मोदी राज में 15 फ़ीसदी घटा देश में कच्चे तेल का उत्पादन, इंपोर्ट पर बढ़ी निर्भरता

पीएम मोदी पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों का दोष पिछली सरकारों पर मढ़ते हुए उन्हें घरेलू तेल उत्पादन नहीं बढ़ाने के लिए कसूरवार ठहरा चुके हैं, लेकिन सच ये है कि ख़ुद मोदी के राज में घरेलू उत्पादन पहले से भी कम हुआ है

Updated: Feb 24, 2021, 06:50 AM IST

Photo Courtesy: Zee News
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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दामों का ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ चुके हैं। मोदी हाल ही में कह चुके हैं कि पिछली सरकारों ने देश में तेल का घरेलू तेल उत्पादन नहीं बढ़ाया, आयात पर निर्भरता को कम नहीं किया, जिसके कारण देश में तेल की कीमतें काबू में रखना मुश्किल हो गया है। उन्होंने यह दावा भी किया कि उनकी सरकार इस स्थिति को बदलने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। लेकिन हकीकत उनके इन दावों से ठीक उलटी नज़र आ रही है। आत्मनिर्भर भारत के उनके नए स्लोगन के विपरीत कच्चे तेल के मामले में देश की दूसरों पर निर्भरता बढ़ी है। 

आंकड़े बता रहे हैं कि खुद मोदी के राज में कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन बढ़ने की बजाय लगातार घटा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता लगातार बढ़ी है। मोदी राज के मुकाबले मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में देश में कच्चे तेल का अधिक उत्पादन किया जाता था। दरअसल मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन 15 फीसदी तक घट गया है। यह आंकड़े प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान के ठीक उलट हैं, जो उन्होंने 17 फरवरी को तमिलनाडु में दिया था। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑयल एंड गैस प्रोजेक्ट के उद्घाटन कार्यक्रम में कहा था कि देश में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने का कारण पिछली सरकारों की नीतियां रही हैं। मोदी ने सवाल उठाया था कि क्या भारत जैसे सक्षम देश को एनर्जी मामले में बाहरी देशों पर निर्भर रहना चाहिए। उन्होंने कहा था कि अगर पहले की सरकारों ने कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन पर ध्यान दिया होता तो आज देश के मध्यम वर्गीय परिवारों को आर्थिक बोझ नहीं झेलना पड़ा। 

प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा की तरह देश में समस्याओं से पल्ला झाड़ते हुए सारा दोष पिछली सरकारों पर मढ़ तो दिया, लेकिन तथ्यों के मामले में उनकी दलील उल्टी पड़ती नज़र आ रही है। मोदी अपने बयान से कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार पर निशाना साधना चाहते थे। लेकिन आंकड़े उनके आरोप का साथ नहीं दे रहे। हकीकत यह है कि देश में कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन में गिरावट और आयात पर निर्भरता में बढ़ोतरी, यह सब खुद मोदी के अपने ही राज में हुआ है।

मोदी राज में घटा घरेलू उत्पादन

2014 में जब मोदी महंगाई की मार को समाप्त करने के वादों के रथ पर सवार होकर सत्ता में आए थे, उस समय भारत में कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन 37.78 मिलियन टन था। लेकिन 2019-20 में यह घटते-घटते 32 मिलियन टन पर आ गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन 15 फीसदी तक घटा है। कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन पिछले 18 सालों में अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया और यह उपलब्धि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हासिल हुई। 

इंपोर्ट पर भी निर्भरता भी मोदी राज में ही बढ़ी 

तेल के बढ़ते दामों को लेकर सबसे बड़ा कारण इंपोर्ट पर बढ़ती निर्भरता को गिनाया जाता है। तेल की इंपोर्ट पर निर्भरता भी मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान ही बढ़ी है। मोदी के सत्ता में आने से पहले देश में कच्चे तेल की जरूरत का 83 फीसदी हिस्सा इंपोर्ट यानी दूसरे देशों से खरीदकर पूरा होता था। लेकिन मोदी राज में यह निर्भरता बढ़कर 88 फीसदी पर पहुंच गई। मोदी सरकार ने लक्ष्य तो इंपोर्ट पर निर्भरता को घटाकर 73 फीसदी तक लाने का घोषित किया था, लेकिन हकीकत में जो हुआ वो वादे के ठीक उलटा है।

लगता है प्रधानमंत्री ने तेल के बढ़ते दामों के लिए पिछली सरकारों को दोषी ठहराने वाली बात कहते समय या तो तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया या उन्हें सहयोगियों ने गलत तथ्य बता दिए। वैसे आयात पर निर्भरता के अलावा पेट्रोल डीज़ल की महंगाई का एक और पहलू भी है। और वो है जनता से वसूली जाने वाली कीमत में टैक्स का लगातार बढ़ता हिस्सा। यह भी मोदी राज की ही देन है। मनमोहन सिंह के जमाने में पेट्रोल पर केंद्र सरकार की एक्साइज़ ड्यूटी दस रूपये के आसपा थी जो अब बढ़कर 33 रुपये के करीब पहुंच गई है। तमाम वस्तुओं की कीमतों पर गहरा असर डालने वाले डीज़ल के मामले में तो स्थिति और भी खराब है। मनमोहन सिंह के राज में केंद्र सरकार एक लीटर डीज़ल पर सिर्फ साढ़े तीन रुपये के करीब टैक्स वसूलती थी। जबकि मोदीराज में यह बोझ बढ़ाकर करीब 32 रुपये कर दिया गया है।