दफ्तर दरबारी: मरे हुए को मार कर बन रहे हैं तुर्रम खां 

Corruption in MP: मध्‍यप्रदेश में भ्रष्‍टाचार के प्रति जीरो टालरेंस हैं और भ्रष्‍टाचारी को बख्‍शा नहीं जाएगा। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बार यह घोषणा की है। एक रिटायर्ड आईएएस के लिए केस चलाने की अनुमति दे कर सरकार ने यह संदेश भी दिया है मगर इस कहानी में झोल है. माजरा कुछ और ही है.

Updated: May 21, 2023, 01:47 PM IST

मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

एक और आईएएस पर एफआईआर, अब किसका नंबर 

भ्रष्‍टाचार पर आरोपों से घिरी शिवराज सरकार में एक और आईएएस पर अभियोजन की मंजूरी दी गई। विपक्ष कई बार भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी न देने पर सवाल उठा चुका है। ऐसे में रिटायर्ड आईएएस पर शिकंजा कस कर सीएम शिवराज सिंह चौहान की करप्शन पर जीरो टॉलरेंस की नीति के पालन का संकेत दिया है। मगर यह कार्रवाई भी सवालों के घेरे में हैं। एक आईएएस के रिटायर्ड होने बाद अभियोजन की स्‍वीकृति देने तो ठीक है लेकिन अ‍भी तीन दर्जन अधिकारी और हैं जिन पर भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं, उन पर अभियोजन की स्‍वीकृति के लिए फाइल पेंडिंग क्‍यों है? 

रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अंजू सिंह बघेल ने कटनी कलेक्टर रहते हुए आदिवासी की 7.6 हेक्टेयर जमीन अपने बेटे अभियेन्द्र सिंह के नाम स्थानांतरित कर दी थी। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने सितंबर 2017 में शिकायत दर्ज कर जांच शुरू की थी। अब छह सालों बाद आईएएस बघेल के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश करने की अनुमति दे दी गई है। 

आईएएस के रिटायर्ड होने के बाद भ्रष्‍टाचार के मामलों पर कार्रवाई का यह पहला प्रकरण नहीं है। पूर्व मुख्‍य सचिव एम. गोपाल रेड्डी और एसआर मोहंती पर भी भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं। एम. गोपाल रेड्डी पर ईडी जांच शुरू कर चुका है। मोहंती के भत्‍ते रोक दिए गए हैं। 

इन कार्रवाइयों को देख कर लगता है कि सरकार वाकई में भ्रष्‍टाचार को लेकर सख्‍त है मगर आंकड़ें कुछ ओर तस्‍वीर दिखा रहे हैं। मप्र में आईएएस अफसरों के खिलाफ 31, आईपीएस के खिलाफ 3 और आईएफएस पर 2 मामले लोकायुक्त पुलिस में दर्ज हैं। लेकिन इनके लिए अभियोजन की स्वीकृति की फाइल बरसों से लंबित है। सरकार अनुमति दे ही नहीं रही है। ईओडब्ल्यू में भी चार आईएएस के खिलाफ केस चलाने की स्वीकृति मांगी गई है। यहां 15 साल पुराने मामले अटके पड़े हैं।

नियम है कि आईएएस और आईपीएस के खिलाफ अभियोजन की स्‍वीकृति केंद्र सरकार देती है। एफआईआर दर्ज होने के बाद भी राज्‍य सरकार अभियोजन की स्‍वीकृति के लिए मामला दिल्‍ली पहुंचाने में देरी करती है और इस तरह बरसों तक मामले लंबित पड़े रहते हैं। अंजु सिंह बघेल जैसे मामलों में अभियोजन की स्‍वीकृति दे कर जीरो टॉलरेंस दिखाया जरूर गया है कि मगर यह तो ‘निरापद’ अफसरों पर एक्‍शन की सख्‍ती है।

ताकतवर अफसर तरक्‍की पाते जाते हैं और रिटायर्ड हो कर आराम का जीवन गुजारते हैं। रिटायर्ड हो चुके रसूखवाले आईएएस और मलाईदार पदों पर बैठे वर्तमान अफसरों का बाल भी बांका नहीं हो रहा है। इनमें से कुछ के तो ऑडियो/वीडियो भी वायरल हुए हैं फिर भी सरकार चुप है। मालवा में ख्‍यात कहावत के रूप में कहें तो सरकार ‘मरे हुए को मार कर तुर्रम खां’ बन रही है। 

प्रशासन का असमंजस बीजेपी के हिसाब से चले या जनता के 

इंदौर के बेलेश्‍वर मंदिर में रामनवमी को हुए हादसे में 36 लोगों की मौत के बाद प्रशासन ‘धर्म’ संकट में है। बीजेपी नेताओं के प्रभाव के चलते बेलेश्‍वर महादेव झूलेलाल मंदिर में नियम विरूद्ध निर्माण किया गया था और इस कारण हादसा हुआ। अब प्रशासन नियमों का पालन सख्‍ती से कर रहा है तो बीजेपी नेताओं के हित आड़े आ रहे हैं। 

