MP में रो रहे हैं किसान, इनकी सुनिए सरकार

तीन-चार दिनों तक कतार में लगे रहे, तिवड़ा का बहाना बना कर रिजेक्ट कर रहे चना,

Publish: May 31, 2020, 01:10 AM IST

भीषण गर्मी में वे एक सप्‍ताह से किराए के ट्रेक्‍टर ट्राली में अपनी उपज लिए मंडियों और खरीद केंद्र के बाहर खड़े रहे। धूप तीखी थी मगर छांह का इंतजाम नहीं था। प्‍यास थी मगर पानी भी उपलब्‍ध नहीं था। फिर जब लंबी कतारों में खड़े रहने के बाद फसल बेचने का नंबर आया तो चने में तिवड़ा (खेसारी) दाल मिला होने का कारण बता कर फसल को खरीदने से इंकार कर दिया गया जबकि चने में तिवड़ा ढूंढने से भी नहीं मिला। अब प्री मानसून एक्टिविटी शुरू हो गई है। बादल मंडरा रहे हैं और फसल बिकी नहीं है। किसानों की आंखों में आंसू हैं। उनकी पीड़ा सुनने के लिए ‘सरकार’ के पास समय नहीं है।

 

यह दृश्‍य है रायसेन जिले की उदयपुरा कृषि उपज मंडी का। यहां किसान चना खरीदी में धांधली का आरोप लगा रहे हैं। कुचवाड़ा उदयपुरा के रामसिंह रघुवंशी बताते हैं कि 2 फीसदी से अधिक तिवडा दाल होने से चना नहीं ख़रीदा जा रहा है जबकि पिछली कांग्रेस की सरकार में खरीदा गया था। वे बताते हैं कि मनमोहन सिंह की सरकार में चने का दाम 9 से 10 हजार प्रति क्विंटल मिला था। अब तो 4 से साढ़े चार हजार रुपए ही मिल रहा है। एमपी में चने का समर्थन मूल्‍य 4875 प्रति क्विंटल जबकि व्यापारी 38 सौ रुपए में खरीद रहे हैं। किसानों का आरोप है कि पंजीयन करवाने के बाद भी अच्‍छी क्‍वालिटी का चना नहीं ख़रीदा जा रहा है। जबकि सोसायटी के कर्मचारी या अधिकारी को एक हजार रुपए देने पर तुरंत तुलाई हो जाती है।

किसानों ने कहा कि उनके चने के ढ़ेर में 1 या 2 तिवड़े के दोन निकलने पर खरीदी नहीं की गई। वे रो कर बताते हैं कि किसानों ने छलने से सफाई करवा कर चने से तिवड़ा निकलवाया है। मंडी में मौजूद महिला मज़दूरों से दोबारा सफाई करवाई है। इस काम पर 200 रुपए प्रति क्विंटल का खर्च किया। घर से मंडी तक चना लाने के लिए 12 सौ रुपए का ट्रेक्‍टर किराया दिया। मंडी में फसल बेचने के लिए तीन-चार दिन इंतजार किया। इस दौरान ट्रेक्‍टर का भाड़ा भी दिया और फसल खरीदी नहीं गई। वे परेशान हैं। बारिश होने वाली है। चना नहीं बिका तो पैसे कैसे आएंगे? ऐसे में व्‍यापारी को औने पौने दाम पर फसल न बेचें तो क्‍या करें?