मोदी सरकार के एक फैसले से बचाया जा सकता था लाखों लोगों की जान, UK-US में हुए स्टडी का आकलन

अमेरिका और ब्रिटेन में हुई एक स्टडी में कहा गया है कि यदि भारत में लॉकडाउन लगाने को लेकर मार्च के शुरुआत में फैसला हो गया होता तो 90 लाख से 1 करोड़ 30 लाख कोरोना केस रोके जा सकते थे

Updated: Jul 03, 2021, 01:07 PM IST

नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान चारों ओर खौंफनाक मंजर देखने को मिला। वायरस ने देश के लाखों निर्दोष लोगों की जान ले ली। देश में पहली बार इतनी बड़ी आपदा आई जब गांव-गांव में कोई बच्चा अनाथ हुआ, तो किसी महिला का सुहाग उजड़ा, किसी मां की कोख सुनी हुई और कहीं घर का चिराग बुझ गया। लेकिन क्या बर्बादी के इस मंजर को रोका जा सकता था? US-UK की एक स्टडी में आंकलन किया गया है कि भारत में आए इस तबाही को मोदी सरकार की एक कदम रोक सकती थी, लेकिन समय रहते सरकार ने वह कदम नहीं उठाया।

इस अध्ययन का नेतृत्व करने वालों में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में बायोस्टैटिक्स की प्रोफेसर भरमार मुखर्जी और लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के प्रोफेसर स्वप्निल मिश्रा शामिल हैं। अध्ययन का निष्कर्ष यह निकला है कि भारत में दूसरी लहर की सबसे बड़ी वजह कोरोना का तेजी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट था। लेकिन शुरुआती प्रतिबंधों के जरिए इसके फैलाव को नियंत्रित किया जा सकता था। यानी शुरुआती दौर में केंद्र सरकार मामूली प्रतिबंध भी लगा देती तो बर्बादी के यह मंजर देखने को नहीं मिलता। 

अमेरिका और ब्रिटेन के रिसर्च ग्रुप की ओर से की गई इस अध्ययन में पता लगाया गया है कि कैसे महाराष्ट्र में दिसंबर 2020 में ही डेल्टा वैरिएंट की पहचान हो गई और उसके बाद कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे। अध्ययन के विश्लेषण में कहा गया कि 1 मार्च से 15 मई तक भारत में कोरोना के पीक समय के दौरान आंशिक प्रतिबंधों के जरिए भी भारत में हुई 90 फीसदी मौतें रोकी जा सकती थी।

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भारत में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत फरवरी के आखिरी हफ्ते से ही हो गई थी। पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स सरकार को लगातार इस बात की चेतावनी दे रहे थे। लेकिन धड़ल्ले से बढ़ रहे कोरोना के मामलों के बीच देश में चुनावी रैलियां, कुंभ मेला और बड़े सामाजिक कार्यक्रम हो रहे थे। इतना ही नहीं जब मामला कंट्रोल से बाहर चला गया तब भी केंद्र सरकार ने लॉकडाउन लागू नहीं किया था। 

भारत में पहली लहर के दौरान महज कुछ सौ केस आने के बाद ही एकाएक देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई थी और प्रवासी मजदूरों को पैदल घर जाने के लिए विवश होना पड़ा। उधर इसके उलट दूसरी लहर में जब प्रतिदिन 3-4 लाख केस आ रहे थे तब भी देशभर में ट्रेनों का परिचालन निर्बाध रूप से जारी रखा गया। इस बार केंद्र ने लॉकडाउन लगाने की जिम्मेदारी स्थानीय स्तर पर राज्यों को सौंप दी थी।

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सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही देखा जाए तो दूसरी लहर के दौरान करीब ढाई लाख लोगों की मौत हुई। विपक्षी दल इन मौतों का जिम्मेदार सीधे तौर पर केंद्र सरकार को बता रहे हैं, चूंकि अधिकतर मौतें ऑक्सीजन न मिलने, अस्पताल न मिलने और इलाज के आभाव में हुई। लेकिन यह पहला स्टडी सामने आया है जिसमें ये बताया गया कि दूसरी लहर के दौरान हुई 90 फीसदी मौतों को सरकार के एक कदम से रोका जा सकता था।