जी भाई साहब जी: भाई की सक्रियता पर ताई का संतुलन, बीजेपी नेताओं में निराशा के बादल
एमपी में पिछले दिनों सत्ता परिवर्तन की अटकलें तेज हुई थीं. इंदौर में भाई कहने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की सक्रियता को इससे जोड़ा गया. मगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ताई सुमित्रा महाजन की विशिष्ट मुलाकात भाई की सक्रियता रोकने के लिए ताई संतुलन के रूप में देखी जा रही है।
व्यावसायिक राजधानी इंदौर बीजेपी की राजनीति का भी पॉवर सेंटर है। यहां भाई यानी कैलाश विजयवर्गीय और ताई यानी सुमित्रा महाजन के बीच वर्चस्व का संघर्ष सर्वविदित है। लोकसभा अध्यक्ष रही सुमित्रा महाजन पिछले दिनों अस्वस्थ थीं और इस कारण सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम दिखाई दीं। लेकिन वे अचानक चर्चा में आईं जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उनकी मुलाकात हुई।
मुख्यमंत्री चौहान इंदौर गए थे तब ताई से मुलाकात की इच्छा जताई थी। बाद में उन्होंने ताई के लिए अपना सरकारी हेलीकॉप्टर इंदौर भेजा। भोपाल में ताई और सीएम चौहान के बीच लंबी बातचीत हुई। इसके बाद ताई बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से भी मिलीं। दावा किया जा रहा है कि इंदौर में अहिल्या स्मारक ट्रस्ट के रजिस्ट्रेशन, जमीन आदि को लेकर चर्चा हुई है।
पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को लेने के लिए हैलीकॉप्टर भेजने और भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लंबी बातचीत के अपने अर्थ तलाशे जा रहे हैं। यह पड़ताल स स्वाभाविक भी है। इंदौर की राजनीति को जानने वाले समझते हैं कि जब जब कैलाश विजयवर्गीय की सक्रियता बड़ी है, उनकी उड़ान रोकने के लिए ताई गुट को आगे किया गया है।
इसबार भी ऐसा ही हुआ। जब गृहमंत्री अमित शाह भोपाल में थे तब इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात हुई थी। इस आत्मीय मुलाकात का राजनीति की नई जुगलबंदी के रूप में देखा गया। फिर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा इंदौर गए तो उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय से अलग से मुलाकात की जबकि यह मुलाकात पूर्व निर्धारित नहीं थी।
कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय महासचिव जरूर है लेकिन उनसे पश्चिम बंगाल का प्रभार ले लिया गया है। वे अपनी सक्रियता के मोर्चे तलाश रहे हैं। ऐसे में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात को मध्य प्रदेश में राजनीतिक प्रेशर ग्रुप के रूप में देखा गया है।
माना जा रहा है कि इस सक्रियता को बढ़ता देख संतुलन के लिए ताई गुट को तवज्जो दी गई है। मुख्यमंत्री चौहान ने ताई सुमित्रा महाजन से विभिन्न मुद्दों के अलावा मराठी वोट बैंक को लेकर भी चर्चा की ही होगी। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ताई का मैदान में होना भाई गुट की सक्रियता को प्रभावित करेगा ही।
सत्ता परिवर्तन की ताक में बैठे बीजेपी नेता फिर निराश
गृहमंत्री अमित शाह की भोपाल यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की जो अटकलें तेज हुई थीं वे निर्मूल साबित हुई हैं। राजनीतिक घटनाक्रम और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अंदाज तो यही बता रहा है कि सत्ता परिवर्तन की आस में बैठे बीजेपी नेताओं के हाथ एक बार फिर निराशा ही लगी है।
हर बार की ही तरह अमित शाह का दौरा खत्म हुआ तो शिवराज विरोधी खेमे ने आस लगाई कि अब तो चौहान चुक गए हैं। सत्ता गई उनके हाथ से। ये अटकलें और बलवती हुईं जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली गए और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले। मगर जब शिवराज दिल्ली से लौटे तो उनके हाथ खाली नहीं थे बल्कि चेहरे पर विश्वास था। हाईकमान से मिले फी हैंड का विश्वास।
