जगत जननि दामिनि द्युति गाता।

संसार की प्रत्येक मां में जो अपने शिशु के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम होता है, वह उस जगदम्बा के द्वारा मिला हुआ है, जो जगत् की पालनी शक्ति है

Updated: Oct 22, 2020, 11:41 PM IST

Photo Courtesy: Pinterest
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भगवती जगज्जननी हैं। सम्पूर्ण विश्व ही नहीं संम्पूर्ण सृष्टि की मां हैं। इसलिए उनका मातृत्व अलौकिक है। सांसारिक मां में भी कुछ विशेषताएं देखने को मिलती हैं। जैसे कि यदि उसके पुत्र का किसी और के साथ झगड़ा हो जाय तो वह अपने कसूरदार बेटे का ही पक्ष लेती है। अपने बेटे का दोष नहीं देखती। अपने पुत्र के दोष को दूर करने का प्रयास करती है, लेकिन उसे दोषी नहीं मानती। इसी प्रकार अपराधी जीव, जिससे अनेक अपराध हो चुके हैं, वो भगवान से डरता है। संसार में भी हम देखते हैं कि पिता से बालक डरता है कि यदि पिता जी को हमारे दुर्गुणों का पता लग गया तो वो मुझे घर से निकाल देंगे।

कदाचित् पिता ने पुत्र को घर से बाहर निकाल दिया हो और भूखा-प्यासा बेटा कहीं मां को दिख जाए, तो मां कहती है कि आओ शीघ्र कुछ खा लो तुम्हारे पिता जी न देख पाएं। तो अपने पुत्र में दोष न देखना और उसका पक्ष लेना, ये जो वात्सल्य प्यार है यह उसका नहीं है, जगदम्बा का है। उस पराम्बा जगज्जननी से ही ये गुण मिट्टी की मां में आया है। यहां एक बात और भी विचारणीय है कि सांसारिक मां अपने पुत्र का पालन पोषण करती है,  इसके मूल में उसका कुछ स्वार्थ हो सकता है।

मां ये सोच सकती है कि अभी मैं इसकी सेवा कर रही हूं, जब मेरी वृद्धावस्था आएगी तो ये मेरी सेवा करेगा। परन्तु गाय में जो वात्सल्य दिखाई देता है, अपने बछड़े के प्रति अगाध प्रेम होता है, वह कहां से आया? जब तक गाय का बछड़ा चरने लायक नहीं हो जाता तब-तक गाय जंगल में विवश होकर चरने के लिए जाती है और चारा चरते समय भी अपने बछड़े का ही स्मरण करती है, और जब शाम को लौटती है तो हुंकार भरते हुए, दूध बहाते हुए, बड़े प्यार से अपने बछड़े को देखती है।

आंख से ऐसे देखती है मानो पी जायेगी। ऐसे चाटती है मानो आत्मसात कर जायेगी। यहां तक देखा जाता है कि कपिला गाय जो कि बहुत सीधी मानी जाती है, उसके नवजात बछड़े को भी अगर कोई छूने जाय तो वह भी सींग दिखाती है। ये प्यार कहां से आया? जबकि वो बछड़ा तो बड़ा होने पर पहचानेगा भी नहीं कि ये हमारी मां है। तब भी मां उससे इतना प्रेम करती है।

इसी प्रकार

अजात पक्षा इव मातरं खगा:

पक्षी के अंडा देने का समय जब आता है तो वह तो पहले से ही घोंसला बना लेती है। एकदम कोमल-कोमल रूई जैसा। और ऐसे दुर्गम स्थान पर घोंसला बनाती है जहां किसी का हाथ न पहुंचे। अंडे देती है, प्यार से उसे सेती है, जब वो फूट जाता है तो उसके पंख नहीं होते, चोंच बहुत कोमल होती है, वो चारा चुग नहीं सकता। तो मां जंगल में जाकर चारा चुगती है, अपने गले की थैली में एकत्र करती है और जब लौटकर आती है तो उसके जो छोटे-छोटे बालक हैं वो चीं-चीं करते हुए अपना मुंह खोल कर मां की ओर देखते हैं, तो मां अपने गले की थैली से चारा निकाल कर उनको बांटती है। स्वयं भले ही भूखी रह जाय लेकिन बच्चों को भूखा नहीं रहने देती।

पंख लग जाने पर क्या वह पक्षी शावक अपनी मां को पहचानेगा कि मेरी मां कहां है। लेकिन उस समय जो पक्षी के मन में प्रेम है वह नि:स्वार्थ प्रेम है, नि:स्वार्थ वात्सल्य है। संसार की प्रत्येक मां में जो अपने शिशु के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम होता है वह उस जगदम्बा के द्वारा मिला हुआ है। जो जगत् की पालनी शक्ति है वह उन पशु पक्षियों में भी वात्सल्य भर देती है। ऐसी जगदम्बा का चरित्र बड़ा पुनीत है। उनके सहज स्नेह का अनुभव करते हुए उनके परम पावन यश का श्रवण किया जाय तो मनुष्य हर प्रकार के बंधन से मुक्त हो जाता है।

या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।