केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के इलाक़े में मंडी कर्मचारियों को वेतन के लाले, मुरैना में एक करोड़ से ज़्यादा का वेतन लंबित

मध्य प्रदेश के मुरैना की 6 मंडियों में लगभग एक करोड़ चार लाख 57 हज़ार की राशि लंबित है जो मंडियों में काम कर रहे कर्मचारियों की दी जानी है

Updated: Jan 07, 2021, 04:07 AM IST

Photo Courtesy : The Tribune
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भोपाल। भारत सरकार में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र की मंडियों में काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ रहे हैं। 7 मंडियों में से 6 मंडियां ऐसी हैं जिनमें एक करोड़ से ज़्यादा की राशि के वेतन का भुगतान नहीं हुआ है। कृषि मंत्री के संसदीय क्षेत्र में एक मंडी तो ऐसी है जहां के कर्मचारी पिछले 16 महीने से वेतन मिलने की बाट देख रहे हैं।  

मुरैना की 6 मंडियों में काम करने वाले कर्मचारियों को कुल 1 करोड़ 4 लाख 57 हज़ार रुपए की राशि वेतन के तौर पर दी जानी है। मुरैना की पोरसा मंडी, मुरैना मंडी, साबलगढ मंडी, अम्बाह मंडी, जोरा मंडी, बानमौरकलां मंडी में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। मुरैना मंडी में पिछले दो महीने, पोरसा और जोरा में तीन महीने, साबलगढ़ में एक महीना और बानमौरकलां मंडी के कर्मचारियों को पिछले 16 महीने से वेतन नहीं मिला है। मुरैना की इन मंडियों में लंबित वेतन का कुल योग निकाला जाए तो यह 1 करोड़, 4 लाख 57 हज़ार रुपए बैठता है।  

मुरैना मंडी में 30 लाख रुपए की राशि का वेतन लंबित है। जबकि पोरसा मंडी में 20 लाख, साबलगढ़ मंडी में 6 लाख 40 हज़ार, अम्बाह मंडी में 4 लाख 50 हज़ार, जोरा मंडी में 5 लाख 50 हज़ार और जबकि बानमौरकलां में 38 लाख से ज़्यादा की राशि का वेतन लंबित है। 

यह हाल मुरैना की मंडियों का है। ग्वालियर संभाग की कुल 16 मंडियां ऐसी हैं, जहां के कर्मचारी वेतन की आस लगाए बैठे हैं। पूरे ग्वालियर संभाग की मंडियों में लंबित वेतन राशि की बात करें तो यह 4 करोड़ 64 लाख 92 हज़ार 542 रुपए है। 16 मंडियों में से एक मंडी (लश्कर) ग्वालियर की है। गुना की दो (कुंभराज और राघोगढ़), शिवपुरी ( शिवपुरी और करेरा) की दो, भिंड की पांच (भिंड,लहार,आलमपुर,मोँ, और मेहगांव)  और मुरैना की 6 मंडियां हैं।

इन 16 मंडियों में वेतन के लिए सबसे लंबा इंतज़ार बानमौरकलां, मेहगांव और मौं मंडी के कर्मचारियों को करना पड़ा है। बानमौरकलां के कर्मचारियों का वेतन 16 महीने से और मेहगांव मंडी के कर्मचारियों का वेतन 13 महीने से नहीं मिला है। मौं मंडी के कमर्चारी पिछले 10 महीने से बिना वेतन के काम करने को मजबूर हैं। 

ग्वालियर संभाग में मंडी कर्मचारियों का वेतन लंबित है, लिहाज़ा ग्वालियर कृषि विपणन बोर्ड के संयुक्त संचालक ने राज्य मंडी बोर्ड, भोपाल को इस बारे में पत्र भेजा है। पत्र में राज्य मंडी बोर्ड से कहा गया है कि वो पहले से आर्थिक बदहाली झेल रही मंडियों में लंबित वेतन का भुगतान करने हेतु ज़रूरी कदम उठाएं।  

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यही हाल प्रदेश के बाकी 6 संभागों में संचालित अधिकांश मंडियों का है। यहां भी मंडी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। मंडी में कार्यरत कर्मचारी ने कहा कि मध्य प्रदेश में 1 मई 2020 को लागू मॉडल मंडी एक्ट, उसके बाद कृषि अध्यादेशों को 24 जून से मंडियों पर लागू करने के बाद प्रदेश की अधिकांश मंडी समितियों में कृषि उपजों की आवक कम हो गई है। उस पर राज्य सरकार द्वारा मंडी शुल्क घटाने के निर्णय के कारण मंडियों की आय में और भी कमी आ गई है। मंडी शुल्क एक तिहाई घटाने के कारण मंडियां अब अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर पाने में सक्षम नहीं हैं। वे पहले से ही आर्थिक भार झेल रही हैं और अब कृषि कानूनों ने तो मंडियों की जैसे कमर ही तोड़ दी है।

मंडी कर्मचारी ने कहा कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर नये कृषि कानूनों को किसान हितैषी साबित करते हुए अपने भाषणों में कहते आ रहे हैं कि मंडियाँ खत्म नहीं होंगी, जबकि खुद उनके संसदीय क्षेत्र की मंडी समितियों पर भी बदहाली का संकट मंडरा रहा है। इन मंडियों में कृषि उपजों की आवक नहीं हो रही है। मंडी शुल्क से आय नगण्य हो चुकी है, मंडी कर्मचारियों को वेतन भुगतान नहीं हो रहा है।

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मध्य प्रदेश के सात डिविज़न में कुल 259 मंडियां और 298 उप मंडियां हैं। उप मंडियों में केवल सीज़न में ही कारोबार होता है। इन मंडियों में 6500 कर्मचारी काम करते हैं, जिसमें 1500 महिलाएं हैं। 2500 पेंशनर और लगभग 9000 रिटायर्ड मजदूर भी इन पर निर्भर हैं।