जी भाईसाहब जी: सीधी कांड में बीजेपी की तिकड़म, दिखाना भी है, बचाना भी है
Sidhi Viral Video: राजनीति में जो दिखता है वैसा होता नहीं है। राजनेता वह दिखाने का प्रयास करते हैं जो सच है ही नहीं। सीधी वायरल वीडियो मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। आदिवासियों को लुभाने के जतन के बीच ऐसा अमानवीय कृत्य करने वाले नेता से बीजेपी ने किनारा कर लिया है। इस मामले पर दिखाने और बचाने का बीजेपी का स्टैंड और सरकार की कार्रवाई ही संदेह के घेरे में है।

आदिवासियों पर अत्याचार भी वोट की गुहार भी
कुछ माह में मध्यप्रदेश में चुनाव होना है और आदिवासी वोट बीजेपी का लक्ष्य। यही कारण है कि बीते दो साल से बीजेपी आदिवासियों को आकर्षित करने के लिए हर तरह के जतन कर रही है। पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासियों के लिए योजना लांच करने के लिए अभी 1 जुलाई को ही शहडोल आए थे। इसके पहले 2021 में वे भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस में शामिल हो चुके हैं। गरज यह कि 2018 की तरह आदिवासी वोट का साथ कांग्रेस के हाथ में चला जाए।
इस राजनीतिक जुगत के बीच आदिवासी अत्याचार पर बीजेपी सरकार बार-बार घिर जाती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश 2020 में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले 2019 की तुलना में 25 फीसदी बढ़ गए। इस तरह आदिवासी अत्याचार के मामलों में मध्य प्रदेश शीर्ष पर है। इन आंकड़ों के इतर व्यवहार आदिवासियों के साथ कैसा बर्ताव होता है यह सीधी के वायरल वीडियो से पता चलता है। 'आदिवासी' मजदूर पर पेशाब करने वाला वीडियो वायरल हुआ तो पता चला कि आरोपी प्रवेश शुक्ला बीजेपी नेता है। वह विधायक केदार शुक्ला का प्रतिनिधि रह चुका है।
इस अमानवीय और शर्मनाक वीडियो के जारी होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आरोपी पर सख्त कार्रवाई होगी। उसके विरूद्ध रासुका भी लगाई जाएगी। लेकिन बीजेपी ने सबसे पहले आरोपी से पल्ला झाड़ने का काम किया। बयान जारी कर कहा गया कि आरोपी प्रवेश शर्मा बीजेपी पदाधिकारी नहीं है। यहां तक कि विधायक केदार शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि प्रवेश शुक्ला का उनसे कोई लेना देना नहीं है। जबकि आरोपी के पिता का कहना है कि उनका बेटा विधायक प्रतिनिधि है और इसलिए राजनीतिक षड्यंत्र हो रहा है।
बीजेपी और विधायक केदार शुक्ला ने जब आरोपी से पल्ला झाड़ा जो जवाब में मीडिया में तस्वीरें और बीजेपी के प्रेसनोट, खबरें जारी हो गईं जिनसे प्रवेश शुक्ला का बीजेपी से संबंध और रसूख का पता चलता है। इस बीच एक शपथ पत्र भी जारी हो गया जिसमें पीडि़त के हवाले से कहा गया था कि वीडियो फर्जी है, ऐसी घटना हुई ही नहीं। इस शपथ पत्र पर किसी को यकीन नहीं हुआ बल्कि रसूख व दबाव पर आक्रोश ही उत्पन्न हुआ जिसके चलते पीडि़त को शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े।
इसबीच, आरोपी के बचाव के रास्ते भी खोजे जाने लगे। उसके मकान पर बुल्डोजर न चले इसलिए कहा गया कि मकान उसका नहीं हैं और मकान टूटेगा तो उसके परिजन कहां जाएंगे।
असल में यही बीजेपी का खेल भी है। उसे आदिवासी वोट चाहिए तो उन्हें लुभाना भी है और अपने कार्यकर्ता पर कार्रवाई करना भी नहीं है। इसलिए गिरफ्तारी को ही महत्वपूर्ण बता कर यहां-वहां की बात की जा रही है और मामले की गंभीरता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।
मूल बात तो यह है कि मामला 6 से 9 दिन पुराना है। इसकी जानकारी पुलिस को थी लेकिन राजनीतिक दबाव में पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही। जब वीडियो 4 जुलाई को देश भर में वायरल हुआ और मध्यप्रदेश की बदनामी का कारण बना तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए और तब पुलिस हरकत में आई।
