दफ्तर दरबारी: ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रिय अफसर को हटाने की साजिश किसने की
क्या मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार सिर से ऊपर निकल गया है? इतना कि बीजेपी के नेता केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को शिकायत करें। इस शिकायत पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी खत लिखें और उसी दिन अफसर का तबादला करना पड़े। बीजेपी खंडन करे कि पत्र नितिन गडकरी ने नहीं लिखा तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादत्यि सिंधिया के प्रिय अफसर का तबादला क्यों हुआ?

बीते सप्ताह नगरीय निकाय चुनाव परिणाम की धूम के बीच अचानक मध्य प्रदेश के परिवहन आयुक्त मुकेश जैन का तबादला कर दिया गया। आईपीएस मुकेश जैन तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाते हैं। अचानक हुए इस तबादले के कारण की पड़ताल शुरू हुई।
तभी एक खात वायरल हुआ। यह खत केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का बताया गया। उनके लेटर हेड पर भेजा गया यह खत सरकार को हिलाने के लिए काफी था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को लिखे इस खत में मध्यप्रदेश की सीमाओं पर ट्रांसपोर्ट विभाग की चेक पोस्ट पर होने वाली अवैध वसूली पर सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था।
नितिन गडकरी ने इस कथित पत्र में बीजेपी के नागपुर पूर्व के महामंत्री और नागपुर ट्रांसपोर्ट अघाड़ी (एसोसिएशन) के अध्यक्ष जेपी शर्मा की शिकायत का उल्लेख किया है। कहा गया कि जेपी शर्मा ने 16 जुलाई को गडकरी के नागपुर में जयप्रकाश नगर स्थित निवास पर उनसे स्थानीय ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन प्रतिनिधि मंडल के साथ मुलाकात कर मप्र में ट्रांसपोर्ट विभाग की चेक पोस्ट पर बेखौफ होने वाली अवैध वसूली के संबंध में शिकायत की थी। उसके बाद यह चिट्ठी लिखी गई।
अब यह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की कथित चिट्ठी का असर कहा जाए है या संयोग मगर जब पत्र जिस तारीख को लिखा गया उसी दिन परिवहन आयुक्त मुकेश जैन को हटा दिया गया। जबकि उनकी शिकायत तो लंबे समय से की जा रही थी।
हालांकि, बीजेपी ने पत्र का फर्जी बताया। परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने भी कहा कि उन्हें कोई खत नहीं मिला है। न गडकरी की ओर से खंडन हुआ न सरकार ने फर्जी खत को लेकर कोई कार्रवाई ही की। कार्रवाई हुई तो परिवहन आयुक्त पर। यानि खत भले फर्जी हो, सरकार ने माना कि उसमें लगाए गए आरोप सच्चे हैं?
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के हटते ही राजनीतिक गुणाभाग की चर्चा भी शुरू हो गई। परिवहन विभाग ज्योतिरादित्य सिंधिया के कोटे में आता है। उन्हीं के समर्थक गोविंद सिंह राजपूत परिवहन मंत्री हैं और परिवहन विभाग का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी पसंद के अफसर आईपीएस मुकेश जैन को बनवाया था।
कहा गया कि पसंदीदा अफसर को हटाने के पहले मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को जानकारी भी नहीं दी गई। उन्हें दूसरी बार ऐसा झटका दिया गया हे। इसके पहले गुना पुलिस कर्मचारी हत्याकांड में लापरवाही का आरोप लगाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रिय अफसर ग्वालियर रेंज के आईजी अनिल शर्मा को हटा दिया गया था।
कहा जा रहा है कि गडकरी का पत्र तो एक बहाना है, असल में ग्वालियर से सिंधिया के प्रिय अफसर को हटाना था। जैसे, ग्वालियर आईजी को हटाया वैसे ही मौका मिलते ही ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को रवाना कर दिया। सिंधिया को यह झटका तब लगा जब ग्वालियर में महापौर प्रत्याशी हार का जिम्मेदार उन्हें ही कहा जा रहा है। यानि सिंधिया के लिए दुबले और दो आषाढ़ वाली बात हो गई है।
सीएम के पीएस से किसने निकाली खुन्नस
