दफ्तर दरबारी: क्या दिल जीतने में कितने कामयाब होंगे नए कलेक्टर
MP NEWS: 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए गए भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चूक कर गए हैं। इस एक चूक से मध्य प्रदेश के नवेले कलेक्टरों पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई है।
भारत की कुल आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी 8.6 फीसदी है। आदिवासी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहे हैं, लेकिन बीजेपी कुछ दशकों से उसमें सेंध लगा रही है। इस कारण आदिवासी समाज को संदेश देने के लिए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने जैसे कई कदम शामिल हैं जिन्हें राजनीतिक नहीं प्रशासनिक स्तर पर भी लागू किया गया।
एमपी में भी 22 फीसदी वोट रखने वाले आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए पेसा एक्ट लागू करने जैसे कई कार्य किए गए। आदिवासियों को महत्व देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर दिए भाषण में भगवान बिरसा मुंडा का जिक्र किया लेकिन वे यहां एक चूक कर गए। उन्होंने कहा कि 1857 स्वतंत्रता संग्राम से पहले एक आदिवासी थे, जिन्होंने अग्रेंजों की नाक में दम ला दिया था, जिसकी आज भगवान बिरसा मुंडा के रूप में पूजा करते हैं। जबकि तथ्य यह है कि बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में हुआ था।
धरतीबा के नाम से मशहूर बिरसा मुंडा को लेकर हुई तथ्यात्मक चूक का आदिवासी समाज में नकारात्मक असर न हो इसे संभालने का जिम्मा अब प्रदेश के आदिवासी जिलों के कलेक्टरों पर आ गया है। इन जिलों में भी पांच जिलों शहडोल, मंडला, बालाघाट, डिंडौरी और अनूपपुर में बीते सप्ताह ही नए कलेक्टर भेजे गए हैं। हालांकि, इन जिलों में कलेक्टरों को इवेंट मैनेजमेंट की दृष्टि से भी बदला गया है।
प्रदेश की मोहन सरकार पीएम मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार के इवेंट फार्मूले पर चल पड़ी है। हर जिले में रक्षाबंधन और सावन उत्सव आयोजित हो रहे हैं जिसमें मुख्यमंत्री मेजबान होते हैं और महिलाएं मेहमान। कार्यक्रम में कई विकास घोषणाएं होती हैं, सावन उत्सव, रक्षाबंधन होता है। बीते सप्ताह आधी रात हुए प्रशासनिक फेरबदल में ऐसे आईएएस को कलेक्टर हटाया गया है जो इवेंट मैंनेजमेंट की दृष्टि से फिट नहीं थे। इनके बदले 2015 बैच के युवा आईएएस को जिलों की कमान दी गई है। ये आईएएस 9 साल की अपनी नौकरी के बाद भी अब तक कलेक्टर नहीं बने थे।
अब इन युवा अफसरों पर न केवल मोहन सरकार की उम्मीदों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी है बल्कि आदिवासी क्षेत्रों में जनता का बीजेपी सरकार के लिए दिल जीतने का जिम्मा भी है। इस दोहरी जिम्मेदारी पर जो जितना खरा उतरेगा उतनी ही लंबी दूरी तय करेगा।
जिन्हें पसंद के अफसर मिल गए वे नेता ताकतवर
बहुत लंबी प्रतीक्षा के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बीते सप्ताह एक प्रशासनिक सर्जरी को अंजाम दे ही दिया। तबादला सूची में 47 आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का नई जिम्मेदारी दी गई। इनमें कुछ अफसरों को गुणों और आवश्यकता के आधार पर बदला गया जबकि कुछ को दोष के आधार पर। इस दोष का आकलन बीजेपी के जन प्रतिनिधियों की अनुशंसा के आधार पर हुआ है।
बीजेपी सरकार में विधायक-मंत्री और अफसरों के बीच विवाद, असंतोष हमेशा चर्चा में रहा है। कई मंत्री अपने विभाग के अफसरों और विधायक अपने क्षेत्र के आईएएस-आईपीएस की कार्यप्रणाली से नाराज हैं। मोटे रूप से मंत्री और विधायकों की शिकायत के बाद 18 अफसरों को हटाया गया है। यहां तक कि मंडला कलेक्टर सलोनी सिडाना को तो मुख्यमंत्री की यात्रा के कुछ घंटे पहले ही बदल दिया गया। विदिशा कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य से बीजा मंडल विवाद के बाद बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों के नेता नाराज थे। शहडोल कलेक्टर तरुण भटनागर, नीमच कलेक्टर दिनेश जैन, मुरैना पुलिस अधीक्षक शैलेंद्र सिंह चौहान, मंदसौर पुलिस अधीक्षक अनुराग सुजानिया से भी बीजेपी नेता खुश नहीं थे।
