150 किसानों के 4 करोड़ लेकर व्यापारी फरार, एमपी में अब तक ठगे गए लगभग 400 किसान

Impact of New Farm Laws in MP: किसानों को अब तक ठगी के केवल 3 मामलों में न्याय मिला, मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर और कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले हरदा से भी सामने आ चुके हैं ऐसे केस

Updated: Dec 30, 2020, 10:33 PM IST

Photo Courtesy: National Herald
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भोपाल। मध्य प्रदेश के चार जिलों में पवन खोजा नाम का एक व्यापारी लगभग 150 किसानों के साथ ठगी कर फरार हो गया है। खोजा ट्रेडर्स नामक उसकी फर्म ने सीहोर, हरदा, देवास और होशंगाबाद में 150 किसानों से लगभग 4 करोड़ रुपए ठग लिए हैं। इन सभी किसानों ने मंडी के बाहर खोजा ट्रेडर्स को अपनी फसल बेची थी। 

दरअसल प्रदेश के चार जिलों में 150 किसानों ने पवन खोजा और सुरेश खोजा को मूंग, सोयाबीन और चने की फसल बेची थी। खोजा बंधुओं ने किसानों को उनकी फसल खरीदने पर 25 फीसदी राशि का नकद में भुगतान किया था। किसानों को बाकी राशि का भुगतान चेक के माध्यम से किया गया था। लेकिन जब किसान बैंक पहुंचे तो सभी चेक बाउंस हो गए। खोजा बंधु किसानों से चार करोड़ की ठगी कर फरार चल रहे हैं और उनका फिलहाल कोई अता पता नहीं है।

खोजा बंधुओं के पास मण्डी का लाइसेंस भी था 

खोजा ट्रेडर्स नाम वाली जिस फर्म ने किसानों के साथ ठगी की है, उसने किसानों को बाकायदा मंडी का लाइसेंस भी दिखाया था। जिसके बाद उसने फसल की खरीद की थी। बताया जा रहा है कि फर्म ने 15 दिनों के भीतर ही अपना लाइसेंस रद्द करवा लिया। हालांकि वेब पोर्टल न्यूज़ क्लिक के अनुसार खोजा बंधुओं ने किसानों को मंडी का फर्जी लाइसेंस दिखाकर उनसे फसल की खरीद की थी। 

मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री के ज़िलों में किसानों के साथ हुई ठगी

प्रदेश में अब तक कई इलाकों में किसानों के साथ ठगी के मामले सामने आए हैं। इनमें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह जिला सीहोर और कृषि मंत्री का गृह जिला हरदा भी शामिल है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक होशंगाबाद में अब तक 61 किसानों के साथ ठगी के मामले सामने आए हैं, जबकि सिवनी में 71, ग्वालियर में 24, गुना में 13, बालाघाट में 8 किसानों के साथ ठगी हुई। 

न्यूज़ क्लिक की एक रिपोर्ट के अनुसार खोजा बंधुओं के मामलों के अलावा प्रदेश में अब तक लगभग 200 किसानों के साथ ठगी की बात सामने आई है, इनमें से केवल तीन किसान ऐसे हैं जिन्हें न्याय मिल पाया है। बाकी किसान अब तक अपनी फसल की कीमत और न्याय पाने के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। जिन किसानों के साथ भी ठगी हुई है, उन सबने अपनी फसल मण्डी के बाहर बेची है। किसानों का कहना है कि उन्हें मण्डी के बाहर अपनी फसल बेचना भारी पड़ गया।

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हालांकि प्रशासन का हर मामले में यही कहना है कि कानून अपना काम कर रहा है। दूसरी तरफ सरकारी दावा है कि प्रदेश के किसान खुशहाली में हैं। बीजेपी का आरोप है कि विपक्षी पार्टियां किसानों को बरगलाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन किसानों के साथ लगातार हो रही ठगी के मामले इस बात की मिसाल हैं कि कृषि कानूनों से किसानों को कितना फायदा या कितना नुकसान हुआ है। 

सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री का दावा  

मुख्यमंत्री ने 14 दिसंबर को मीडिया से कहा था, 'नये कृषि कानूनों का किसानों को लाभ मिल रहा है। दिल्ली की कंपनी ने पिपरिया के किसानों से 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का अनुबंध किया था। कंपनी ने बाद में खरीदी में आनाकानी की, तो एसडीएम ने कार्रवाई की और किसानों को न्याय मिला। कांग्रेस लोगों को भ्रमित न करे।'

इस बयान में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान होशंगाबाद ज़िले के जिस किसान को न्याय दिलाने का श्रेय कृषि कानूनों को दे रहे हैं, उस किसान का कृषि कानूनों के बारे में क्या मानना है, यह भी जान लीजिए। ठगी के शिकार हुए पिपरिया के पुष्पराज सिंह ने हाल ही में एक हिंदी न्यूज चैनल से कहा था कि वो कभी किसी किसान को कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की सलाह नहीं देंगे। पुष्पराज सिंह ने कहा था कि सरकार कह रही है कि किसान कहीं भी माल ले जाकर बेच सकते हैं, लेकिन जब 200 क्विंटल धान की पैदावार हुई तो क्या हम उसे बेचने केरल जाएंगे? उन्होंने कहा कि छोटे किसान अनुंबध की खेती में बर्बाद हो जाएंगे, पंजाब में आंदोलन चल रहा है, इसलिए घबराहट में शिवराज जी ट्वीट कर रहे हैं। 

