कनाडा चुनाव: आम चुनाव के लिए सोमवार को वोटिंग, भारत में क्यों है उत्सुकता

कनाडा में मुख्यतः दो पार्टियों के बीच चुनावी हार जीत का फ़ैसला होगा.. क्या लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो ही बनेंगे दोबारा प्रधानमंत्री या कंजरवेटिव पार्टी के नेता एरिन ओ टूल बनेंगे नया चेहरा

Updated: Sep 20, 2021, 06:13 AM IST

टोरंटो। 20 सितंबर को कनाडा में नई सरकार के गठन के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। चुनावों में मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी के बीच में है। मौजूदा  लिबरल पार्टी की सरकार के कार्यकाल के अभी दो साल बाकी थे लेकिन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने सबको चौंकाते हुए मध्यावधि चुनाव कराने का फैसला कर लिया। उनके इस फैसले के पीछे कारण यह था कि वर्तमान में 338 सदस्य वाली कनाडा की संसद के लोअर हाउस - हाउस ऑफ कॉमंस - में जस्टिन ट्रूडो की पार्टी के 155 सांसद ही हैं जो कि बहुमत के लिए ज़रूरी 170 सांसदों से 15 कम हैं।

बहुमत न होने के कारण ट्रूडो को अहम फैसले लेने के लिए दूसरी छोटी पार्टियों पर निर्भर होना पड़ रहा था। ट्रूडो का ऐसा मानना था कि पिछले डेढ़ साल के कोरोना काल में उनके द्वारा किये गए कामों की वजह से जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है चाहे वो लॉकडाउन के दौरान हर बेरोज़गार हुए व्यक्ति को सात महीने तक 2000 डॉलर (करीब एक लाख बीस हज़ार रुपये) प्रति महीना देना रहा हो या कनाडा में मौजूद हर व्यक्ति को विश्वस्तरीय फ्री वैक्सीन लगाना रहा हो। इस बढ़ी हुई लोकप्रियता को भुनाने के लिए ट्रूडो का फैसला शुरू में सही लगा पर जैसे जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे-वैसे उनके और कंजरवेटिव पार्टी के बीच में मुकाबला बेहद कड़ा होता जा रहा है।

ताज़े ओपिनियन पोल में प्रधानमंत्री ट्रूडो और विपक्षी नेता एरिन ओ टूल लगभग बराबरी पर हैं और लिबरल पार्टी को बहुमत एक बार फिर न मिलने की संभावना बढ़ गयी है। कनाडा में भारत की तरह ही बहुदलीय डेमोक्रेसी है और करीब 19 रजिस्टर्ड पार्टियां है। लेकिन मुख्यतः चार पार्टियों के बीच ही चुनावी हार जीत होती है जो हैं लिबरल पार्टी, कंजरवेटिव पार्टी, ब्लॉक क्यूबेकॉइस और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी जिसके नेता भारतीय मूल के सिख जगमीत सिंह है।

कनाडा के चुनाव भारत के लिए अहम महत्व रखते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के हिसाब से कनाडा में NRI और भारतीय मूल के लोगों की संख्या विश्व में अमरीका, UAE, सऊदी अरब, मलेशिया और म्यांमार के बाद छठे स्थान पर है। एक रोचक तथ्य ये भी है कि कनाडा में सिखों की जनसंख्या प्रतिशत के हिसाब से दुनिया में सबसे ज़्यादा है। और यही तथ्य कनाडा की राजनीति को भारत के लिए महत्वपूर्ण बना देता है। वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन को कनाडा के पंजाब से संबंध रखने वाले लोगों के परोक्ष और प्रत्यक्ष समर्थन के कारण भारत और कनाडा के संबंधों में थोड़ी खटास आई है।  प्रधानमंत्री ट्रूडो पर भी किसान आंदोलन को समर्थन देने के आरोप लगते रहे हैं।

एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि कनाडा इस समय भारत के छात्रों की उच्च शिक्षा और दूसरे भारतीयों की इमीग्रेशन का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। इसलिए कनाडा में चुनावों को भारत में सरकार के नीति निर्धारक और अप्रवास करने के इच्छुक छात्र और आम जनता उत्सुकता से देख रहे हैं। कई लोगों का ऐसा मानना है कि अगर कंजरवेटिव पार्टी की जीत होती है तो वह किसान आंदोलन समर्थन पर अंकुश लगाएगी। दूसरी ओर छात्रों में इस बात की आशंका है कि कंजरवेटिव पार्टी शायद इमीग्रेशन पॉलिसी में बदलाव कर देगी जिससे उनके वहां जाने में कठिनाइयां आ सकती हैं।

किसी भी पार्टी के बहुमत ना पाने की स्थिति में पिछली बार की तरह जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी अहम भूमिका में आ सकती है।  विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी पिछली बार वोट प्रतिशत में लिबरल पार्टी से आगे थी जबकि सीटों में काफी पीछे रह गई थी। कनाडा के पड़ोसी देश अमेरिका के दो लोकप्रिय भूतपूर्व राष्ट्रपतियों, बराक ओबामा और बिल क्लिंटन, ने अपना समर्थन लिबरल पार्टी को देने का ऐलान कर दिया है। मुक़ाबला बेहद रोचक होता जा रहा है और चुनावों के बाद यह तय होगा कि भारत कनाडा के संबंधों की नई दिशा कैसी होगी ।।