मध्य प्रदेश में जंगलों का भी होगा प्राइवेटाइजेशन, 40 फीसदी जंगल निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी

मध्य प्रदेश में वन क्षेत्र लगभग 95 लाख हेक्टेयर है। इसमें बिगड़े वनों का क्षेत्रफल लगभग 37 लाख हेक्टेयर है। इन्हें सुधारने के लिए सरकार जंगलों को निजी हाथों में देने की तैयारी में है।

Updated: Feb 18, 2025, 09:46 AM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में अब जंगलों का भी प्राइवेटाइजेशन होगा। मोहन यादव सरकार राज्य के 40 फीसदी जंगलों को निजी हाथों में देने की तैयारी में है। दरअसल, वनों की स्थिति को सुधारने के नाम पर सरकार बिगड़े वन क्षेत्र को पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप (PPP) मॉडल के तहत निजी कंपनियों को देने की तैयारी में है।

मध्य प्रदेश में वन क्षेत्र लगभग 95 लाख हेक्टेयर है। इसमें बिगड़े वनों का क्षेत्रफल लगभग 37 लाख हेक्टेयर है। यानि वन का करीब 40 फीसदी भूभाग बिगड़े वन क्षेत्र की श्रेणी में है। प्रदेश के इन वनों का सुधार अब पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) माध्यम से होगा। इसके लिए कई जंगल अब निजी हाथों में सौंपे जाएंगे।

राज्य सरकार द्वारा छोटे निवेशकों को 10 हेक्टेयर और बड़े निवेशकों को 1000 हेक्टेयर तक की जमीन पर जंगल विकसित करने के लिए आमंत्रित किया गया है। निजी कंपनियों को यह जमीन 60 साल की लीज पर दी जा रही है। राज्य सरकार का दावा है कि जो बिगड़े हुए वन हैं जिन्हें निजी निवेश से सुधारने की कोशिश की जाएगी।

मध्य प्रदेश सरकार ने वन विभाग की वेबसाइट पर 'सीएसआर, सीईआर और अशासकीय निधियों के उपयोग से वनों की पुनर्स्थापना की नीति' जारी की है। इसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश में लगभग 95 लाख हेक्टेयर में जंगल हैं। इनमें से 37 लाख हेक्टेयर जंगल बिगड़े हुए वनों की स्थिति में है। इन जंगलों को राज्य सरकार अपने संसाधनों से पुनर्स्थापित नहीं कर पा रही है।

राज्य सरकार ने अपनी नीति में लिखा है कि वह इन जंगलों को निजी हाथों में देने जा रहे हैं। इन जंगलों को फिर से हरा भरा करने के लिए बड़ी कंपनियों के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी और कॉर्पोरेट एनवायरमेंटल रिस्पांसिबिलिटी के फंड का इस्तेमाल किया जाएग। बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को इन दोनों मदों में अपनी कुल कमाई का 3% देना होता है।

बता दें कि बिगड़ा वन क्षेत्र उसे माना जाता है, जिसमें पेड़ कम हों और झाड़ियां या खाली जमीन अधिक हो। हालांकि, इस निर्णय का विरोध भी हो रहा है। विपक्षी दल कांग्रेस ने इस योजना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता आनंद जाट ने कहा कि सुधार के नाम पर वनों को बेचने की तैयारी है। जंगल की ज़मीन पर आदिवासियों का पहला हक है। लेकिन भाजपा सरकार आदिवासियों से जंगल छीन अपने उद्योगपति मित्रों को देना चाहती है।