खतरे की घंटी: सदी के अंत तक 220 करोड़ लोग करेंगे असहनीय गर्मी का सामना, भारत-पाकिस्तान में रहना होगा दूभर

शोध में पाया गया है कि भारत और पाकिस्तान समेत कई देशों के अरबों लोगों को ऐसी गर्मी का सामना करना पड़ेगा जो इंसान के सहने की क्षमता से कहीं अधिक होगा और लोग हीट या दिल की धड़कन बंद होने से मरने लगेंगे

Updated: Oct 11, 2023, 07:01 PM IST

नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चेतावनी जारी करने के बाद एक और चिंताजनक रिपोर्ट सामने आयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत और पाकिस्तान समेत कई देशों के अरबों लोगों को ऐसी गर्मी का सामना करना पड़ेगा जो इंसानों के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल होगा। तापमान बढ़ने के कारण लोग या तो हीट स्ट्रोक से मरने लगेंगे या फिर दिल की धड़कने बंद हो जाएंगी। शोध में यह भी दावा किया गया है कि सिंधु घाटी सहित दुनिया के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों का रहना दूभर हो जाएगा।

ये शोध पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पर्ड्यू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंसेज और पर्ड्यू इंस्टीट्यूट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर के शोधार्थियों ने मिलकर किया है। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ जनरल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि पृथ्वी का पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होना मानव स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी होगा। इस सदी के अंत तक कई देशों में गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं में इजाफा हो सकता है।

इस शोध में कहा गया है कि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ने पर उत्तरी भारत, पूर्वी पाकिस्तान, पूर्वी चीन और उप-सहारा अफ्रीका सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इससे भारत और पाकिस्तान के 2.2 अरब, चीन के एक अरब और उप-सहारा अफ्रीका में 80 करोड़ लोग ऐसी गर्मी का अनुभव करेंगे, जो मानवीय सहनशीलता से काफी अधिक होगी। गर्मी का सबसे अधिक असर दिल्ली, कोलकाता, शंघाई, मुल्तान, नानजिंग और वुहान जैसे शहरों पर देखने को मिलेगा।

शोध में आगे कहा गया है कि अगर पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3 डिग्री सेल्सियस ऊपर जाता है तो गर्मी का स्तर पूर्वी समुद्री तट और अमेरिका के मध्य भाग को प्रभावित कर सकता है। इस शोध में पाया गया कि दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी अत्यधिक गर्मी का अनुभव होगा, लेकिन विकसित देशों में लोग विकासशील देशों की तुलना में कम पीड़ित होंगे, जहां बूढ़े और बीमार लोग मर सकते हैं।

इस शोध पत्र के सह-लेखक मैथ्यू ह्यूबर ने कहा, 'गर्मी का सबसे बुरा असर उन इलाकों में होगा, जो समृद्ध नहीं हैं और जहां आने वाले दशकों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि होने की उम्मीद है। जबकि ये भी सच है कि ये देश अमीर देशों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं। अरबों गरीब लोग गर्मी की चपेट में आकर मर सकते हैं, लेकिन विकसित देश भी इस गर्मी से पीड़ित होंगे।'

शोधकर्ताओं का कहना है कि तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने से उत्सर्जित कार्बन डाईऑक्साइड को कम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इसमें बदलाव नहीं किए गए तो मध्यम आय और निम्न आय वाले देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। बता दें कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए विश्व को साल 2019 की तुलना में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा करना होगा।

क्लाइमेट चेंज एक्सपर्ट्स के मुताबिक आने वाले दशकों में ग्लोबल तापमान बढ़ने का असर भारत के मैदानी इलाकों में खतरनाक साबित हो सकता है। यहां अत्याधिक तपिश होना तय है। अधिकांश मैदानी इलाकों में लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। भारत में इस साल चाहे सिक्किम में आई आसमानी आपदा हो, या लगातार चक्रवाती तूफानों का कहर हो या कई राज्यों में बारिश की वजह से हो रही भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति हो, सभी जलवायु परिवर्तन के ही नतीजे हैं, और इसके लिए सीधे तौर पर इंसान ही जिम्मेदार हैं।