डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना, इंदौर में फल-समोसा बेचने को मजबूर PSC अभ्यर्थी, रिजल्ट के इंतजार में हो रहे ओवरएज

इंदौर में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे युवाओं की दर्दनाक दास्तां, पिछले चार वर्षों से एमपीपीएससी भर्ती परीक्षा का नहीं आया है रिजल्ट, टूट रहा अभ्यर्थियों के सब्र का बांध, रोटी कमाने के लिए एक ने खोली समोसे की दुकान तो दूसरा बेच रहा फल

Updated: Sep 07, 2022, 07:25 AM IST

इंदौर। मध्य प्रदेश ने सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे युवाओं की स्थिति बदहाल है। रिजल्ट के इंतजार में होनहार युवा ओवरएज हो रहे हैं। अभ्यर्थियों के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। हालात ये हैं कि एमपीपीएससी के अभ्यर्थी समोसा तलने और फल बेचकर जरूरतों को पूरा करने को मजबूर हैं। हालांकि, उन्होंने अब भी हार नहीं मानी है। डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना अभी भी उनकी आंखों में चमक रहा है।

यह कहानी उन दो युवाओं की है जो छोटे शहर से अपना घर परिवार छोड़कर इंदौर में डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना लेकर आए थे। लेकिन सरकारी सिस्टम उनके सपनों को रौंदने को आतुर है। बावजूद उनके जज्बों को डिगा नहीं सका। गरीब परिजनों पर पढ़ाई का बोझ डालने की बजाय उन्होंने अपना नया रास्ता निकाला। अपने सपने को न भूलने देने के लिए एक ने खंडवा नाका पर समोसे की दुकान खोलकर उसका नाम PSC समोसे वाला रख दिया तो दूसरे ने भंवरकुआं इलाके में पीसीएस फलाहार नाम से दुकान खोल दिया।

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रीवा जिले के चौखड़ा गांव के एक किसान परिवार में अजीत सिंह की अफसर बनने की ख्वाहिश थी। बेटे को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए किसान पिता ने उन्हें मार्च 2017 में इंदौर भेजा। 19 साल की उम्र में ही अजीत घर छोड़कर इंदौर आ गए। यहां उन्होंने शेयरिंग में एक छोटा सा कमरा किराए पर लेकर पढ़ाई शुरू कर दी। वह समय निकालकर खाना भी खुद ही बनाते। दो साल की तैयारी के बाद अजीत ने साल 2019 में एग्जाम दिया, लेकिन मामला कोर्ट में जाने से रिजल्ट नहीं आया। 2021 में भी एग्जाम दिया, लेकिन रिजल्ट नहीं आया।  

बेटे की सरकारी नौकरी लगने की आस में पिता लगातार मेहनत कर उसे पैसे भेजते रहे। बीच में वे पूछते की बेटा रिजल्ट कब आएगा। मगर अजीत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता। इस साल फसल खराब होने से घर का आर्थिक स्थिति बदतर हो गया। ऐसे में अजीत को महीने का पांच हजार रुपए भेजने में भी वे सक्षम नहीं थे। अजीत ने अब खंडवा रोड़ पर PSC समोसेवाला नाम से एक दुकान शुरू किया है। अजीत यहां स्वयं समोसे टालते हैं और उसे बेचते हैं। अजीत के दुकान पर प्रतियोगिता परिक्षाओं के तमाम मैगजीन आपको मिल जाएंगे। 

अजीत का कहते हैं कि MPPSC की भर्ती प्रक्रिया निरंतर लेट होती जा रही है। हमें तैयारी भी करनी है और जरूरतों को पूरा करने के लिए रुपए भी चाहिए। इसलिए उन्होंने समोसे की दुकान शुरू कर दी। इसी तरह भंवरकुआं इलाके में 28 वर्षीय एमपीपीएससी अभ्यर्थी तेजप्रकाश कुशवाहा ने फ्रूट चाट बेचने की दुकान खोली है। उन्होंने इसका नाम पीसीएस फलाहार रखा है। 

रीवा जिले के ही रहने वाले तेजप्रकाश ने बताया कि अलाहाबाद यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह पिछले 6 वर्ष से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं। तेज ने बताया कि उन्होंने एमपीपीएससी 2019 की मुख्य परीक्षा, 2020 की मुख्य परीक्षा दी है और 2021 की मुख्य परीक्षा में भी शामिल होंगे। लेकिन समस्या यह है कि परिणाम घोषित नहीं होने के कारण उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। 

उधर घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। माता-पिता का भी अत्याधिक दबाव है। इसलिए उन्होंने दो अन्य दोस्तों के साथ मिलकर फ्रूट चाट बेचना शुरू कर दिया। पहले दिन उन्होंने पास की मंडी से लाकर 6 किलो पपीते बेचे जिससे उन्हें 35 रुपए का फायदा हुआ। अब वे रोज सुबह मंडी से फल लाते हैं और उसे काटकर बेचते हैं। इससे प्रतिदिन उन्हें करीब 300 रुपए का मुनाफा हो जाता है। 

बता दें कि पिछले चार वर्षों में एमपीपीएससी ने 1400 पदों के लिए भर्तियां निकाली है। इसमें 10 लाख से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए। लेकिन परीक्षाओं के अंतिम परिणाम अभी घोषित नहीं किए गए हैं। बोर्ड ओबीसी रिजर्वेशन का विवाद कोर्ट में लंबित होने का हवाला देकर इन्हें जारी नहीं कर रहा है।