दफ्तर दरबारी: ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रिय अफसर पुरुषोत्तम पाराशर हटाए गए या बचाए गए
MP News: निज सचिव पुरुषोत्तम पाराशर पर तमाम आरोप लगे लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कभी अविश्वास नहीं जताया। अब अचानक पुरुषोत्तम पाराशर को हटाया गया है तो क्या इसमें उनकी भलाई ही देखी गई है? स्वास्थ्य विभाग में कैसे बड़े अफसरों को आयुष्मान मिला और सजा एक छोटे बाबू के हिस्से आई?

नेता अपने निजी स्टॉफ में सबसे विश्वस्त व्यक्तियों को नियुक्त करते हैं। ऐसे ही 15 साल पहले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दतिया निवासी पुरुषोत्तम पाराशर को अपना निज सचिव बनाया था। एनटीपीसी में कार्यरत इंजीनियर पुरुषोत्तम पाराशर गुजरे सालों में सिंधिया के सबसे करीबी व्यक्तियों में शुमार किए जाने लगे थे। इतने कि सिंधिया से संपर्क का केंद्रीय सूत्र वे ही बन गए थे। उन पर तमाम आरोप लगे लेकिन सिंधिया ने कभी अविश्वास नहीं जताया। अब अचानक पुरुषोत्तम पाराशर की विदाई कर दी गई है। इस निर्णय के पीछे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि शिकायतों के बाद दंड स्वरूप हटाया गया है। जरा बारीक विश्लेषण करने पर इस कार्रवाई के पीछे भी पाराशर के लाभ का ही कोई सूत्र मिल सकता है।
पूरे मामले को समझने के पहले पुरुषोत्तम पाराशर और उनके रसूख के बारे में जानना आवश्यक है। निजी सचिव पुरुषोत्तम पाराशर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के इतने निकट थे कि पुरुषोत्तम पाराशर से मुलाकात हो जाने को ही सिंधिया से मुलाकात होने मान लिया जाता था। जब 2021 में मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एमपीसीए) के 5 सदस्यों की नियुक्ति की बारी आई तो अपने वर्चस्व वाले इस संस्थान में सिंधिया ने एक सदस्य के रूप में पुरुषोत्तम पाराशर को चुना।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर जब सरकार गिराने के आरोप लगे थे तब निज सचिव पुरुषोत्तम पाराशर ही सबसे ज्यादा चर्चा में थे। सिंधिया समर्थक विधायकों से निरंतर संपर्क में पुरुषोत्तम पाराशर ही थे। पाराशर तब भी विवाद में आए थे जब भांडेर से बीजेपी विधायक रक्षा सिरोनिया के पति संतराम सिरोनिया से टिकट के बदले रिश्वत लेने का कथित वीडियो वायरल हुआ था। तब सिरोनिया और सिंधिया दोनों की कांग्रेस में थे। 2018 के चुनाव के वक्त आरोप लगा था कि टिकट दिलाने के नाम पर पैसे मांगे गए। कांग्रेस ने पुरुषोत्तम पाराशन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग भी की थी।
इतनी लंबी और विश्वस्त सेवाओं के बाद भी सिंधिया ने यदि अपने निज सचिव को हटाया तो इसके कारणों को जानने में सबकी दिलचस्पी है। कहा गया कि अनियमितताओं की शिकायतों के बाद सिंधिया ने पाराशर का साथ छोड़ दिया। आकलन यह भी है कि संघ या संगठन के दबाव में यह फैसला लिया गया है।
इन सबसे अलग एक आकलन यह भी है कि हटा कर सिंधिया ने अपने विश्वस्त अफसर को बचा लिया है। इसे यूं समझ सकते हैं कि गड़बडि़यों के आरोपों के बाद यदि सख्ती होती तो पुरुषोत्तम पाराशर को अधिक बड़ी कार्रवाई झेलनी पड़ सकती थी। इस तरह सिंधिया का दफ्तर भी निशाने पर आ सकता था। संभव है कि सिंधिया ने इन मुसीबतों से बचाते हुए अफसर पाराशर को अपने मूल विभाग में भेज दिया है। वे जब लाइमलाइट में नहीं होंगे तो टारगेट भी नहीं होंगे। इस तरह सिंधिया के अपनी सेवा के बदले प्रतिदान दे दिया है। मामला जो भी हो, फिलहाल सिंधिया के करीबी मंत्रियों और अफसरों के सितारे गर्दिश में हैं।
