बड़ी दावेदारी नहीं कर रहा है। यशोधरा राजे सिंधिया का मंत्री बनना तय है जबकि दूसरे नाम के तौर पर अरविंद भदौरिया को यहां से जगह मिल सकती है।

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इसके अलावा बुंदेलखंड क्षेत्र में पार्टी के सामने खासी मुश्किल है। सबसे ज्यादा समस्या सागर में ही है। यहां गोपाल भार्गव विधानसभा के सबसे सीनियर विधायक हैं। इसके अलावा भूपेंद्र सिंह भी चौथी बार के विधायक हैं और एक बार सांसद रह चुके हैं। प्रदीप लारिया सागर जिले से ही मकरोनिया क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करते हैं और चार बार विधायक रह चुके हैं इसके अलावा शैलेंद्र जैन भी लगातार तीसरी बार से विधायक हैं। टीकमगढ़ जिले के जतारा से हरिशंकर खटीक और पन्ना से ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह भी सीनियर विधायकों की गिनती में हैं। इसीलिए बुंदेलखंड क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी को नामों को चुनने में खासी मुश्किल हो रही है।

विंध्य क्षेत्र की अगर बात करें तो इस इलाके में बहुत से ऐसे नाम हैं जो लगातार कई बार से विधायक हैं। चाहे वह नागेंद्र सिंह हों या पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला, पंचू लाल साहू,नारायण त्रिपाठी, केदार शुक्ला हो या फिर कोई और। ये लोग कई बार से विधायक हैं और सबको मंत्री पद चाहिए ही है। इनमें केवल राजेंद्र शुक्ला को छोड़ दें तो बाकी किसी को मंत्री बनने का अब तक मौका नहीं मिला है। इसीलिए  इस बार सब ने तगड़ी दावेदारी पेश कर दी है। 

वहीं महाकौशल में भी भारतीय जनता पार्टी को अजय विश्नोई, संजय पाठक जैसे चेहरों को जगह देनी होगी। इसके अलावा मालवा क्षेत्र में अकेले इंदौर में ही कई सारे सीनियर विधायक हो चुके हैं। इनमें मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला महेंद्र हार्डिया जैसे नाम शामिल हैं। इसके अलावा ओमप्रकाश सकलेचा, यशपाल सिंह सिसोदिया, नीना वर्मा जैसे नाम लगातार मंत्रिमंडल में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वहीं निमाड़ से आदिवासी नेतृत्व को भी भारतीय जनता पार्टी को उभारना होगा।

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मध्य क्षेत्र से कमल पटेल मंत्री बन चुके हैं। लेकिन होशंगाबाद से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा इस बार मंत्री बनना चाहते हैं। रायसेन जिले से रामपाल सिंह, सुरेंद्र पटवा की दावेदारी है तो भोपाल से विश्वास सारंग लगातार तीसरी बार से विधायक हैं। कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी को अपने विधायकों को सम्मान देते हुए सिंधिया के लोगों को एडजस्ट करना है और नए  नेतृत्व को आगे बढ़ाना है। ऐसे में मुश्किल चौतरफा है।

आइये नजर डालते हैं कम से कम 3 बार चुनाव जीत चुके भाजपा के वरिष्ठ विधायकों पर जो अभी मंत्री पद के दावेदार हैं -

यशोधरा राजे सिंधिया, गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, प्रदीप लारिया, शैलेन्द्र जैन, हरिशंकर खटीक, ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह, रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया, ओमप्रकाश सकलेचा, यशपाल सिंह सिसोदिया, मोहन यादव, नीना वर्मा, जगदीश देवड़ा, पारस जैन, विजय शाह, अजय विश्नोई, संजय पाठक, रामपाल सिंह, सुरेंद्र पटवा, विश्वास सारंग, सीताशरण शर्मा, राजेंद्र शुक्ला, केदार शुक्ला, पंचूलाल, नागेंद्र सिंह गुढ़, नागेंद्र सिंह।

अब शिवराज के सामने संकट यह है कि इन वरिष्ठ नेताओं में किनकी अनदेखी करें। इसके साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की पसंद, संघ की पसंद और संगठन की युवा चेहरों को मौका देने की कोशिशों के बीच समन्वय बने भी तो कैसे?