दफ्तर दरबारी: कौन अपनी, कौन पराई, मामा शिवराज सिंह की बहनों में भेदभाव
MP News: लाड़ली बहन योजना के दायरे में आ रही ढ़ाई करोड़ महिलाओं में से उपहार देने के लिए एक करोड़ बहन चुनने का फार्मूला खोज रहे हैं अफसर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के प्रिय आईएएस ने क्यों चुनी चुप्पी और राज्य प्रशासनिक सेवा में दबंग अफसर के रूप में चर्चित हुए एक अधिकारी ने आईएएस बनने के बाद आखिर क्यों अपनाया विवादों का रास्ता ?

मामा कहे जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव 2023 के लिहाज महत्वाकांक्षी मानी जा रही 'लाडली बहन योजना' का खाका उजागर कर दिया है। 5 मार्च से लाड़ली बहन योजना के फॉर्म भरना प्रारंभ हो जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस योजना में कौन बहन शामिल होगी और कौन नहीं, इसका फार्मूला बनाने में अफसर जुट गए हैं। करीब ढ़ाई तीन करोड़ पात्र महिलाओं से योजना का लाभ लेने वाली एक करोड़ बहनों को चुनने का फार्मूला तय करना सबसे बड़ा सवाल है।
मामा सीएम चौहान की 'लाडली लक्ष्मी योजना' ने देश भर में ख्याति पाई है। अब उन्होंने ‘लाडली बहन योजना' लांच की है। माना जा रहा है कि यह योजना प्रदेश की आधी आबादी के लिए जा रही है ताकि आधे वोटर मामा के साथ खड़े हो सकें। मगर आधे वोटरों को लुभाने के लिए धन जुटाना मुश्किल काम है। सरकार का आकलन है कि योजना शुरू होने पर 5 साल में 60 हजार करोड़ रुपए का खर्च होगा। यानी एक साल में 12000 करोड़ रुपए। इस प्रकार प्रतिमाह एक करोड़ महिलाओं के खाते में एक हजार रुपए भेजे जाएंगे।
चुनाव आयोग के अनुसार जनवरी 2023 में मध्य प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 60 लाख 23 हजार 733 है। बुजुर्ग महिलाओं को वृद्धावस्था पेंशन में 400 रुपए जोड़ कर देने की योजना है। यानि अब अफसरों को ऐसा फार्मूला चुनना है जिसके आधार पर ढ़ाई करोड़ महिलाओं में एक 1 करोड़ ऐसी महिलाओं को चुना जा सके जो मुख्यमंत्री की लाड़ली योजना का लाभ पाएगी।
खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना के लिए पात्रता की शर्तें उजागर की हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए तीन कैटेगरी तय की गई है। इन कैटेगरी में भी पात्र और अपात्र बहन में भेद करने के लिए कुछ शर्तें जोड़ी जाएंगी जैसे लाड़ली लक्ष्मी जो अभी पढाई कर रही है उसे लाड़ली बहन योजना का लाभ नहीं मिलेगा। बीपीएल सूची तैयार करते समय पात्र व अपात्र का फार्म भरा जाता है वैसा ही कुछ लाड़ली बहन को चुनते समय भी किया जा सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा पूरी करने के लिए फार्मूला तैयार करना है तो टेढ़ी खीर क्योंकि एक करोड़ महिलाओं को खुश करते समय डेढ़ करोड़ की नाराजगी का डर जो है।
प्रदीप मिश्रा की कथा में मौत के बाद भी सीएम के प्रिय आईएएस की चुप्पी
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है और समझदार व्यक्ति वही है जो अपने अतीत से सबक लेता है। मगर सीहोर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रिय आईएएस अधिकारी कलेक्टर प्रवीण सिंह ने अतीत से कोई सबक नहीं लिया। सीहोर में कुबेरेश्वर धाम में इस वर्ष पिछले साल से भी ज्यादा बड़ा संकट आया मगर पूरे मामले में प्रशासनिक मुखिया की ‘चुप्पी’ एक राज की तरह उभरी है।
वर्ष 2022 की महाशिवरात्रि के अवसर पर उम्मीद से ज्यादा भक्तों के पहुंचने पर इंदौर-भोपाल मार्ग पर जाम लग गया था। हंगामा हुआ तो तत्कालीन कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर ने कथा वाचक प्रदीप मिश्रा पर कथा रद्द करने का दबाव बनाया था। इसके बाद प्रदीप मिश्रा ने मंच पर रोते हुए कथा समापन की घोषणा की थी। इसके बाद सरकार कथा वाचक प्रदीप मिश्रा के आगे नतमस्तक हो गई थी। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने खुद बात कर कथा आरंभ करने का आग्रह किया था।
इस बार कथा वाचक प्रदीप मिश्रा ने रूद्राक्ष वितरित करने की घोषणा करते हुए लोगों को सीहोर बुलाया। अलग अलग मंच से न्योता दिया गया। परिणाम यह हुआ कि उम्मीद से कहीं ज्यादा लोग सीहोर पहुंच गए। जाम तो लगा ही, एक बच्चे सहित दो महिलाओं की मौत हो गई। अव्यवस्था से लोग बेहाल हो गए मगर कलेक्टर प्रवीण सिंह व्यवस्था बनाने का जतन ही करते रहे, जबकि स्थिति हाथ से निकल चुकी थी। जिस तरह पिछले वर्ष कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर ने प्रशासनिक दक्षता दिखलाई थी, वैसा इस बार नहीं हुआ। साफ है, इस अकुशलता के कारण हालत और बिगड़े।