प्रशासन ने 16 मई बेलेश्‍वर मंदिर में बनाए अस्‍थाई शेड को इसी नियम विरूद्ध पाते हुए तोड़ दिया था। अगले दिन वार्ड 81 के सूर्यदेव नगर में प्रशासन ने एक निर्माणाधीन मंदिर को ध्वस्त कर दिया। जिला प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद स्थानीय बीजेपी पार्षद और एमआईसी सदस्‍य बबलू शर्मा भड़क गए। उन्‍होंने पहले मंदिर न तोड़ने के लिए दबाव बनाया फिर धरने पर बैठ गए मगर प्रशासन ने नियम के अनुसार काम किया। उनकी नाराजगी के बाद नगर निगम के दो अधिकारियों को सस्पेंड किया गया है।

बीजेपी नेताओं की फजीहत हो रही है कि वे धर्म के नाम पर वोट तो मांगते हैं लेकिन नियमों का पालन नहीं करते हैं। अब बीजेपी नेताओं के ‘धर्म’ के रास्‍ते में नियम बाधा बन रहे है। प्रशासन संकट में है कि वह नियमों के हिसाब से चले या बीजेपी नेताओं के हिसाब से जिनका मुख्‍य धर्म राजनीति है।  

आईएएस के पास अटक गए शिक्षकों के 2 करोड़ रुपए 

समय पर वेतन-भत्‍ते न मिलने से परेशान प्रदेश के शिक्षकों के दो करोड़ रुपए आईएएस के पास अटक गए हैं। आईएएस चाहेंगे तो यह पैसा जारी हो पाएगा अन्‍यथा बजट लेप्‍स होना तय है। शिक्षक सांसत में हैं कि बजट लेप्‍स हुआ तो उनके दस हजार का क्‍या होगा?  

असल में, राज्‍य शिक्षा केंद्र ने आदेश दिए थे कि प्रदेश के प्रायमरी स्‍कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक टेबलेट खरीद कर प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी करें। शिक्षकों को कहा गया था कि वे अपने पैसे से टेबलेट खरीद कर सत्‍यापन करवाएं। टेबलेट खरीदी सत्‍यापित होने के बाद उनके खाते में दस हजार रुपए आ जाएंगे। सत्‍यापन हुए तीन माह का समय हो गया है लेकिन अब तब शिक्षकों को पैसा नहीं मिला है।

मध्‍य प्रदेश शिक्षक संघ ने जब पड़ताल की तो पता चला कि टेबलेट का पैसा जिलों में भेज दिया गया था। इस बजट के लिए पोर्टल 30 अप्रैल 2023 तक खोला गया था ताकि शिक्षकों को पैसा भेज दिया जाए। रतलाम जिला शिक्षा केंद्र के बाबू इस भरोसे बैठे रहे कि 30 मई तक समय है, आराम से इंट्री कर पैसा भेज देंगे मगर पोर्टल सात दिन पहले ही बंद हो गया। पोर्टल के बंद होते ही टेबलेट के लिए आवंटित पैसा मूल बजट में चला गया। 

अब जिला शिक्षा केंद्र भोपाल में फरियाद कर रहे हैं कि राशि व्यय हो चुकी है, पैसा लेप्‍स होना ठीक नहीं है। शिक्षक टेबलेट खरीद चुके हैं और उन्‍हें पैसा देना है। यह अब आईएएस तथा राज्‍य शिक्षा केंद्र के संचालक धनराजू एस. पर निर्भर है कि वे जिला शिक्षा केंद्र की गफलत को समझ कर पैसा फिर से आवंटित करने की प्रक्रिया करें। तब तक तो शिक्षकों का पैसा डूबा हुआ ही है। 
 
सीएस गए नहीं, अलबत्‍ता मौका चला गया 

मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस को सेवावृद्धि मिल गई है। इस खबर से कई अफसरों की मुराद पूरी हो गई तो कई के दिल मुरझा गए हैं। अपनी खास शैली के कारण चर्चित सीएस इकबाल सिंह बैंस की स्‍ट्रांग लाइकिंग और डिसलाइकिंग हैं और इसी कारण कुछ अफसर उनके प्रिय हैं और कई उनकी फेवरिट अफसरों की लिस्‍ट से बाहर हैं। जो अफसर सीएम की टीम से बाहर हैं वे ऐसे पदों पर हैं जिन्‍हें लूप लाइन माना जाता है। 

सीएस इकबाल सिंह को नवंबर 2022 रिटायर्ड होना था। लूप लाइन में पड़े अफसरों को उम्‍मीद थी कि नए सीएस के आने पर उनके दिन बदलेंगे और वे मुख्‍य धारा में आ जाएंगे। मगर सीएस बैंस को छह माह की सेवावृद्धि मिल गई। तब अफसरों ने छह माह गुजर जाने का इंतजार किया। छह माह पूरे भी नहीं हुए और बैंस को फिर छह माह की सेवावृद्धि मिल गई। यानी वे नवंबर 23 में पदमुक्‍त होंगे। तब तक चुनाव आ जाएंगे।

मुख्‍य धारा के पद को पाने तथा मैदानी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे अफसरों को अब नई सरकार के बनने तक प्रतीक्षा करनी होगी। सीएस के बदल जाने से अपनी गृहदशा बदल जाने की उम्‍मीद पाले बैठे अफसरों को मलाल है कि सीएस तो गए नहीं अलबत्‍ता मैदानी पोस्टिंग पाने का एक मौका हाथ से चला गया।