प्रमुख सचिव श्रम सचिन सिन्हा को श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल की नाराजगी के कारण हटाया गया है। शहडोल जोन के एडीजी पुलिस डीसी सागर की जनप्रतिनिधियों ने शिकायतें की थी। विजयपुर विधानसभा सीट पर विधानसभा उपचुनाव होना है। यहां मंत्री और भावी उम्मीदवार रामनिवास रावत की पसंद के आईपीएस वीरेंद्र जैन को एसपी बनाया गया है। डॉ. गिरीश कुमार मिश्रा को बालाघाट कलेक्टर के रूप में तीन साल हो गए हैं। उनके काम से सरकार इतनी प्रसन्न है कि उन्हें भोपाल बुलाने की जगह राजगढ़ भेज दिया गया है।
ताजा फेरबदल में जिन नेताओं की शिकायत पर अफसरों को बदल दिया गया है वे खुश हैं। जिनकी सुनवाई नहीं हुई वे निराश है और अब कोशिश कर रहे हैं कि अगली बार उनके मन की सुन ली जाए। फिलहाल, बीजेपी में वे नेता ताकतवर माने जा रहे हैं जिन्हें पसंद के अफसर मिल गए हैं।
साइबर ठगों के निशाने पर कलेक्टर साहब
कलेक्टर जिले का मुखिया होता है। उन्हें राजा कह कर भी संबोधित किया जाता है। सर्वशक्ति सम्पन्न माने जाने वाले कलेक्टर इनदिनों साइबर ठगों के सामने असहाय नजर आ रहे हैं। पिछले सप्ताह साइबर ठगों ने प्रदेश के छह कलेक्टरों के नाम पर ठगी का प्रयास किया है। 7 अगस्त को जालसाजों ने कलेक्टर दीपक सक्सेना के नाम से उनके रिश्तेदार से 25 हजार की ठगी की है। ठग ने साइबर फ्रॉड करते हुए वाट्सऐप पर कलेक्टर दीपक की फोटो लगाई। फिर कई रिश्तेदारों को मैसेज किया। झांसे में आकर एक रिश्तेदार ने 25 हजार ट्रांसफर भी कर दिए गए।
7 अगस्त को ही शिवपुरी कलेक्टर चौधरी के नाम से बने फेक व्हाट्सएप अकाउंट से भोपाल में पदस्थ एवं तत्कालीन शिवपुरी एडीएम विवेक रघुवंशी के पास मैसेज पहुंचा। विवेक रघुवंशी समझदार निकले उन्होंने सीधे कलेक्टर से बात कर ली और आर्थिक हानि नहीं हुई।
ठगी के प्रयासों का खुलासा होने के बाद कलेक्टरों ने सार्वजनिक और व्यक्तिगत मैसेज भेज कर आगाह किया कि पैसे और सहायता मांगने के लिए उनके नाम से भेजे गए संदेश फर्जी हैं, कृपया उन्हें बलॉक कर दीजिए। साइबर ठगी के शिकार आम आदमी हो तो समझ आता है लेकिन जबलपुर, धार, सिवनी, उमरिया, शहडोल और शिवपुरी जिलों के कलेक्टर के नाम से लेनदेन के मैसेज आना सिस्टम पर ही सवाल उठाता है। पैसे मांगने के मैसेज आने पर शक क्यों नहीं होता है? प्रशासन की छवि लेनदेन वाली क्यों बन गई है?
अभी सारे मामले साइबर सेल को सौंप दिए गए हैं और वह जांच कर रही है लेकिन कलेक्टर के नाम पर ठगे गए रूपयों की वापसी कब होगी पता नहीं है। जब जिलों के मुखिया के यह हाल हैं तो साइबर अपराधों के शिकार हुए आम नागरिक के तो पुरसान-ए-हाल नहीं है।
अधिकारी पर भी चढ़ा रील का चस्का
पेरिस ओलंपिक से लौटे खिलाडि़यों से मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि खिलाड़ी मोबाइल और रील में समय बर्बाद करने की जगह अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें। पीएम मोदी को यह कहना पड़ रहा है क्योंक रील को समय और सेहत की बर्बादी बताते हुए अनेक अध्ययन और विशेषज्ञों की सलाहें आई हैं। ये अध्ययन बताते हैं कि सोशल मीडिया प्रसिद्धि पाने के लिए रील बनाना और घंटों रिल्स देखने में प्रोडक्टिव टाइम व्यर्थ चला जाता है।
आमतौर पर रील बनाने का कार्य फुर्सत में किया गया कार्य माना जाता है लेकिन अब सेलिब्रिटिज की तर्ज पर अफसरों को भी रील बनाने का चस्का गल गया है। मध्य प्रदेश में इनदिनों क ऐसे अफसर की चर्चा है जो रील बनाने के लिए कुछ भी कर सकता है। ताजा रील में सैलून में बाल काटने है और चंपी के नाम पर व्यक्ति को पीट देने का वीडियो है। यह रील खुद मैहर के यानी अपर कलेक्टर शैलेंद्र सिंह ने अपने सोशल एकाउंट पर पोस्ट की है। एडीएम शैलेंद्र सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्हें ऐसी फनी रील बनाने का शौक है। वे खुद कहते हैं कि लोगों से ऑफिशियल जुड़ाव अलग है लेकिन उन्हें रील बनाकर सोशल मीडिया पर लोगों से जुड़ना ज्यादा पसंद है। करीब 1 साल से रील बना रहा हूं। मित्र के सैलून में यह वीडियो बनाया।
वीडियो की चर्चा है, साथ में इस बात पर बहस है कि क्या एक अफसर को इस तरह की रील सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी चाहिए? सरकार ने तो अपनी योजनाओं का प्रसार प्रचार करने का काम दिया था, अफसर उस लक्ष्य को यूं पूरा कर रहे हैं।