हालांकि, कुबेरेश्वर धाम में बिगड़े हालत पर मानव अधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सीहोर कलेक्टर प्रवीण सिंह और एसपी मयंक अवस्थी से जवाब मांगा है। इस जवाबतलब की किसे चिंता है? आयोग को जवाब किस प्रशासनिक कुशलता से दिया जाता है, यह तो सभी को पता है। सवाल यह है अपने गृह जिले के जिस आईएएस प्रवीण सिंह की कार्यकुशलता की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की थी वे आईएएस समूचे मामले पर मौन क्यों बने रहे? खासकर तब जब मीडिया और अन्य स्रोत बार बार व्यवस्था बिगड़ने की सूचनाएं दे रहे थे।
कलेक्टर प्रवीण सिंह ने पिछले कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर की तरह भी कदम नहीं उठाया। उन्होंने अपनी प्रशासनिक कुशलता पर प्रश्न उठने देना मंजूर किया। उनकी अगुआई वाला प्रशासन प्रदीप मिश्रा के ‘रोड शो’ और उनकी सुरक्षा की चिंता में ज्यादा परेशान रहा, जनता की फिक्र में नहीं। मामला बिगड़ने पर वे जनता को ही दोष क्यों देते रहे तथा तीन साल के बच्चे की मृत्यु पर भी क्यों कहते रहे कि सरकारी अस्पताल से दवाइयां दी जा रही थी? सोचेंगे तो पाएंगे कि सारे सवालों के जवाब राजनीतिक शह-मात के रास्ते से गुजरते हैं।
अफसरों की वसूली और फर्जीवाड़े को किसकी शह
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्ट और लापरवाह अफसरों को मंच से ही सस्पेंड कर रहे हैं, उनका तबादला कर रहे हैं लेकिन इस सख्ती के बाद भी मध्य प्रदेश में ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की’ वाले हालात बन रहे हैं। जिन पर रक्षा का जिम्मा है वे पुलिसकर्मी व्यापारी का अपहरण कर वसूली कर रहें, उच्च शिक्षा मंत्री का ओएसडी अनुकंपा नियुक्ति पर रिश्वत मांग रहा है और तो और, एक युवक खुद को मुख्यमंत्री का निज सचिव बता कर लोगों को ब्लैकमेल कर रहा है।
सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय के नाम पर ठगी का यह मामला दमोह का है। दमोह निवासी आकाश दुबे ने पिछले कई सालों से खुद को मुख्यमंत्री का निज सचिव बता कर क्षेत्र में रूतबा जमा रख था। उसकी पोल तो तब खुली एसपी राकेश कुमार सिंह के पास शादी का कार्ड पहुंचा। उस कार्ड में आकाश दुबे ने अपने नाम के साथ मुख्यमंत्री निज सचिव छपवाया था। शंका होने पर एसपी ने सीएम ऑफिस से पता किया तो राज खुला। अब आकाश दुबे के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है।
आकाश दुबे जैसे ही दो युवकों ने फर्जी क्राइम ब्रांच के अफसर बन कर अपराध किया। इस काम में उन्हें दो पुलिसकर्मियों का साथ मिला। भोपाल में कोलार निवासी सोने के व्यापारी का दो पुलिसकर्मियों ने अपहरण किया। उससे एक करोड़ रुपए मांगे गए तथा पैसे नहीं देने पर झूठे प्रकरण में फंसाने की धमकी दी गई। कारोबारी ने पांच लाख में सौदा तय किया और पुलिसकर्मियों को रुपए देकर छूटा। मामले की जानकारी गृह मंत्रालय तक पहुंची तो आरोपी पुलिसकर्मियों ने कारोबारी को तीन लाख रुपए लौटा दिए। इस मामले को पुलिस दबाने में जुटी थी और आवेदन नहीं आया कहते हुए एफआईआर से बच रही थी मगर जब पुलिस कमिश्नर प्रणाली पर सवाल उठे तो कार्रवाई की गई। मीडिया में मामला सामने आने के बाद दोनों आरक्षकों को निलंबित कर एफआईआर की गई जबकि दो फर्जी पुलिसकर्मियों की तलाश की जा रही है।
इसी हफ्ते ऑडियो वायरल होने पर उच्च शिक्षा विभाग का रिश्वत कांड भी सामने आया। कहा गया कि यह ऑडियो विभाग के मंत्री मोहन यादव के ओएसडी डॉ. संजय जैन का है। वे कथित रूप से अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों में आवेदकों से हिस्सा मांग रहे हैं। मामले के तूल पकड़ने पर उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने ओएसडी जैन को निलंबित कर मामले की उच्च स्तरीय जांच के निर्देश दिए हैं।
ये सारे मामले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भ्रष्टाचार के खिलाफ नो टॉलरेंस की नीति के दौर के उदाहरण हैं कि किस तरह अफसर और फर्जी अफसर बेखौफ हो कर रिश्वत मांग रहे हैं, वसूली कर रहे हैं। सवाल तो बनता है कि क्या यह सब बिना किसी शह के संभव है?
एक बेहतर अफसर का विवाद से नाता, क्या किताब बनाएगी कलेक्टर
यह भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है कि एक दबंग और बेहतरीन अफसर लगातार विवादों से घिरता चला जाता है और कुछ ही समय में उसके काम की जगह उसके विवादित बोल चर्चा में आ जाते हैं। एक अधिकारी के ये दोनों रूप हमने देखे हैं। यह अधिकारी है आईएएस नियाज खान।
छत्तीसगढ़ के निवासी नियाज खान 2001 में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने थे। पहली बार में 2002 में मंडीदीप में बतौर डिप्टी कलेक्टर नियुक्त हुए थे। यहां उन्होंने नकली सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों पर कार्रवाई की तो जान से मारने की धमकी मिली। वे रूके नहीं। मंडीदीप से शुरू हुआ उनका प्रशासनिक सफर दबंग अधिकारी के रूप में याद किया जाता है। ग्वालियर में रहते हुए नियाज खान ने शिक्षा विभाग की 10 करोड़ की जमीन को कब्जे से मुक्त करवाया था। डबरा के बीहड़ की 300 बीघा जमीन दबंगों से मुक्त करवाकर तीन दिन में शासन के नाम करवाई थी। सैलाना में एसडीएम रहते हुए अवैध खनिज परिवहन पर कार्रवाई की थी।
नियाज खान 2015 में गुना में अपर जिला कलेक्टर बनाए गए थे। नियाज खान ने जिला पंचायत सीईओ के प्रभारी के रूप में देश का सबसे बड़ा खुले में शौच मुक्त घोटाला खोला था। जांच में पाया गया कि गांवों में स्वच्छता, मुक्तिधाम, पीएम आवास में करोड़ों का घोटाला हुआ है। उन्होंने 72 घंटे में गुना के 250 गांवों में मुक्तिधाम बनवा दिए थे। उन्होंने स्कूल निर्माण घोटाला उजागर करते हुए 125 सरपंचों से 1.75 करोड़ की वसूली के आदेश दिए थे।
इतने चमकदार कॅरियर के बाद वे अचानक अपने बयान और किताबों के कारण विवादों में आ गए। पहली बार चर्चा में आए गैंगस्टर अबू सलेम पर लिखी किताब के कारण। फिर 2022 में ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर की गई टिप्पणी के कारण वे विवाद में आए। तब गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने उन पर कार्रवाई करने की बात कही थी। नियाज खान ने हिजाब विवाद में ट्वीट करते हुए लिखा था कि हिजाब हमारे जीवन की सुरक्षा करता है, साथ ही ये हमें प्रदूषण से भी सुरक्षित रखता है, इसलिए हिजाब को प्रोत्साहित करें। इससे लोग कोरोना और वायु प्रदूषण से सुरक्षित रह सकेंगे, हिजाब या नकाब पर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों?
अब तक 6 किताब लिख चुके नियाज खान अब अपनी नई किताब ‘ब्राह्मण द ग्रेट’ के कारण चर्चा में हैं। खान किताब में लिखतें हैं कि ब्राह्मणों का इतिहास गौरवान्वित करने वाला है। किताब में कई बातें हैं जिन पर मतभेद होंगे। और ये मतभेद विवाद को जन्म देंगे।
एक अफसर के इस तरह विवाद से रहने की मंशा के तह में जाते हैं तो एक पीड़ा का सूत्र मिलता है। यह पीड़ा है खुद को तवज्जो नहीं मिल पाने का दर्द। नियाज खान ने 2019 में ट्वीट किया था कि उनके नाम के साथ खान लगे होने के कारण उन्हें अपनी सर्विस के दौरान बहुत कुछ भुगतना पड़ा है और खान सरनेम भूत की तरह उनका पीछा कर रहा है। साफ है कि एक आईएएस मैदानी पोस्टिंग खासकर कलेक्टर बनना चाहता है।
2015 में आईएएस प्रमोट हुए नियाज खान को अब तक कलेक्टरी नहीं मिली है। जबकि उनके साथ और बाद के अफसर कलेक्टर बन चुके हैं। ऐसे में महसूस होता है कि वे किसी तरह अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का जतन कर रहे हैं। देखना होगा कि पहले सरकार की विचारधारा के खिलाफ बोल-लिख कर कोपभाजक बने आईएएस नियाज खान को क्या अब ब्राह्मणों को ग्रेट कहने का कोई फायदा होगा? या उनका यह प्रयास भी खाली ही जाएगा।