सबसे ज्‍यादा जरूरत फिर भी वंचित

जब सरकारों ने जिम्‍मेदारी छोड़ दी है तब स्वयं सेवी संगठन आगे आए हैं।

Publish: Apr 27, 2020, 11:26 AM IST

भोपाल।  प्रदेश की शिवराज सरकार कोरोना संक्रमण का हवाला दे कर अस्पतालों या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में विभिन्‍न बीमारियों के पीड़ितों को नजरअंदाज कर रही है। यहां तक गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व उपचार और पोषण आहार भी नहीं मिल पा रहा है।

भोपाल की गर्भवती महिला सुमन ने बताया कि कोरोना संकट के बीच केंद्र या राज्य सरकार से उन्हें पोषण आहार नहीं मिल रहा है। ऐसे विपरित समय में जब सरकारों ने अपनी जिम्‍मेदारी छोड़ दी है तब स्वयं सेवी संगठन गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार उपलब्‍ध करवाने के लिए सामने आए हैं। ये पहल इसलिए अलग और महत्‍वपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर लोग गरीब और वंचित समुदाय की आवश्‍यकताओं पर ध्‍यान दे रहे हैं मगर गर्भवती महिलाओं की जरूरत पर किसी का भी ध्यान नहीं है। 

गर्भवती महिलाओं की आवश्‍यकताओं को समझ कर सहायता के लिए आगे आए संगठनों में से एक अंश हैप्पीनेस सोसायटी भी है। इस गैर सरकारी संगठन के अध्‍यक्ष मोहसिन ने बताया कि 'जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो हमने 'वॉलंटियर इन एक्शन' नामक मुहिम शुरू की। हमने बलवीर नगर, खानू गांव समेत अन्य इलाकों में लोगों को खाना और बच्चों के लिए दूध के पैकेट वितरित करना शुरू किए। तब हमने पाया कि इन इलाकों में गर्भवती महिलाओं को जरूरत अनुसार आहार नहीं मिल रहा था। जिसे देखते हमने पोषण आहार की एक विशेष खुराक और डॉक्टरों के सुझाव पर एक किट तैयार की है।’

इस किट में गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन और प्रोटीन के मुख्‍य स्रोत के रूप में खजूर, केला, मूंगफली और गुड़ को शामिल किया है। सोसायटी का कहना है कि वो इन महिलाओं की काउंसलिंग भी कर रहे हैं और साथ वैक्सीन आदि की जरूरतें भी पूरी करवा रहे हैं। 

संस्था के अध्‍यक्ष मोहसिन ने कहा कि हम सरकार समेत यूनिसेफ और महिला एवं बाल विकास विभाग से सोशल मीडिया और अन्य जरियों से संपर्क कर कोरोना के कारण प्रभावित परिवारों में गर्भवती महिलाओं तक उचित मदद पहुंचाने की भी मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन महिलाओं तक अतिरिक्त मदद पहुंचाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। लॉकडाउन के कारण हजारों-लाखों दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी छिन गई है, जिसके कारण इन महिलाओं तक आवश्यक पोषक आहार नहीं पहुंच रहा है। सोसायटी ने अब तक 17 महिलाओं तक अपने पोषण किट को पहुंचाया है लेकिन वो अन्य लोगों से भी इसमें मदद की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि बीते साल नवंबर में आई जच्चा-बच्चा रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि सरकारें अक्सर गर्भावस्था और डिलीवरी के दौरान होने वाली जरूरतों को नजरअंदाज करती हैं।यही वजह है कि अंश हैपिनेस सोसायटी को इस क्षेत्र में काम करने की जरूरत महसूस हुई।