कोरोना से लड़ने में मप्र सरकार नाकाम, मदद के लिए याचिका

याचिका में कहा गया है कि स्थिति बहुत नाजुक है और राज्य प्रशासन स्थिति संभालने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है और प्रशासन की तरफ से पारदर्शिता की भी कमी है. 

Publish: Apr 21, 2020, 05:49 AM IST

कोरोना वायरस को लेकर मध्य प्रदेश की स्थिति काफी खराब है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. याचिका में केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को एक उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग समिति बनाने का आदेश देने अपील की गई है. इसके साथ ही याचिका में प्रत्येक बीमार व्यक्ति को मेडिकल सहायता, स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई किट्स और दूर-दराज के इलाकों में लैब बनाकर ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किए जाने की मांग की गई है. 

याचिकाकर्ता चिन्मय मिश्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि मध्य प्रदेश कोरोना वायरस से बुरी तरह से प्रभावित प्रदेशों में शामिल है. राज्य की राजधानी भोपाल और आर्थिक राजधानी इंदौर पर कोरोना वायरस का सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है. इंदौर में तो मृत्यु दर पूरे देश के मुकाबले सर्वाधिक है. 

याचिका में कहा गया है कि स्थिति बहुत नाजुक है और राज्य प्रशासन स्थिति संभालने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है और प्रशासन की तरफ से पारदर्शिता की भी कमी है. 

याचिका में आगे कहा गया है कि मध्य प्रदेश राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. हाल ही में सरकार बदली है और 23 मार्च को नए मुख्यमंत्री ने शपथ ली है. लेकिन अभी तक राज्य में कैबिनेट का गठन नहीं हुआ है और ना ही कोई स्वास्थ्य मंत्री मौजूद है. इसलिए ऐसे कठिन समय में प्रशासन को निर्देश देने के लिए राजनीतिक नेतृत्व का पूरी तरह से आभाव है. 

याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रदेश में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई है, लेकिन इस टास्क फोर्स में बीजेपी के नेताओं के अलावा कोई भी मेडिकल एक्सपर्ट नहीं है. राज्य प्रशासन के पास ना तो पर्याप्त लैब हैं और ना ही टेस्टिंग किट. इससे वायरस के फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है. 

याचिका में कहा गया है कि उज्जैन, इंदौर और भोपाल रेड जोन में शामिल हैं, लेकिन यहां भी प्रशासन असहाय है. उज्जैन में एक भी लैब नहीं है. वहीं इंदौर के सैंपल अभी भी दूसरी जगहों पर भेजे जा रहे हैं, जिनके परिणाम आने में चार से पांच दिन का समय लग जाता है, इस बीच मरीजों की हालत बिगड़ जाती है. राज्य प्रशासन लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देने में पूरी तरह से विफल साबित हुआ है. 


याचिका में मजदूरों की दुर्दशा की भी बात की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि राज्य प्रशासन ने इस बारे में अभी तक कोई डाटा नहीं दिया है कि असंगठित क्षेत्र से आने वाले मजदूरों और बेघर लोगों के लिए क्या विशेष इंतजाम किया गया है. याचिका में कहा गया है कि यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वो जरूरतमंदों के लिए राशन और खाने का इंतजाम करो लेकिन प्रशासन इसमें भी बुरी तरह से फेल हुआ है. 

याचिका में दावा किया गया है कि राशन ना उपलब्ध होने पर राज्य में बड़े स्तर पर भूखमरी जन्म ले सकती है और अभी तक राज्य में 37 हजार बेघर परिवारों के लिए किसी भी तरह की घोषणा नहीं हुई है.