संदर्भ : एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव मिसाइल का परीक्षण देश की सुरक्षा व्यवस्था को मिली मजबूती

– जाहिद खान- भारतीय रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (इसरो) ने द्विस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में शानदार कामयाबी हासिल करते हुए हाल ही में एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव मिसाइल का सफल परीक्षण किया। जिसकी मारक क्षमता करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी तक है। देश में यह पहला मौका है जब ‘पृथ्वी डिफेंस व्हिकल’ (पीडीवी) […]

Publish: Jan 05, 2019, 11:48 PM IST

संदर्भ : एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव मिसाइल का परीक्षण देश की सुरक्षा व्यवस्था को मिली मजबूती
संदर्भ : एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव मिसाइल का परीक्षण देश की सुरक्षा व्यवस्था को मिली मजबूती
- span style= color: #ff0000 font-size: large जाहिद खान- /span p style= text-align: justify strong भा /strong रतीय रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (इसरो) ने द्विस्तरीय बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा तंत्र के विकास में शानदार कामयाबी हासिल करते हुए हाल ही में एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव मिसाइल का सफल परीक्षण किया। जिसकी मारक क्षमता करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी तक है। देश में यह पहला मौका है जब पृथ्वी डिफेंस व्हिकल (पीडीवी) की सहायता से मिसाइल द्वारा लक्ष्य को सफलतापूर्वक भेदा गया। पृथ्वी डिफेंस वीइकल (पीडीवी) को मिली कामयाबी के बाद अब परमाणु बम से लैस किसी भी हमलावर मिसाइल को आसमान में 120 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर नष्ट किया जा सकेगा और इस तरह मिसाइल में रखे परमाणु जैविक या रासायनिक बम के विनाशकारी असर से धरती पर बसी जिंदगियों को बचाया जा सकेगा। हमारे वैज्ञानिक इस मिशन की तैयारियों में कई सालों से लगे हुए थे। जब तैयारियां पूरी हो गई तब उन्होंने विशेष रूप से बनाए गए पीडीवी इंटरसेप्टर व द्विस्तरीय मोटरयुक्त लक्ष्य से इसका परीक्षण किया। परीक्षण में एक्सो-एटमोसफेरिक इंटरसेप्टिव ने बंगाल की खाड़ी में जहाज से छोड़े गए छद्म लक्ष्य को सफलतापूर्वक मार गिराया। /p p style= text-align: justify इस मिसाइल की सबसे बड़ी विषेशता पृथ्वी की कक्षा से बाहर ही लक्ष्य को भेदना है। मिसाइल पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर करीब 120 किलोमीटर तक के दायरे में आने वाले सभी लक्ष्य को आसानी से निशाना बना सकती है। इंटरसेप्टर मिसाइल को मिली यह कामयाबी डीआरडीओ के वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र में किए गए अब तक के सभी परीक्षणों में सबसे अहम है। परीक्षण के साथ ही देश के सामरिक ताकत में और इजाफा हुआ है। एंटी बैलेस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी को हासिल करने के बाद सामरिक प्रतिरोध में वृध्दि हुई है। इस प्रौद्योगिकी से हमारी सेनाओं को किसी भी संभावित हमले से निपटने में मदद मिलेगी। दुश्मन देशों की कैसी भी मिसाइल ताकत हो प्रतिरोधक प्रणाली से उस ताकत से आसानी से निपटा जा सकता है। इंटरसेप्टर मिसाइल दुश्मन मिसाइलों को बीच में ही धवस्त कर देगी। /p p style= text-align: justify टू-लेयर्ड बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) सिस्टम का परीक्षण ओडिशा के बालासोर स्थित समुद्र तट से 100 किलोमीटर दूर वीलर द्वीप से किया गया। वैज्ञानिकों ने परीक्षण करते समय सबसे पहले पारादीप के पास बंगाल की खाड़ी में तैनात एक युध्दपोत से हमलावर मिसाइल (संशोधित पृथ्वी मिसाइल) को छोड़ा और इसके छूटने की जानकारी रेडार पर मिलते ही बचाव करने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल ने ऑटोमैटिक तरीके से निर्देश हासिल किए और तीन मिनिट के अंदर हमलावर मिसाइल को बीच आसमान