पीड़ित आदिवासी दिहाड़ी मजदूर है। वह बेहद डरा हुआ है। इसी डर में कार्रवाई न करने की बात कह रहा है। कानून की ऐसी गलियों और राजनीतिक दबंगता के आगे मानवीयता नतमस्तक है। इस तरह सीधी कांड में बीजेपी का आरोपी को गिरफ्तार करने या उसके घर बुल्डोजर चलाने जैसे काम करना दिखाने की कार्रवाई करने तथा उसे बचा ले जाने के लिए उपाय करना राजनीतिक तिकड़म से कम नहीं है।
खेल भी, खिलखिलाहट भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मध्य प्रदेश आना और उनके भाषण से अलग उनकी भाव भंगिमा तथा अंदाज भी खबरें बनता है। उनका नेताओं से मिलना या उन्हें नजरअंदाज करना कई राजनीतिक संदेश देता है। बीते पखवाड़े में पीएम मोदी दो बार मप्र आए और दो बार उनके मेलजोल के अंदाज ने राजनीतिक संकेत दिए हैं।
जब पीएम भोपाल आए तो यहां बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन में दीप प्रज्जवलन का वीडियो वायरल हुआ। इसमें साफ दिखाई दे रहा है कि जब सीएम शिवराज सिंह दीप प्रज्जवलित करने आए तो पीएम ने उनकी ओर से मुंहमोड़ लिया। विरोधियों को मौका मिल गया कि पीएम मोदी ने हर बार की तरह इस बार भी सीएम चौहान को तवज्जो नहीं दी। इतना ही नहीं सरकार ने पीएम मोदी की अगवानी के लिए जिन मंत्रियों के नाम भेजे थे उनमें नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह का नाम भी था लेकिन फिर पीएमओ ने भोपाल के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह को दरकिनार कर दिया। आकलन किया गया कि मंत्री भूपेंद्र सिंह के विरूद्ध भ्रष्टाचार के मामलों की शिकायत हुई अै और किसी तरह के विवाद से बचने के लिए पीएमओ ने भूपेंद्र सिंह से दूरी रखी। ऐसी ही दूरी 1 जुलाई को शहडोल में पीएम मोदी की यात्रा के दौरान खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह और सांसद हिमाद्री सिंह से भी दिखाई गई।
जहां एक ओर भोपाल में पीएम मोदी का तल्ख रूख दिखाई दिया वहीं शहडोल में वे लोक निर्माण विभाग के मंत्री गोपाल भार्गव से मुलाकात के दौरान प्रफुल्लित दिखाई दिए। बीजेपी में हाशिए पर चल रहे मंत्री गोपाल भार्गव के रिश्ते बीते कुछ समय से शिवराज सिंह चौहान के करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह से अच्छे भी नहीं चल रहे हैं। ऐसे में पीएम मोदी ने तब मंत्री गोपाल भार्गव से हँस-हँस कर बात की तो भार्गव समर्थकों को खुश होने का मौका मिल गया।
पीएम मोदी के कभी सख्त कभी खुश मूड के अपने-अपने राजनीतिक मंतव्य निकाले गए मगर एक अर्थ यह भी है कि अपना घी अपनी थाली में ही रहे की तर्ज पर पीएम मोदी शिवराज और प्रदेश बीजेपी के नाराज गुट के साथ होने का संदेश दे गए हैं। जिनके साथ पीएम मोदी गर्मजोशी से मिलते हैं उनका कोई और लाभ हो या न हो मगर इतना तो जरूर होता है कि उनकी नाराजगी बीजेपी को बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा पाती है। मोदी के ऐसे बर्ताव से नाराज या हाशिए पर चल रहे नेताओं और उनके समर्थकों को दिलासा मिल जाता है जबकि सत्ता और संगठन वही करते हैं जो उन्हें करना होता है।
कभी हां, कभी ना के बीच मान मनुहार का दौर
2003 में जिन उमा भारती के सहारे बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सत्ता सूत्र संभाले थे, वही उमा भारती इनदिनों अपनी राजनीतिक जमीन पाने की जद्दोजहद में हैं। कभी वे वैरागी भाव अपनाते हुए राजनीति से संन्यास की बात करती हैं तो कभी कहती है कि मरते दम तक राजनीति करेंगी। कभी अपने समाज के कार्यक्रम में ऐसी बातें कह देती हैं जो बीजेपी को नुकसान पहुंचाए तो कभी शराबबंदी की मांग को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ पत्थर उठा लेती हैं।
