शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से दूर होंगी परेशानियां, मनचाहा फल देंगे उमा महेश्वर

भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है, ॐ नम: शिवाय के उच्चारण के साथ भगवान ओशुतोष को अर्पित करें बेलपत्र, इसे चढ़ाने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है

Updated: Aug 14, 2021, 11:42 AM IST

Photo Courtesy: Facebook
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आषाढ़ मास की देवशयनी ग्यारस से कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी तक संसार के संचालन और पालन की जिम्मेदारी भगवान शिव उठाते हैं। इन चार महीनों में भगवान विष्णु शेष शैया पर योग निद्रा में रहते हैं। भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। मान्यता है कि वे अपने भक्तों की मनोकामना हर हाल में पूरी करते हैं। वे जल से अभिषेक करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान भोलेनाथ को जल, बेलपत्र, धतूरा, अकौआ के फूल जैसी वस्तुएं अति प्रिय हैं।

जब भी भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित किया जाए कुछ बातों का खास ख्याल रखने से भगवान की विशेष कृपा मिलती है। भगवान शिव को हर दिन बेलपत्र चढ़ाया जा सकता है, वैसे सोमवार का दिन, प्रदोष कि तिथि, शिवरात्री और सावन का महीना उनके पूजन के लिए उत्तम माने जाते हैं। भोलेनाथ शिव के अभिषेक के बाद बेलपत्र चढ़ाने का विधान है। बेलपत्र चढ़ाते समय पत्तों का चिकना भाग शिवलिंग पर स्पर्श किया रहना चाहिए। कहा जाता है कि नए बेलपत्र नहीं मिलने की स्थिति में पुराने चढ़ाए हुए बेलपत्र को धोकर दोबारा चढ़ाया जा सकता है।   

तीन दल वाला बेलपत्र देगा उत्तम फल

तीन दलों वाला बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए, बेलपत्र खंडित हो या कटा-फटा हो तो उसे नहीं चढ़ाना चाहिए। धार्मिक मान्यत के अनुसार 3 से ज्यादा दलों याने पत्तियों वाला बेलपत्र दुर्लभ होते हैं, लेकिन अगर मिल जाएं तो वे अतिफलदायक होते हैं। माना जाता है जितने ज्यादा पत्ते उतना उत्तम फल मिलता है।

बेलपत्र तोड़ने से पहले वृक्ष को करें प्रणाम

कहा जाता है बेल के पेड़ में स्वंय शिवजी निवास करते हैं। बेलपत्र तोड़ते वक्त इतना ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ को कोई नुकसान ना होने पाए। जब भी बेलपत्र तोड़ें उससे पहले पेड़ को मन ही मन प्रणाम अवश्य करें। फिर पत्ते तोड़ें। धार्मिक मान्यता के अनुसार सोमवार और सं‍क्रांति के दिन बेलपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए। वहीं सावन की चतुर्थी तिथि, अष्टमी तिथि, नवमी तिथि, चतुर्दशी तिथि और अमावस्या के दिन बेलपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए। एक दिन पहले ही विधिपूर्वक बेलपत्र तोड़कर रख लेना चाहिए। मान्यता है कि बेलपत्र के तीन पत्तों में त्रिदेव याने ब्रह्मा, विष्णु और शिव  के स्वरूप होते हैं। 

क्यों चढ़ाया जाता है बेलपत्र

पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के बाद जो अमृत निकला उसका पान देवताओं ने किया। और जब समुद्र से विष निकला तो भगवान शिव ने पूरी सृष्टि के कल्याण के लिए विष को पी लिया और उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया, तब से उन्हें नीलकंठ और विषधर नाम से भी पुकारा जाने लगा।

बेलपत्र अर्पित करने से होती है आरोग्य की प्राप्ति

कहा जाता है कि इस विष की वजह से भगवान का कंठ नीला हो गया। तभी देवताओं ने उनके शरीर की तपन दूर करने के लिए जल से अभिषेक किया और बेलपत्र अर्पित किए। माना जाता है कि बेलपत्र विष का प्रभाव कम करता है। जैसे ही शिवलिंग पर बेलपत्र और जल चढ़ाया गया, वैसे ही उनके शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत हो गई, तभी से शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी।

शिव पार्वती करते हैं कल्याण 

 शिवपुराण में भी बेलपत्र के महत्व का वर्णन किया गया है।  बेलपत्र, अकौआ, भांग, बेर, कनेर से शिवजी की पूजा से उनकी असीम अनुकंपा मिलती है। कहा जाता है कि तीनों लोकों के समस्त पुण्य बेलपत्र के मूल भाग में निवास करते हैं। शिव की अनुकंपा पाने के लिए बेलपत्र अर्पण किया जाता है। वहीं यह भी माना जाता है कि बेलपत्र की जड़ में जल चढ़ाने से संपूर्ण तीर्थों में स्नान के बराबर फल मिलता है। बेल वृक्ष को चमत्कारिक कहा गया है। इसे कल्पवृक्ष के समान सभी कामनाएं पूरी करने वाला कहा गया है।  

बेल के वृक्ष में होता है महालक्ष्मी का वास

स्कंद पुराण के अनुसार बेल के पेड़ की उत्पत्ति माता पार्वती के पसीने से हुई थी। इसलिए इसमें महालक्ष्मी का वास माना जाता है। कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने माथे से पसीना पोछकर फेंका। उसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिर गई। कहा जाता है कि उन्‍हीं बूंदों से ही बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। जिसकी जड़ों में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी निवास करती है। शिव पूजन में बेलपत्र अर्पित करने से महेश्वर शिव और माता पार्वती दोनों की विशेष कृपा और आशीर्वाद मिलता है।