कलेक्टर कर रहे हैं बीजेपी सरकार का काम आसान
चुनाव करीब हैं और नेताओं के जनता के बीच दिखाई देने का समय आ गया है। मगर इनदिनों मध्य प्रदेश में तस्वीर कुछ उलट है। मंगलवार को जनसुनवाई के समय जनता कलेक्टर तथा अन्य अफसरों के पास अपनी फरियाद लेकर आती है और बाकी के दिन अफसर जनता के बीच पहुंच कर सरकार की छवि चमकाने में जुटे हैं। इसकी बानगी देखिए।
निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर को हटाते समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डिंडोरी के कलेक्टर विकास मिश्रा के काम की प्रशंसा की थी। खासकर जनता की समस्या हल करने के उनके अंदाज की। विकास मिश्रा का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे एक बुजुर्ग आदिवासी महिला के हाथ पर अपना संपर्क नंबर लिख कर देते दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद निवाड़ी जिले के नवागत कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा पद संभालते ही भ्रमण पर निकले और लोगों के बीच पहुंचकर समस्याओं की जानकारी ली। इस दौरान एक व्यक्ति ने कलेक्ट्रेट कार्यालय में पेशी नहीं होने की शिकायत की जिस पर डीएम ने माफी मांगी।
सर्दियों में प्रशासन आसरा घर आदि स्थानों पर अलाव की व्यवस्था करवाता है। शाजापुर में तो कलेक्टर दिनेश जैन खुद बस्ती में गए और वंचितों को कंबल भेंट किए। ऐसा ही काम छिंदवाड़ा में कलेक्टर शीतला पटले और निगम आयुक्त राहुल सिंह ने किया। रतलाम में कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी अतिक्रमण हटवाने सडक़ पर उतरे। सड़क पर दुकानों को देख गुस्साए कलेक्टर ने धमकाया कि अतिक्रमण नहीं हटाया तो दुकान और मकान तोड़ देंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर के कलेक्टर का तो एक वीडियो वायरल हुआ। इसमें वे ठेकेदार को कहते नजर आ रहे हैं, "जल जीवन मिशन में काम न कर ठेकेदार ने गांव का सत्यानाश कर दिया।" कलेक्टर फोन पर कहते सुने गए कि लोगों की दो ही जरूरत की चीजें हैं, एक तो बिजली, दूसरा पानी। पानी वाले ने भी मार डाला और बिजली वाले ने भी मार डाला।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बैठकों में मंत्रियों व अधिकारियों को मैदान में रहने तथा हितग्राही योजनाओं का लाभ पहुंचाने के निर्देश देते रहते हैं। मंत्री और कार्यकर्ता तो मैदान में इस तरह उतरे नहीं लेकिन कलेक्टरों ने मोर्चा संभाल रखा है। हितग्राही को सरकारी योजनाओं का लाभ देने का टारगेट पूरा करना बीजेपी सरकार की ब्रांडिंग करना ही तो है। यानि जब तक नेता मैदान में पहुंचेंगे कलेक्टर आधा काम कर चुके होंगे।
स्वास्थ्य विभाग में बड़़ों को आयुष्मान, छोटे को सजा
स्वास्थ्य विभाग के एक आदेश को देख कर पहली प्रतिक्रिया यही हुई है कि इसे कहते है, छोटी को फंसाना और बड़ी मछली को बचाना। जिस घोटाले में आईएएस का नाम आ रहा हो, जिस घोटाले में 120 अस्पताल शामिल हो, उसमें सब बचे रह गए केवल एक बाबू सस्पेंड हुआ। है न भ्रष्टाचार के खिलाफ कमाल का जीरो टालरेंस!
