जिसमें राग है उसी में सुख भी है

मनुष्य को सतत् प्रयत्न के उपरांत भी विपरीत परिणाम ही प्राप्त होता है क्यूंकि असम्यक् मार्ग से सम्यक् लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती

Publish: Jul 20, 2020, 12:10 PM IST

हम सभी के लिए हमारे सदगुरु का सुधामय संदेश यही है कि सच्चे अर्थों में मानव वही है जो अध्यात्मिकता और भौतिकता की समीक्षा करे।

चौरासी लाख योनियों में मनुष्य योनि इसलिए श्रेष्ठ मानी जाती है कि जैसे अन्य योनियों में प्राणी प्रकृति के परतंत्र होता है, उस प्रकार मनुष्य योनि में नहीं होता। मनुष्य शरीर में बुद्धि का पूर्ण विकास होता है, जिससे वह उचित अनुचित, युक्त - अयुक्त का विचार करने में सक्षम होने के कारण प्रत्येक कार्य विचार पूर्वक कर सकता है। यही कारण है कि मनुष्य के ऊपर शास्त्रों के विधि निषेध लागू होते हैं। विधि निषेध मनुष्य की स्वतंत्रता छीनने के लिए नहीं वरन् उसको सच्चे अर्थ में स्वतंत्र बनाने के लिए है। यदि मनुष्य को धर्म-अधर्म का,सुख और दुःख का वास्तविक ज्ञान न हो तो वह गहन अन्धकार में पड़कर कष्ट का अनुभव करता है। इसलिए वास्तविक पुरुषार्थ (पुरुष का प्रयोजन) प्राप्त करने के लिए प्रत्येक विचार शील पुरुष को शास्त्रों और गुरुजनों का मार्ग निर्देश प्राप्त करना चाहिए।

समस्त प्राणियों का मुख्य प्रयोजन समस्त दु:खों की आत्यंतिक-निवृत्ति और परमानंद की प्राप्ति है।इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वह सतत् प्रयत्न भी करता है पर परिणाम विपरीत ही देखा जाता है क्यूंकि असम्यक् मार्ग से सम्यक् लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती।

सामान्य रूप से सभी प्राणी सुख के लिए ही सांसारिक भोगों की ओर दौड़ते हैं और उनकी प्राप्ति को ही सुख समझते हैं,पर यह धारणा भ्रान्ति है। विवेकी पुरुष इससे ऊपर उठता है। वह देखता है कि जिसमें राग होता है उसी में सुख होता है।अतः समीक्षा करके अपने मन को सच्चे रागास्पद की ओर मोड़ कर आत्मानंद का अनुभव करता हैं।