दफ्तर दरबारी: सीनियर आईएएस की रवानगी, बचा लिए गए मंत्री विश्वास सारंग
एमपी में हुए प्रशासनिक फेरदबल में सबसे खास तबादला एसीएस मोहम्मन सुलेमान का रहा जिन्हें 4 साल बाद स्वास्थ्य विभाग से हटाया गया है। मगर सरकार ने उनके बहाने अपने एक मंत्री को सुरक्षित कर लिया।
लंबे समय से जिस आईएएस ट्रांसफर लिस्ट की प्रतीक्षा थी वह जारी की गई। पहली सूची में 10 वरिष्ठ आईएएस को नई जिम्मेदारी दी गई। इस सूची का सबसे बड़ा फैसला स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा विभाग के दो बड़े अफसरों एसीएस मोहम्मद सुलेमान तथा पीएस विवेक पोरवाल को हटाना था। एसीएस मोहम्मद सुलेमान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीब अफसरों में शामिल रहे हैं। जब तक शिवराज रहे मोहम्म सुलेमान की ताकत कम नहीं हुई। अब उन्हें अपेक्षात कमतर पद देते हुए कृषि विभाग में उत्पादन आयुक्त बनाया गया है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल इस पद पर छह माह भी नहीं रह सके।
यूं तो अफसरों को जिम्मेदारी देना प्रशासनिक व्यवस्था का अंग है लेकिन इस बार ये दो तबादले चर्चा में हैं क्योंकि बीते माह हुए विधानसभा सत्र में नर्सिंग भर्ती घोटाला छाया हुआ था। कांग्रेस नेता प्रतिपक्षा उमंग सिंघार, उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने सदन में तथा युवा कांग्रेस ने सदन के बाहर अपने प्रदर्शन में नर्सिंग घोटाले के लिए तत्कालीन मंत्री विश्वास सारंग, एसीएस चिकित्सा शिक्षा मोहम्मद सुलेमान और तत्कालीन आयुक्त निशांत वरवड़े पर खुल कर आरोप लगाए थे।
विपक्ष का आरोप है कि प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता देने में शासन के निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन हुआ। इसमें ऐसे कॉलेजों को मान्यता दी गई जो या कागजों में चल रहे थे या फिर एक कमरे से संचालित हो रहे थे। कई कॉलेज किसी भी अस्पताल से संबंद्ध नहीं थे। इसका खुलासा होने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर कोर्ट ने 375 से ज्यादा कॉलेजों की जांच सीबीआई को सौंपी थी। नर्सिंग कॉलेजों की जांच के लिए सीबीआई, नर्सिंग अधिकारी और पटवारियों की टीम बनाई गई थी। इसमें जांच में शामिल सीबीआई के अधिकारियों ने रिश्वत लेकर अयोग्य कॉलेजों को योग्य कॉलेज की सूची में शामिल कर दिया। इस मामले में सीबीआई की दिल्ली टीम ने अपने ही अधिकारियों को रिश्वत लेते पकड़ा। इसमें 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
इतनी कार्रवाई पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सख्ती दिखाते हुए अधिकारियों को बर्खास्त करने के निर्देश दिए थे। अब तक एसडीएम, तहसीलदार और नायब तहसीलदारों को ही नोटिस दिए गए थे। जबकि विपक्ष पूरे विधानसभा सत्र में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को कटघरे में खड़ा करता रहा। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा था कि शासन में बैठे लोग नर्सिंग काउंसलिंग को अपने हिसाब से टेकओवर करके चलाते रहे। इसमें सीधा-सीधा घोटाले करने वाले ये लोग हैं, ये बड़े मगरमच्छ हैं। इन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए, ना की छोटी मच्छलियों पर।
अब सरकार ने बड़ी मछली कहे गए आईएएस मोहम्मद सुलेमान को हटा दिया है। आईएएस को महज कमतर विभाग मिलने की सजा मिली है। इस कदम से यह संदेश गया है कि सरकार ने विभाग के दो बड़े अफसरों को हटा कर कार्रवाई की इतिश्री कर दी और मंत्री विश्वास सारंग को बचा लिया मगर विपक्ष का सवाल तो अब भी कायम है कि मंत्री सारंग भी दोषी हैं, उन पर कार्रवाई कब होगी?
शिव गए लेकिन राज कायम है...