दिल्ली से लौटने के बाद मुख्यमंत्री उत्साह से काम में जुट गए। प्रशासनिक फैसलों में ही नहीं राजनीतिक फैसलों में भी दिल्ली से मिली ताकत दिखाई देना तय है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बुलावे पर जन्मदिन पर 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल मध्य प्रदेश आ रहे हैं बल्कि महिला स्वसहायता समूह कार्यक्रम में हिस्सा भी ले रहे हैं। यह एक ‘बांडिंग’ दिखा रहा है जो उन लोगों को निराश कर रही है जो मान कर चल रहे थे कि शिवराज का असर कम हो गया है।
उमेश शर्मा के बहाने असंतोष की अभिव्यक्ति
बीते सप्ताह बीजेपी के प्रखर प्रवक्ता उमेश शर्मा का देहांत हो गया। उन्हें गुजरात चुनाव अभियान का जिम्मा दिया गया था। गुजरात से इंदौर आए उमेश शर्मा की तबीयत बिगड़ी और इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। कम उम्र में उनके चले जाने और उनकी प्रखरता को जितना याद किया गया उतनी ही प्रमुखता से यह बात भी रेखांकित की गई कि राजनीतिक रूप से उन्हें नजरअंदाज किया गया था। उमेश शर्मा के साथ हुए राजनीतिक भेदभाव से उभरे क्षोभ ने बीजेपी नेताओं में पनप रहे असंतोष को व्यक्त किया है।
उमेश शर्मा के मित्र तथा परिचितों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए बार-बार याद किया कि वे विधायक, महापौर, पार्टी जिलाध्यक्ष सहित तमाम जिम्मेदारियों के लिए उपयुक्त थे। दावेदार भी थे। मगर हर बार पार्टी ने उनकी जगह किसी ओर को चुना। उनके हिस्से में हरबार बलिदान ही आया। वे प्रवक्ता बनाए गए मगर यहां भी उनकी सक्रियता कई नेताओं को चुभती थी। प्रतिभा को नजरअंदाज कर दिए जाने की पीड़ा उनकी सोशल मीडिया पोस्ट में जब तब व्यक्त हो ही जाती थी।
उमेश शर्मा के न रहने के बाद कई बीजेपी नेता स्वयं को हाशिए पर धकेल दिए जाने का दर्द बयान कर रहे हैं। इस सिलसिले में पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रहे दीपक विजयवर्गीय की सोशल मीडिया पोस्ट भी महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि बिना गॉडफादर के राजनीति धीमा जहर है।
साफ है, उमेश शर्मा, दीपक विजयवर्गीय जैसे अनेक प्रतिभावान राजनेता हैं जिनके लिए गॉडफादर के बिना राजनीति धीमा जहर साबित हुई है। ऐसे राजनेताओं की सूची लंबी हैं जिन्हें पर्याप्त गुणी होने के बावजूद पीछे धकेल दिया गया है।
मध्यप्रदेश में आखिर जीत ही गए किसान, श्रेेय पर राजनीति
इंदौर कृषि कॉलेज की जमीन को बचाने के लिए चल रहा छात्रों का आंदोलन अंतत: सफल हो ही गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर में निर्देश दिए हैं कि कृषि कॉलेज की जमीन का उपयोग यथावत रखा जाएगा। जमीन को किसी और काम के लिए अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। यह 55 दिनों के आंदोलन और खेती किसानी की जीत है। कमरों में बनी अफसरों की अफलातूनी योजना पर आखिर सरकार को बैकफुट पर आना ही पड़ा।
गौरतलब है कि इंदौर के प्रशासन ने सिटी फारेस्ट डेवलप करने के बहाने कृषि अनुसंधान केंद्र को हटाने का निर्णय ले लिया था। इस अनुंसाधन केंद्र का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने कृषि शोध के लिए उपयुक्त जमीन के लिए व्यापक सर्वे किया था तब इस जगह को शोध के लिए एकदम सही पाया था। 1935 में इंदौर आए महात्मा गांधी ने भी इस केंद्र का अवलोकन कर इसके कार्यों की प्रशंसा की थी।
यूं तो किसी संस्थान को हटाना प्रशासनिक निर्णय हो सकता है मगर इस संस्थान को हटाना केवल प्रशासनिक निर्णय होता तो बात अलग होती मामला तो कृषि शोध से जुड़ा है। जमीन जाते ही वहां जारी शोध का डेटा भी खत्म हो जाना था। इस फैसले के विरोध में छात्रों ने 55 दिन तक लगातार अलग-अलग तरीके से विरोध जताया था। कई संगठनों का भी उन्हें साथ भी मिला।
हालांकि श्रेय एबीवीपी को दिया गया। रविवार को मुख्यमंत्री चौहान जब इंदौर में थे तो एबीवीपी के प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात की। इसके बाद सीएम शिवराज ने जमीन का उपयोग नहीं बदले जाने का आश्वासन दिया। आकलन है कि कृषि विद्यार्थियों का दबाव इतना बढ़ गया था कि सरकार को अपने फैसले से पलटना ही था। भागते भूत की लंगोटी काफी की तर्ज पर एबीवीपी प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात के बाद यह फैसला लिया गया ताकि सफलता का श्रेय किसी और संगठन या किसान कांग्रेस के हिस्से में जाने से बचाया जा सके।