ये कौन सा सर्वे है, जिसमें टिकट सिर्फ आदिवासी विधायक का ही कटता है, BJP के आदिवासी नेताओं का छलका दर्द

मध्य प्रदेश के मतदाताओं में 21.5 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 15.6 प्रतिशत दलित हैं लेकिन 2018 में इन समुदाय की बड़ी आबादी ने भाजपा को वोट नहीं दिया था।

Updated: May 20, 2023, 12:34 PM IST

इंदौर। मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर से पार पाने के लिए बीजेपी दलित और आदिवासी सीटों पर फोकस कर रही है। सर्वाधिक फोकस उन आदिवासी सीटों पर है, जो बीते चुनाव में कांग्रेस ने छीन ली थी। इसी क्रम में इंदौर संभाग की 27 सीटों में से 19 आदिवासी सीटों के नेताओं को इंदौर में अपनी बात रखने के लिए बुलाया गया। इस दौरान आदिवासी नेताओं ने पार्टी के भीतर आदिवासियों के साथ हो रहे उपेक्षा को लेकर नाराजगी जाहिर की।

बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय द्वारा आयोजित इस बैठक में एक पूर्व विधायक ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा आदिवासियों के सबसे ज्यादा टिकट काटती है। पूर्व विधायक ने कहा, 'ऐसा कौन सा सर्वे है, जिसके आधार पर सिर्फ आदिवासी विधायकों के टिकट काटे जाते हैं और सामान्य-ओबीसी के नहीं। 2018 के चुनाव में 13 मंत्री हार गए, उनका सर्वे में नाम नहीं था क्या? हम लोगों के टिकट काटना बंद करो। गलती का सुधार करवाओ। टिकट मिलने न मिलने का दबाव जिंदगी में जी रहे हैं।'

पूर्व विधायक वेलसिंह भूरिया ने कहा एससी-एसटी की सीनियरिटी कम करने के लिए आदिवासियों का टिकट काटा जाता है। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों का सर्वे में आ जाए कि वो 50 हजार वोटों से हार रहे हैं तो भी टिकट नहीं काटा जाता। सर्वे में आदिवासी उम्मीदवार जीत भी रहा हो तो उसका टिकट काट दिया जाता है। इस दौरान अनुसूचित जनजाति मोर्चा के एक प्रदेश पदाधिकारी ने कहा कि, 'मैं मुख्यमंत्री के पास कई बार ट्रांसफर का आवेदन लेकर गया, लेकिन एक भी अफसर का ट्रांसफर नहीं हुआ। हमको ट्रांसफर खोर समझ लिया है। जैसे पैसे लेकर ट्रांसफर करवा रहे हों।' 

वहीं राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी ने कहा कि हमारी राज्यसभा की राशि स्थानीय अफसरों ने रोक रखी है। 3-4 करोड़ की राशि पेंडिंग है। कैसे क्षेत्र में विकास करवाएं। इसपर कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि राजनीति डेयरिंग से की जाती है। अफसर सुन नहीं रहे तो सबक सिखाओ। ट्रांसफर समाधान नहीं है। दरअसल, संघ ने इस बात पर जोर दिया है कि दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों का समर्थन हासिल करना जरूरी है।

बता दें कि बीते कुछ समय से राज्य में दलित और आदिवासियों के साथ होने वाले अपराध में तेजी आई है, जिसने भाजपा के लिए ये जरूरी बना दिया है कि वो 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र इस धाराणा को बदले। राज्य की 230 विधानसभा सीटों में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं वहीं 35 सामान्य सीटें है जहां आदिवासी आबादी तकरीबन 50 हज़ार है। राज्य में 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए भी आरक्षित है।

2013 और 2018 के बीच भाजपा दलित और आदिवासी बहुल इलाकों में बुरी तरह चुनाव हारी थी। 2018 में 47 सीटों में भाजपा को केवल 18 सीटें मिली थी वहीं 2013 में पार्टी को 31 सीटें मिली थी। वहीं कांग्रेस ने 2018 में 31 सीटें जीती थी। इसी तरह एससी की 35 आरक्षित सीटों में भाजपा को 17 सीटें मिली थी वहीं 2013 में ये आंकड़ा 13 सीटों का था।