भौतिक सुख छोड़िए सच्चे सुख की राह खोजिए

लोग सुख के लिए धन और भोग की सामग्री जुटाते जा रहे हैं किन्तु सुख का सम्बंध इन सामग्रियों से न होकर मन से है। मन शांत नहीं है तो सब कुछ दुःख स्वरुप

Publish: Aug 28, 2020, 07:29 PM IST

भौतिक वादी दर्शन मनुष्य को अर्थ और काम तक ही ले जाते हैं और उनसे शांति नहीं मिलती, इसलिए अध्यात्म चिंतन की आवश्यकता पड़ती है। भौतिक समृद्धि का ही दूसरा नाम विकास है, किन्तु यह विकास किसके लिए है? मकान चाहे कितना ही समृद्ध हो पर उसमें रहने वाला रुग्ण (बीमार) हो तो मकान की समृद्धि सुख नहीं दे सकती।

वर्तमान समय में भौतिक विज्ञान के बहुत से चमत्कार दिखाई पड़ रहे हैं। मनुष्य के पैर चन्द्रमा में पड़ चुके हैं, और भी ग्रहों पर जाने की तैयारी है। सुना है कि वहां पर लोग अभी  से ही जमीन खरीद रहे हैं ताकि वहां खेती की जा सके। वहां की खेती से जो अनाज होगा वह भी पेट भरने के लिए ही होगा और पेट भरना प्राण धारण के लिए होगा, इसी का नाम जीवन है।

प्रश्न उठता है कि जीवन का उद्देश्य क्या है? यदि किसी से पूछा जाए कि खेती क्यूं करते हो? नौकरी क्यूं करते हो? तो वह कहेगा कि करेंगे नहीं तो क्या खाएंगे? फिर पूछा जाए कि खाते क्यूं हो? तो वह कहेगा कि खायेंगे नहीं तो काम कैसे करेंगे? तो यह तो एक चक्र बन गया कि खाते हैं काम करने के लिए और काम करते हैं खाने के लिए। किन्तु यह सही उत्तर नहीं है। सही उत्तर यह है कि जीवन के लिए खाते हैं यह तो ठीक है। लेकिन जीवन किसके लिए है? तो इसका सही उत्तर यह होगा कि सुख की प्राप्ति के लिए। लोग धन और भोग की सामग्री जुटाते जा रहे हैं सुख के लिए। किन्तु सुख का सम्बंध इन सामग्रियों से न होकर मन से है। यदि मन शांत नहीं है तो सब कुछ दुःख स्वरुप है। योग दर्शन में कहा गया है-

 परिणाम ताप संस्कार दु:खै:

 गुण वृत्ति विरोधाच्च दु:खमेव सर्वं विवेकिन:

अर्थात् परिणाम दुःख,ताप दुःख, और संस्कार दुःख ऐसे तीन प्रकार के दुःख सबमें विद्यमान रहने के कारण और सत्वादि तीनों गुणों की वृत्तियों में परस्पर विरोध होने के कारण विवेकी के लिए सब के सब (कर्म फल) विषमिश्रित अन्न के समान दुःख रुप ही हैं। विषय जन्य समस्त सुख अन्त में,भोग काल में और भोग के पश्चात् संस्कार रूप से दुःखजनक ही होते हैं। इसलिए हमें भौतिक सुख की उपेक्षा करके सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए ही निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।