MP की सियासत का केंद्र बना जबलपुर, एक ही कार्यक्रम में शामिल होंगे कांग्रेस और बीजेपी के दिग्गज

बलिदान दिवस पर सियासत गर्म, जबलपुर आ रहे हैं गृह मंत्री अमित शाह, सीएम शिवराज और वीडी शर्मा भी रहेंगे साथ, कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और कांतिलाल भूरिया संभालेंगे मोर्चा

Updated: Sep 17, 2021, 11:26 AM IST

जबलपुर। बलिदान दिवस को लेकर जबलपुर मध्य प्रदेश की सियासत का केंद्र बन गया है। यहां कल आदिवासी राजा शंकरशाह- रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस मनाया जाएगा। इसे देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने अपने नेताओं की फौज खड़ी कर दी है। नतीजतन बलिदान दिवस सियासी अखाड़ा बनता दिख रहा है।

दरअसल, कार्यक्रम के लिए विशेष तौर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहुंच रहे हैं। अमित शाह के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान भी पहुंचेंगे। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा दो दिन पहले से ही कैम्प किए हुए हैं ताकि शाह की आवभगत में कोई चूक न हो जाए। उधर कांग्रेस के दिग्गज नेता व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह, पीसीसी चीफ कमलनाथ व कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया भी इस कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे हैं।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कल जबलपुर में हाईवोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा देखने को मिलेगा। क्योंकि जब अमित शाह और सीएम शिवराज का सामना दिग्विजय सिंह और कमलनाथ से होगा तो सियासी भूचाल आना तय है। उधर, जिला प्रशासन के अधिकारी भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि एक साथ दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के वीआईपी मूवमेंट को कैसे हैंडल किया जाए। चूंकि, ये तय है कि नेताओं के साथ हजारों की संख्या में उनके समर्थकों का हुजूम भी होगा। हालांकि, कहा जा रहा है कि बीजेपी नेताओं ग्रुप कार्यक्रम में पहले हिस्सा लेगा वहीं कांग्रेस नेता बाद में जाएंगे।

कौन थे शंकर शाह

शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे। सन 1857 में रानी लक्ष्मी बाई, वीर कुंवर सिंह व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह हुआ था तब शंकर शाह ने भी जंग का ऐलान कर दिया था। शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह के साथ मिलकर अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए थे। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया था। क्रूर अंग्रेजी सैनिकों ने 18 सितंबर 1958 को दोनों बाप बेटों को तोप से बांधकर उड़ा दिया था। आदिवासी समाज के लोगों का शंकर शाह और रघुनाथ शाह से भावनात्मक जुड़ाव है।

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क्या हैं गृहमंत्री के दौरे के मायने

अमित शाह के इस दौरे को आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी का हथकंडा के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, मध्य प्रदेश के करीब 80 सीटों पर आदिवासी वोट निर्णायक साबित होता है। वहीं पारंपरिक रूप से आदिवासी वोटबैंक पर कांग्रेस का कब्जा है। साल 2018 में भी आदिवासी वोटबैंक खिसकने के कारण ही बीजेपी की हार हुई थी। तब आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज किया था।