में ही धवस्त कर दिया। हमलावर मिसाइल को इस तरह छोड़ा गया था जैसे कि वह 2000 किलोमीटर दूर से छोड़ी गई हो। बहरहाल इस सफल परीक्षण के बाद वैज्ञानिक परीक्षण से जुड़े सभी रेडार और टेलीमीटरी स्टेशनों से मिले आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं जिससे आगे की तैयारी वे और भी बेहतर तरीके से कर सकें। /p p style= text-align: justify बैलिस्टिक मिसाइलें वायुमंडल के बाहर जाकर पृथ्वी की कक्षा में लौटती हैं इसलिये पीडीवी मिशन के तहत हालिया मिसाइल परीक्षण का मकसद था कि वायुमंडल के बाहर ही हमलावर मिसाइल को गिराया जाए। बीएमडी सिस्टम के तहत देश में इस मिसाइल का पहला परीक्षण साल 2006 में किया गया था। भारतीय मिसाइल वैज्ञानिकों ने इस तरह के एग्जो-एटमॉस्फेरिक मिसाइल टेस्ट का अब तक तीन बार परीक्षण किया है जिसमें उन्हें दूसरी कामयाबी मिली है। पहला परीक्षण वायुमंडल से बाहर करीब 80 किलोमीटर पर किया गया था लेकिन हालिया परीक्षण 120 किलोमीटर पर अंजाम दिया गया। वहीं वायुमंडल के भीतर यानी एंडो-एटमॉस्फेरिक टेस्ट अब तक पांच बार किए गए हैं और ये सभी के सभी परीक्षण पूरी तरह से कामयाब रहे हैं। रडार आधारित इस प्रणाली में लक्ष्य को खोजने का कार्य उससे मिलने वाले डाटा से किया जाता है। पृथ्वी के वातावरण से मिसाइल के बाहर जाते ही हीट शील्ड निकलती है और इंफ्रारेड सीकर खुल जाता है जिससे लक्ष्य को निशाने पर लिया जाता है। इंटरसेप्टर मिसाइल को अत्यधिक अचूक निशाना लगाने में इनर्शल नेविगेशन सिस्टम और माइक्रो नेविगेशन सिस्टम से मदद मिलती है। /p p style= text-align: justify बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) सिस्टम के सफलतापूर्वक परीक्षण के बाद हमारा देश दुश्मन देशों की एटमी बैलिस्टिक मिसाइलों से बेहतर तरीके से बचाव कर सकेगा। इस तरह की व्यवस्था अब तक रूस अमेरिका और इस्राइल जैसे देषों के पास ही है। चीन भी इस तकनीक को हासिल करने के नजदीक है और जल्द ही वह अपने यहां इस तरह की मिसाइलों को तैनात कर लेगा। देश की रक्षा जरूरतों के मद्देजनजर यह तकनीक हमारे लिए भी बेहद जरूरी थी। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन अपने यहां लगातार परमाणु मिसाइल कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहे हैं। जिसमें चीन के पास तो बैलेस्टिक मिसाइलों का एक पूरा जखीरा ही मौजूद है। भविष्य में यदि कभी युध्द की नौबत आई तो लाजिमी है कि मिसाइलों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होगा। ऐसे में हमें ऐसे रक्षा कवच की जरूरत थी जो दुश्मनों के नापाक मंसूबों को आसानी से नाकाम कर सके। जहां चाह वहां राह यह उक्ति जल्द ही चरितार्थ हुई। हमारे वैज्ञानिकों के कड़े परिश्रम से यह उपलब्धिा हमने जल्द ही पा ली। इसमें सबसे अच्छी बात यह हुई कि इस मिसाइलरोधी तकनीक को भारतीय वैज्ञानिकों ने एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित किया। हां पृथ्वी डिफेंस मिसाइल के विकास में इस्राइली ग्रीन पाइन रेडार से मदद जरूर मिली। /p p style= text-align: justify मिसाइलरोधी प्रणाली के विकसित हो जाने के बाद देश की सुरक्षा व्यवस्था और भी ज्यादा मजबूत होगी। देश के प्रमुख रक्षा और परमाणु संस्थानों की सुरक्षा बेहतर तरीके से हो सकेगी। देश पर कोई भी हमला हो हम अपनी रक्षा अच्छी तरह से कर सकेंगे। डीआरडीओ को उम्मीद है कि यह एंटी-मिसाइल सिस्टम जल्द ही देश में तैनात होने की अवस्था में आ जाएगा। सबसे पहले इस तरह के सिस्टम को दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के बचाव के लिए तैनात किया जाएगा और उसके बाद यह व्यवस्था देश के बाकी प्रमुख स्थानों पर भी होगी। कम समय में इतनी बड़ी कामयाबियों को हासिल करने के बाद हमारे वैज्ञानिक चुप नहीं बैठ गए हैं बल्कि उनका अगला लक्ष्य 5000 किमी दूर से आ रही हमलावर आईसीबीएम से बचाव वाली मिसाइल का विकास करना है। इसके लिए उन्होंने काम करना शुरू कर दिया है। वह दिन दूर नहीं जब यह मिसाइलरोधी प्रणाली भी हमारे पास होगी। /p