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रमुख सचिव होना आईएएस बिरादरी की मनचाही पोस्ट होती है। फिलहाल आईएएस मनीष रस्तोगी मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव यानि पीएस हैं। सख्त और टू दी पाइंट बात करने वाले मनीष रस्तोगी नई जिम्मेदारी में अधिक सख्त हो गए हैं। यह आरोप आम जनता नहीं उन्हीं की बिरादरी के अफसर लगाते हैं, मगर इस सप्ताह ऐसा कुछ हुआ कि युवा आईएएस की शिकायत के बहाने किसी ने सीएम के पीएस मनीष रस्तोगी से खुन्नस निकाल ली।
हुआ यूं कि बीते दिनों महिला आईएएस के व्हाटस एप ग्रुप में 2011 बैच की आईएएस नेहा मारव्या ने एक पोस्ट कर अपनी आपबीती सुनाई। इसका पोस्ट का लब्बोलुआब यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी के पास जब वे पदभार ग्रहण करने गई तो उन्होंने बहुत जलील किया। वरिष्ठ आईएएस मनीष्ज्ञ रस्तोगी ने कहा कि उन्हें पीए के सामने गेटआउट कहा। आईएएस नेहा मारव्या ने कहा कि पीएस मनीषा रस्तोगी की भाषा धमकी वाली थी।
युवा महिला आईएएस ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव और पॉवरफुल आईएएस मनीष रस्तोगी से मिल रही प्रताड़ना पर अपनी ही सीनियर आईएएस से सहायता की उम्मीद की थी मगर सहायता मिलना तो दूर किसी ने पोस्ट लिक कर दी। इस पोस्ट से पीएस मनीष रस्तोगी की कार्यप्रणाली पर सवाल जरूर उठे मगर उनके पॉवर के चलते कोई भी युवा महिला आईएएस नेहा मारव्या की सहायता के लिए आगे नहीं आया। अलबत्ता आईएएस में दो ग्रुप जरूर बन गए हैं। एक मनीष रस्तोगी को सही ठहरा रहा है तो दूसरा ग्रुप नेहा मारव्या के साथ सहानुभूति रखे हुए हैं। नेहा को बस इतनी सहानुभूति ही हासिल हुई है।
हालांकि, आईएएस ग्रुप संचालक तलाश रहे हैं कि पोस्ट किसने लिक की है, मगर चर्चा है कि पीएस मनीष रस्तोगी के बुरे बर्ताव से परेशान किसी दूसरे आईएएस ने ही पोस्ट लिक कर दी। वे चाहती होंगी कि नेहा मारव्या की शिकायत सामने आ जाए तो पीएस के तेवर कुछ कम हों ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। फिलहाल तो नेहा मारव्या को आगे रख निशाना साधा जा चुका है, देखना होगा तीर कितना निशाने पर लगता है।
इंदौर के अफसरों ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया
कृषि प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के किसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार के एक फैसले ने कृषि विद्यार्थियों व रिसर्चर्स को आक्रोशित कर दिया है। इंदौर के प्रशासन ने सिटी फारेस्ट डेवलप करने के बहाने कृषि अनुसंधान केंद्र को हटाने का निर्णय ले लिया है।
इस अनुंसाधन केंद्र का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने कृषि शोध के लिए उपयुक्त जमीन के लिए व्यापक सर्वे किया था तब इस जगह को शोध के लिए एकदम सही पाया था। 1935 में इंदौर आए महात्मा गांधी ने भी इस केंद्र का अवलोकन कर इसके कार्यों की प्रशंसा की थी।
यूं तो किसी संस्थान को हटाना प्रशासनिक निर्णय हो सकता है मगर इस संस्थान को हटाना केवल प्रशासनिक निर्णय होता तो बात अलग होती मामला तो कृषि शोध से जुड़ा है। जमीन जाते ही वहां जारी शोध का डेटा भी खत्म हो जाएगा। किसान नेता केदार सिरोही का यह सवाल वाजिब लगता है कि प्रदेश मे 32% जंगल खत्म हो गए किंतु उन्हें विकसित करने की तरफ सरकार का रुझान नहीं हैं।
साफ है कि प्रशासन ने सिटी फारेस्ट डेवलप करने की ताजा स्कीम के तहत ऐसा फैसला ले लिया जो कृषि शोध को ही खत्म कर देगा। इतना ही नहीं प्रशासन की मंशा लीक हो गई या कर दी गई और अनुसंधान केंद्र को शिफ्ट करने वाली जगह पर भू माफिय सक्रिय हो गए। नतीजतन उस प्रस्तावित क्षेत्र में जमीनों के दाम आसमान छूने लगे हैं। प्रभावशाली लोग वहां पहले ही जमीन खरीद कर वारे न्यारे कर चुके हैं।
खबर है कि अफसरों ने इस फैसले के पहले शहर के वरिष्ठ जन प्रतिनिधियों को भी विश्वास में नहीं लिया। भू-माफिया सचेत हो गए और जन प्रतिनिधि को भनक तक नहीं लगी। अब नेता पसोपेश में ही सड़क पर उतरे कृषि विद्यार्थियों का समर्थन करें या अफसरों के निर्णय पर चुप रह जाएं?