क्या कृषि कानूनों के दुष्परिणामों की मिसाल बना मध्य प्रदेश 

इस समय दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन में हिस्सा लेने वाले किसान यही कह रहे हैं कि कृषि कानूनों की वजह से कॉरपोरेट घरानों का खेती पर पूरा नियंत्रण हो जाएगा। शुरू में हमें भले ही अच्छे दाम मिल जाएं, लेकिन जैसे ही मण्डी के बाहर फसल बेचने के कारण मंडियां बंद हो जाएंगी, हमारा शोषण शुरू हो जाएगा। किसानों के दावे को मध्य प्रदेश में हकीकत में तब्दील होते देखा जा सकता है।

मध्य प्रदेश में किसानों के साथ ठगी शुरू हो गई है। इक्का दुक्का मामलों को छोड़कर किसानों को न्याय भी नहीं मिल रहा है, किसान दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। दूसरी तरफ प्रदेश में मंडियों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। राज्य सरकार की सरकारी वेबसाइट ई अनुज्ञा के अनुसार अक्टूबर महीने में प्रदेश की 259 मंडियों में 47 मंडियां ऐसी थीं, जिनमें कारोबार ठप हो गया। जबकि 143 मंडियों में 50 से 60 फीसदी तक कारोबार घट गया। बाकी की 69 मंडियों में कारोबार इसलिए हो पाया क्योंकि उनमें फलों और सब्ज़ियों की आवक बनी रही।

पिछले वर्ष के मुकाबले मंडियों का टैक्स कलेक्शन भी घट गया। इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक प्रदेश की मंडियों ने कुल 220 करोड़ का टैक्स कलेक्शन किया है। जबकि पिछले वर्ष अप्रैल 2020 से मार्च 2021 की अवधि में मंडियों में 1200 करोड़ का टैक्स कलेक्शन हुआ था।

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दूसरी तरफ राज्य सरकार ने मण्डी शुल्क भी एक तिहाई घटा दिया है। इसको लेकर राज्य मंडी बोर्ड के संयोजक बीबी फौजदार ने कृषि विभाग और खुद मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि मण्डी शुल्क घटाने के पहले से आर्थिक बदहाली झेल रही मंडियों की आय इस कदम से एक तिहाई और कम हो जाएगी। मंडियों के पास इतना पैसा भी नहीं बचा है कि वो अपने कर्मचारियों तथा पेंशनरों के वेतन का भुगतान कर सकें। मण्डी बोर्ड ने इस सिलसिले में अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने की खुली चेतावनी भी दे दी है। मण्डी बोर्ड ने कहा है कि अगर राज्य सरकार उनकी मांगों को नहीं मानेगी तो मण्डी बोर्ड के सभी कर्मचारी किसान आंदोलन को अपना समर्थन देने के लिए दिल्ली कूच करेंगे। 

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कृषि विभाग का क्या कहना है

हालांकि मंडियों की स्थिति पर कृषि विभाग का यह कहना है कि अक्टूबर महीने में राज्य सरकार ने मण्डी शुल्क घटाने की घोषणा की थी, लेकिन प्रदेश में होने वाले उपचुनावों के कारण लगी आचार संहिता के चलते सरकार शुल्क घटाने का फैसला नहीं ले पाई थी। यही वजह है कि व्यापारी मण्डी शुल्क के घटने के इंतज़ार में मण्डी नहीं पहुंचे। कृषि विभाग का यह भी कहना है कि जो भी किसान मण्डी के बाहर अपनी फसल बेच रहे हैं उन्हें अपनी फसल पर अच्छे दाम मिल रहे हैं। लेकिन जिस तरह से किसानों के साथ रोज़ाना ठगी के मामले बढ़ते जा रहे हैं, उससे कृषि विभाग के दावों को पर यकीन करना काफी कठिन है। हालांकि कृषि विभाग खुद भी यह मानता है कि चूंकि किसानों ने मण्डी के बाहर फसल बेची है, लिहाज़ा उसका रिकॉर्ड रख पाना संभव नहीं है। 

अब मण्डी, किसान और कृषि विभाग के दावों से इस पूरे आंदोलन की तासीर को समझिए। आंदोलनरत किसान यही कह रहे हैं कि एक समय के बाद उनका शोषण शुरू हो जाएगा। मंडियां खत्म हो जाएंगी। सरकार के पास फसल की खरीद बिक्री का कोई रिकॉर्ड नहीं रहेगा। किसानों के ये सारे डर मध्य प्रदेश में हकीकत में बदलते नज़र आ रहे हैं।