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ताजा प्रशासनिक सर्जरी के जरिए कई प्रशासनिक संदेश दिए हैं लेकिन बीजेपी नेताओं में खास तरह की राय बनती जा रही है। यह राय है कि ब्यूरोक्रेसी का फिर से हावी होना। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान की विदाई के बाद डॉ. मोहन यादव ने स्थापित अधिकारियों को बदल कर संदेश दिया था कि चेहरा ही नहीं शासन का तरीका भी बदल गया है। बीजेपी नेताओं को उम्मीद बंधी थी कि शिवराज सिंह चौहान के जमाने में जो बुराई सिस्टम में घर कर गई थीं वह मोहन यादव के राज में पैर नहीं जमा पाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मोहन यादव सरकार को 8 माह हुए हैं और ब्यूरोक्रेसी के हावी हो गई है और बीजेपी नेता, विधायक ही नहीं मंत्री भी परेशान हो गए हैं।
दबे छिपे यह बात रोज ही होती है लेकिन बीते दिनों सार्वजनिक हो गई जब इंदौर में आयोजित बैठक में पंचायत एवं ग्रामीण विकास, श्रम मंत्री प्रह्लाद पटेल ने श्रम अधूरे दस्तावेज देखकर पटेल ने सख्त लहजे में कहा कि हम भी भारत सरकार से आए हैं, हमें सिखाने की कोशिश मत करो। इसके कुछ दिन पहले कृषिमंत्री एंदल सिंह कंसाना का दर्द एक प्रेस वार्ता में उजागर हुआ। सांसद शिवमंगल सिंह तोमर के साथ एक प्रेसवार्ता बुला कर मंत्री एंदल सिंह कंसाना कानून व्यवस्था को चौपट बताते हुए पुलिस विभाग के बड़े अफसरों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि मुरैना जिले के एक टीआई रिश्वत लेते हैं और झूठा केस दर्ज करते हैं। वे यह भी कह गए कि यह बात डीजीपी और सीएम को भी पता है।
बीजेपी के विधायक प्रीतम सिंह लोधी ने वीडियो जारी कर इस्तीफे देने तक की बात कह डाली थी, जबकि भोपाल के विधायक रामेश्वर शर्मा ने आरटीओ की कार्यप्रणाली से दु:खी हो कर परिवहन मंत्री उदय प्रताप सिंह को एक पत्र लिखा और क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी जितेंद्र शर्मा को हटाने की मांग रख दी। पिछोर विधायक प्रीतम लोधी तो एक होमगार्ड जवान से ही परेशान हो गए। होमगार्ड जवान से तंग आ कर उन्होंने वीडियो जारी कर इस्तीफा देने की धमकी दे दी।
इन नेताओं ने तो अपना दर्द खुल कर कह दिया लेकिन कई हैं जो कड़वा घूंट पी कर चुप हैं। अब तो वे कहने लगे हैं कि ‘शिव’ भले ही चले गए लेकिन ब्यूरोक्रेसी का राज यहीं रह गया है।
इन्हें पुनर्वास तो उन्हें कलेक्टर बनने की चिंता
शुक्रवार शाम हुए प्रशासनिक फेरबदल से एक बात और साफ हो गई है कि वरिष्ठ आईएएस राजेश राजौरा ने मुख्य सचिव की कुर्सी की ओर एक कदम और बढ़ा दिया है। उनके जितने भी प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं वे या तो प्रदेश के बाहर हैं या मंत्रालय के बाहर। कुछ को कमतर पदों पर भेज कर संकेत दे दिया गया है।
इसके साथ ही वर्तमान मुख्य सचिव वीरा राणा के पुनर्वास का प्लान भी तैयार हो गया है। अब तक सेवानिवृत्ति के बाद मुख्य सचिव (सीएस) को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जाता रहा है। माना जा रहा है वीरा राणा भी इसी पद पर भेजी जाएंगी। इसके संकेत वर्तमान राज्य निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह को दिए गए सर्विस एक्सटेंशन से मिले है। 2018 में राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए बीपी सिंह का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हुआ। राज्य सरकार ने उनका कार्यकाल नए आयुक्त की नियुक्ति तक बढ़ाया है। यह किसी भी स्थिति में छह माह से अधिक नहीं होगा। वर्तमान सीएस वीरा राणा सितंबर में रिटायर हो रही हैं। साफ दिखाई दे रहा है कि वे अगली राज्य निर्वाचन आयुक्त होंगी।
मुखिया के पुनर्वास के संकेतों को समझा जाने लगा है लेकिन 2015 बैच के आईएएस समूह का कलेक्टर बनने का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। मप्र में कैडर व्यवस्था इतनी बिगड़ी हुई है कि आईएएस को सेवाकाल के 5 वर्ष बाद भी मैदानी पोस्टिंग नहीं मिल रही है अन्यथा अन्य प्रदेशों में आईएएस आमतौर पर 6 से 8 साल कलेक्टर रह लेते हैं। यहां 2015 बैच के आईएएस 9 साल की नौकरी के बाद भी कलेक्टर नहीं बन पाए हैं। कुछ ही बरस में नई बैच सामने आएंगी और मैदानी पोस्टिंग का समय निकल जाएगा। इसके पहले वे जिलों का मुखिया होने का सुख उठाना चाहते हैं। इस ख्वाहिश को लिए वे बेसब्री से तबादला सूची का इंतजार कर रहे हैं।
धरे रह गए खास, छुपे रूस्तम को मिला मौका
मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी टीम चुनने के मामले में हर बार अप्रत्याशित फैसला करने वाले वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर चौंकाया है। केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनने के बाद से ही उनके निज सचिव के रूप में कई अफसरों के नाम चर्चा में थे। कयास थे कि वे उन अफसरों में से किसी एक आईएएस को अपना निज सचिव चुनेंगे जो मुख्यमंत्री रहते हुए उनके सबसे प्रिय थे। इन नामों में आईएएस मनीष सिंह, आईपीएस आशुतोष सिंह जैसे नाम भी शामिल थे।
मगर शिवराज सिंह ने तो कुछ और ही सोच रखा था। उन्होंने दक्षिण के मूल निवासी एमपी कैडर के आईएएस इलैयाराजा टी. को अपना निज सचिव चुना। मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के प्रबंध संचालक इलैया राजा टी इंदौर, रीवा, भिंड और जबलपुर में कलेक्टर रह चुके हैं। इलैया टी राजा की गिनती कर्मठ और ईमानदार अफसरों में होती है। इंदौर में किए गए उनके कार्यकाल के बाद से ही वे शिवराज सिंह चौहान की गुड बुक में आ गए थे।