3 साल में एमपी में 3000 किशोरों ने की आत्महत्या, पूरे देश में ख़ुदकुशी के सबसे ज्यादा मामले

2017 से 2019 के बीच पूरे देश में 24 हजार से ज्यादा टीन-एज किशोरों ने आत्महत्याएं की, इसमें मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा तीन हजार बच्चों ने की आत्महत्या ने सभी को चौंकाया, परीक्षा में असफलता रहा सबसे बड़ा कारण

Updated: Aug 02, 2021, 03:11 PM IST

Photo Courtesy: bigstock
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भोपाल। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का एक आंकड़ा मध्य प्रदेश के लिए शर्म से सिर नीचा कर देनेवाला है। इस आंकड़े में मध्य प्रदेश की जो तस्वीर सामने आई है, वह समाज को ग्लानि से भर देता है। एनसीआरबी के डेटा में बताया गया है कि बीते तीन सालों में यानि की साल 2017 से 2019 की अवधि के दौरान मध्य प्रदेश में तीन हज़ार से ज़्यादा बच्चे अकाल मौत के शिकार हुए। यह आंकड़ा तब और भी ज्यादा तकलीफदेह बन गया, जब यह जानकारी सामने आयी कि यह पूरे भारत में यह सबसे ज्यादा है। एनसीआरबी कहती है कि भारत में इसी अवधि में 24 हजार किशोर अपनी जान दे चुके हैं।

एनसीआरबी का यह आंकड़ा संसद में पेश एक रिपोर्ट में सामने आया है। इस रिपोर्ट से पता चला है कि 2017 से 2019 के दौरान 14-18 उम्र वर्ग के कुल 24,568 किशोरों ने आत्महत्या की है। मध्य प्रदेश में इस अवधि के दौरान 3,115 किशोरों ने आत्महत्या की। 

मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है, जबकि महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है। पश्चिम बंगाल में इसी अवधि के दौरान 2,802 किशोरों ने खुद को मार डाला। जबकि महाराष्ट्र में 2,527 और तमिलनाडु में 2,035 किशोरों ने खुद ही मौत को गले लगा लिया। 

आत्महत्याओं के आंकड़े के मुताबिक खुदकुशी करने वाले 24 हजार से ज्यादा किशोरों में 13,325 लड़कियां थीं। आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 8,029 बच्चों ने आत्महत्या की थी। जबकि 2018 में 8,162 और 2019 में 8377 बच्चों ने खुदकुशी की। इन आंकड़ों आकलन करने से यह बात जाहिर तौर पर साफ है कि साल दर साल आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। 

परीक्षा में फेल होने वाले सबसे ज्यादा बच्चों ने की आत्महत्या 

किशोरों की आत्महत्या के पीछे सबसे बड़ा कारण परीक्षा में असफल होना बताया गया है। 4,046 किशोरों ने परीक्षा में फेल होने के कारण आत्महत्या कर ली। जबकि 3,315 किशोरों ने प्रेम संबंधों के चलते आत्महत्या की। 2,567 बच्चों ने बीमारी की वजह से, 639 बच्चों ने विवाद से संबंधित मसलों और 81 किशोरों से शारीरिक शोषण से तंग आकर खुद को मारना मुनासिब समझा। आत्महत्या के पीछे सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचना, नशे का आदि होना भी बड़े कारणों में से एक रहा।  

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देश भर में छोटी उम्र में बढ़ते आत्महत्या के मामले पर चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट पूजा मारवाह ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि बच्चों में बढ़ते ऐसे मामलों के पीछे सबसे बड़ा कारण आत्मविश्वास की कमी है। उन्होंने बताया कि बच्चों पर जब किसी चीज का बोझ ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ जाता तब वे आत्महत्या को ही समाधान मानने लग जाते हैं। और आखिरकार ऐसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए समाजिक तौर पर प्रयास किए जाने के साथ-साथ शैक्षणिक तौर पर प्रयास किया जाना जरूरी है। स्कूलों में बच्चों के पाठ्यक्रम में जीवन कौशल को शामिल किया जाना चाहिए।