मध्य प्रदेश आयुष्मान योजना में फर्जी इलाज कर करोड़ों के वारे न्यारे किए गए हैं। इस आरोप पर यकीन नहीं होता अगर खुद स्वास्थ्य विभाग ही इस पर मोहर नहीं लगाता। स्वास्थ्य विभाग द्वारा करवाई गई जांच में खुलासा हुआ है कि आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध मध्य प्रदेश के 620 निजी अस्पतालों में से 120 ने दो सौ करोड़ रुपये का घोटाला किया है। इनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर सहित प्रदेश के ख्यातिप्राप्त निजी अस्पताल भी शामिल हैं। भोपाल और जबलपुर के कुछ अस्पतालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई है। इस मामले में 6 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के सहायक ग्रेड 3 के पद पर कार्यरत आशीष महाजन को सस्पेंड किया गया है। आरोप है कि महाजन पर वेंडरों से लेन-देन, निजी अस्पतालों को डराकर उनसे वसूली करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
यूं तो इस कार्रवाई पर सवाल नहीं उठते मगर कुछ दिन पहले आयुष्मान भारत योजना में कथित दलाली का एक वीडियो वायरल होने बाद तो सवाल उठने लाजमी है। वीडियो में में दस लाख के लेनदेन की बातचीत थी। यह बातचीत आयुष्मान योजना से जुड़े एक निजी अस्पताल के संचालक व आयुष्मान भारत कार्यकाल में तैनात महिला आईएएस के निकट के रिश्तेदार के बीच की बताई गई। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा और कुछ ही घंटे में स्वास्थ्य विभाग के संचालक और आयुष्मान भारत योजना के सीईओ अनुराग चौधरी को हटाकर पशुपालन विभाग में भेज दिया गया। जिस महिला अधिकारी का वीडियो में जिक्र था उनका तबादला इंदौर कर दिया गया।
संदेह यहीं से उपजा है। यह कैसे संभव है कि एक बाबू करोड़ों का घोटाला करता रहा और उस विभाग के दूसरे अफसर अनभिज्ञ बने रहे? जबकि आयुष्मान योजना में घोटाले के आरोप नए नहीं है। 120 अस्पताल से घोटाले में शामिल हैं और कार्रवाई केवल एक बाबू पर? बाबू पर एक्शन हुआ, अफसरों का तबादला कर दूसरा काम दे दिया गया। ऐसी ही होता है बड़ी मछली को बचा कर छोटी को फंसाना।
बीजेपी नेताओं के निशाने पर दमोह कलेक्टर और एसपी
दमोह में धर्मांतरण के मुद्दे पर अफसर बीजेपी नेताओं के निशाने पर हैं। नवंबर में अचानक दमोह के दौरे पर आए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो ने दमोह में चल रहे धर्मांतरण मामले में एसपी एवं कलेक्टर को फटकार लगाई थी. लगातार चार नोटिस जारी कर आयोग ने कलेक्टर एस कृष्ण चैतन्य एवं एसपी की भूमिका पर सवाल उठाते हुए प्रदेश सरकार से भी उनके तबादले की मांग की थी.
आयोग के कहने के बाद भी जब कार्रवाई नहीं हुई तो बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने कलेक्टर व एसपी के विरोध में नारे लगाए थे। इस विरोध प्रदर्शन के बाद दमोह एसपी डीआर तेनीवार का तबादला कर दिया गया है. अब आयोग ने एसपी पर कार्रवाई के लिए डीजीपी को पत्र लिखा है।
आयोग ने दमोह पुलिस द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों को गलत बताते हुए दमोह पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने की बात लिखी है। डीजीपी सुधीर सक्सेना जांच और मामले को लेकर कार्रवाई कर सकते हैं। सात दिनों के अंदर डीजीपी को आयोग को कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपनी होगी।
धर्मांतरण का मुद्दा राजनीतिक मामला भी है। बीजेपी नेता इस मुद्दे पर मुखर रहे हैं। विदिशा में धर्मांतरण के आरोपों को तो सरकार ने ही खारिज कर दिया था। छोटी सी गलती पर अफसरों को सस्पेंड कर देने वाले मुख्यमंत्री चौहान ने यदि इतनी मांग के यदि किसी अफसर को नहीं हटाया तो मांग के औचित्य पर संदेह होता है। कहीं यह राजनीतिक रोटियां सेंकने के उद्देश्य से लगाया गए आरोप तो नहीं हैं?