उमा भारती के बयानों और कार्यों को देख उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि वे तय नहीं कर पा रही हैं कि उन्हें करना क्या है, दूसरी ओर बीजेपी संगठन उनके हर कार्य के प्रति निरपेक्ष रहता है। इस तरह नजरअंदाज करना उमा भारती की खीज बढ़ाता है।
पिछले दिनों बीमार होने के बाद वे स्वास्थ्य लाभ ले रही है लेकिन बीजेपी नेताओं को उनकी ताकत तथा अपने समाज के वोट पर उनके असर की जानकारी है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सौजन्य भेंट के लिए उमा भारती के निवास पर पहुंच जाते हैं। 4 जुलाई को बीजेपी की कोर ग्रुप की बैठक में भाग लेने आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मिलने के लिए उमा भारती के निवास पर पहुंचे थे। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा सिंधिया समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का उमा भारती से अचानक मिलने जाना।
गोविंद सिंह राजपूत इनदिनों कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के कद्दावर नेताओं के निशाने पर हैं। उनके क्षेत्र में भी लोधी वोटर की संख्या अच्छी मात्रा में हैं। उमा भारती का असर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण पर भी पड़ता है। यही कारण है कि नेता भले ही इन मुलाकातों को सामान्य भेंट कहें लेकिन मामला तो राजनीतिक लाभ का है। गरज यही कि उमा भारती साथ दे दे या कम से कम नकारात्मक टिप्पणी न करे तो अगला चुनाव जरा आसान हो जाए।
मोदी-शाह के जवाब में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी
कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस अपनी विजय यात्रा मध्य प्रदेश में जारी रखना चाहती हैं। राहुल गांधी कह चुके हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस आसानी से जीत रही है। इसके बाद कांग्रेस ने मिशन 2023 को फतह करने के लिए अधिक फोकस के साथ तैयारी शुरू कर दी है।
कांग्रेस के हौसलों को देखते हुए बीजेपी ने भी अपने सभी नेताओं को मैदान में उतार दिया है। चुनाव का चेहरा खुद पीएम नरेंद्र मोदी हैं। जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह सारे समीकरणों पर नजर रखे हुए हैं। 4 जुलाई को हुई बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में तय किया गया है कि युवा मोर्चा प्रदेश भर में तिरंगा यात्राएं निकालेगा तो पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। बीजेपी हर माह में पीएम मोदी सहित अन्य बड़े नेताओं के दौरे करवाने की योजना बना चुकी है।
जवाब में कांग्रेस ने भी पुख्ता योजना बनाई है। बीजेपी अगर विंध्य, मालवा, बुंदेलखंड सहित अन्य क्षेत्रों पीएम मोदी की सभाएं करवाएगी तो कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी मैदान में उतर चुकी हैं। जबलपुर में हुई सभा में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शिवराज सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का कैम्पेन तय कर दिया था। अब प्रियंका गांधी 22 जुलाई को ग्वालियर आएंगी। यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र वाली 34 सीटों को जीतने का जतन है कांग्रेस उपचुनाव में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर चुकी है। उसे उम्मीद है कि प्रियंका गांधी की सभा के बाद उसके अभियान को ताकत मिलेगी। कांग्रेस की राजनीतिक मामलों की समिति राहुल गांधी और के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभाओं की भी तैयारी कर ही है।