गर्भपात के बढ़ते आंकड़ें औरत पर दबाव या आज़ादी का संकेत है ?

–अंजलि सिन्हा- गर्भपात का अधिकार औरत का अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मसला है और वह एक महत्वपूर्ण हक है। आज भी कई रूढिवादी देशों में यहां तक कि रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय में महिला के पास ऐसा अधिकार नहीं है। लेकिन साथ साथ यह जायजा लेना भी जरूरी है कि गर्भपात के अधिकतर मामलों […]

Publish: Jan 06, 2019, 12:03 AM IST

गर्भपात के बढ़ते आंकड़ें औरत पर दबाव या आज़ादी का संकेत है ?
गर्भपात के बढ़ते आंकड़ें औरत पर दबाव या आज़ादी का संकेत है ?
- span style= color: #ff0000 font-size: large अंजलि सिन्हा- /span p style= text-align: justify strong ग /strong र्भपात का अधिकार औरत का अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मसला है और वह एक महत्वपूर्ण हक है। आज भी कई रूढिवादी देशों में यहां तक कि रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय में महिला के पास ऐसा अधिकार नहीं है। लेकिन साथ साथ यह जायजा लेना भी जरूरी है कि गर्भपात के अधिकतर मामलों के कारण क्या हैं ? क्या जागरूकता की कमी जिसमें अनचाहा गर्भ ठहर जाये इसके इलाज के तौर पर इसका प्रयोग करना बेटा की चाहत के कारण कन्या भू्रण का गर्भपात कराया जाना या जबरन बनाए गए यौन सम्बन्धों चाहे वह शादी के रिश्ते के भीतर हो या बाहर हों इनके परिणामों से बचने के लिए इसका सहारा लेना ऐसी ही वजहें देखी जा सकती हें। /p p style= text-align: justify यह जानना इसलिए जरूरी है कि बार-बार गर्भपात औरत के शरीर के लिए हानिकारक भी है। इसमें कितना उसकी इच्छा/निर्णय शामिल है और कितने मामलों में वह हालात तथा हिंसा की शिकार हुई है। /p p style= text-align: justify इस समूची बहस का ताजा सन्दर्भ सूचना अधिकार के तहत सरकार द्वारा किए गए इस खुलासे से है कि दिल्ली में पिछले तीन साल में 47 950 एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनन्सी अर्थात गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन) के मामले सामने आए हें। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गयी जानकारी में गर्भवती महिलाओं की मौत की वजहें पूछी गयी थीं लेकिन वह पता नहीं चला। मालूम हो कि दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग से यह जानकारी मांगी गयी थी। जब दिल्ली सरकार ने यह जानकारी नही दी तब याचिकाकर्ता राजेश बंसल ने केन्द्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग द्वारा नोटिस जारी करने पर उसे यह जानकारी तत्काल उपलब्धा करायी गयी। /p p style= text-align: justify याचिकाकर्ता को यह जानकारी किस उद्देश्य से चाहिए थी यह खबर से पता नहीं चला है। /p p style= text-align: justify औरत की यौनिकता पर नियंत्रण के लिए तमाम तरह के उपाय समाज करता है। समाज में एक तबका तथा धार्मिक जड़ता वाली ताकतें हमेशा से गर्भपात के अधिकार के खिलाफ रही हैं जबकि महिलाओं ने हमेशा इसे अपना निजी मामला माना है। उदाहरण के तौर पर गर्भपात का मसला ईसाई मूलवादी (Christian Fundamentalist) लोगों के लिए इतना संवेदनशील मसला रहा है कि इस मसले पर हिंसा करने से भी वह बाज नहीं आते। आंकड़ों के मुताबिक बीते लगभग बीस सालों में गर्भपात की सेवा उपलब्धा कराने के जुर्म में अमेरिका में आठ लोग मारे गए हैं जिनमें चार डॉक्टर अस्पताल के दो कर्मचारी एक सिक्युरिटी गार्ड और एक क्लिनिक एस्कॉर्ट शामिल रहे हैं। जहां तक हमारे देश में गर्भपात तथा गर्भपात कानून का मुद्दा है तो यहां भी अमेरिका जैसे विचार रखनेवाली लोगों की कमी नहीं रही है भले ही उस किस्म की हिंसा यहां नजर नहीं आती जैसी अमेरिका में दिखाई पड़ती है। इसका कारण धार्मिक के साथ-साथ पितृसत्तात्मक मानसिकता भी रहा है। यद्यपि यहां गर्भपात कानूनसम्मत है फिर भी सामाजिक तथा पारिवारिक स्वीकृति नहीं रहा है। /p p style= text-align: justify वैसे भारत इस मामले में पश्चिम के कई देशों से आगे रहा है कि उसने 1971 में गर्भपात को कानूनी हक के रूप में मान्यता दी थी। यद्यपि इस कानून को बनाने के पीछे भारत सरकार का नज़रिया महिलाओं को उनके शरीर पर निर्णय लेने का हक दिलाना नहीं था बल्कि विस्फोटक होती जनसंख्या पर नियंत्रण का मामला था। /p p style= text-align: justify यह हकीकत है कि गर्भसम्बन्धी विभिन्न जटिलताओं के कारण औरत के मौत के आंकड़े बड़ी संख्या में है। कन्सॉर्टियम आन नेशनल कन्सेसस फार मेडिकल अर्बाशन इन इण्डिया के मुताबिक हर साल यहां लगभग 110 लाख गर्भपात सम्पन्न होते हैं और लगभग 20 हजार महिलायें असुरक्षित गर्भपात या गर्भपात के दौरान उभरी जटिलताओं के कारण मर जाती हैं। कितनी बड़ी विड़म्बना है कि एक तरफ गर्भपात कराना कानूनी है लेकिन असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाली मौतें एक गम्भीर समस्या है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तथा महिलाओं की उपेक्षित सामाजिक स्थिति इसका सबसे बड़ा कारण है। अब सरकार ने भले ही जिन वजहों से यह कानून बनाया हो महिलाओं के लिए यह एक अधिकार है और कन्याभ्रूण हत्या की समस्या से निपटने के लिए इसे कमजोर नहीं बनाया जाना चाहिए तथा हर गर्भपात को इतना जटिल न बना दिया जाए कि वह आसानी से सम्भव न हो सके। /p p style= text-align: justify लेकिन इसके समाधान को गम्भीरता से लेने के बजाय इस अधिकार पर कुठाराघात के मौके भी गर्भपात के विरोधी ताकतें तलाशती रहती हैं। परिवार के अन्दर औरत की दोयम दर्जे तथा उपेक्षापूर्ण स्थिति उसके कमजोर सामाजिक आर्थिक हालात के कारण उसका स्वास्थ्य उपेक्षित रहता है। चूंकि वह खुद के बारे में निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होती है तो कब और कितनी बार उसे गर्भधारण करना है इस पर उसका वश नहीं रहता है तथा साथ अपने शरीर के बारे में जागरूकता की कमी भी एक कारण बनता है कि उसे अनचाहे गर्भ का सामना करना पड़ता है। एक सर्वेक्षण यह भी आया था कि हमारे यहां आधो से अधिक बच्चे अनचाहे ही तथा बिना योजना के पैदा होते हैं। गर्भपात तथा अनचाहे जचगी दोनों का खामियाजा औरत का शरीर भुगतता है। जो मौत के गाल में समा जाती है उन्हें छोड़ कर जो बची रहती हैं वे 40-50 की उम्र पार करते प्रोलेप्स यूटरस या अन्य जटिलताओं के अलावा कैलशियम तथा विटामिन डी की कमी के कारण तमाम तरह की हड्डियों की बीमारी एवं कमजोर हड्डियां हो जाने का सामना करती हें। डिलीवरी के समय अक्सर महिलाओं को कैल्शियम की कमी हो जाती है जो उचित पोषण्ा के अभाव में उसकी भरपाई नहीं हो पाती है। इसलिए हमें यह समझना जरूरी है कि गर्भपात का हक तो हमें रहे ही लेकिन वह न कराना पड़े या कमसे कम कराना पड़े तो ही हमारे शरीर के लिए ठीक रहेगा। /p