एमपी के 22 बागी विधायकों की अयोग्यता का केस बंद, सुनवाई में देरी के कारण केस का औचित्य खत्म होने पर भड़के कपिल सिब्बल

मध्य प्रदेश में उपचुनाव हो जाने की वजह से केस का औचित्य खत्म हो गया, सुप्रीम कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में देर के लिए हम नहीं तारीख बढ़वाने वाले वकील जिम्मेदार, भविष्य में तारीख आगे बढ़ाते समय ध्यान रखने का भरोसा भी दिलाया

Updated: Nov 05, 2020, 01:40 AM IST

Photo Courtesy: The Economic Times
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के 22 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने की याचिका पर सुनवाई बंद कर दी है। कोर्ट ने इस केस को बंद करते हुए कहा कि यह मामला अब निष्प्रभावी हो गया है, क्योंकि 10 नवंबर को उपचुनाव के नतीजे आ जाएंगे। लिहाजा अब इस पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं रह गया है। कोर्ट के इस फैसले पर दिग्गज वकील व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने नाराजगी जताई है।

याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा, 'मध्य प्रदेश के विधायकों की अयोग्यता का मामला निष्प्रभावी होने के बाद भले ही याचिका पर सुनवाई बंद कर दी गई हो लेकिन कोर्ट में यह काफी समय तक लंबित रहा है।' कांग्रेस नेता ने अपील की है कि ऐसे मामलों की सुनवाई जल्दी होनी चाहिए और बार-बार सुनवाई नहीं टाली जानी चाहिए। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि अन्य राज्यों जैसे तमिलनाडु, गोवा, कर्नाटक आदि में भी इस तरह के मामले लंबे समय से लंबित हैं, जिससे उनका भी यही हश्र हो सकता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु का केस तो लगभग साढ़े तीन साल से लटका हुआ है।

कपिल सिब्बल की नाराजगी पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा कि इसमें कोर्ट की कोई गलती नहीं है। बोबड़े ने कहा, 'सुनवाई को आगे बढ़ाने की अपील दोनों पक्षों की ओर से ही की जाती है। ऐसे में हम सुनवाई को टालने से इनकार नहीं कर सकते हैं। इसमें अदालत की गलती नहीं है। वकील ही सुनवाई को आगे बढ़ाने की मांग करते हैं।' हालांक इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि भविष्य में अदालत इस तरह के मामलों में तारीख आगे बढ़ाए जाने के अनुरोध पर विचार करते समय इस बात का ध्यान रखेगी। 

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क्या है पूरा मामला

बता दें कि मार्च 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों को भाजपा की मिलीभगत से बेंगलुरु ले जाकर रखा गया था। 10 मार्च को इन विधायकों के त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष के सामने पेश किए गए थे। 13 मार्च को कांग्रेस ने इन विधायकों को अयोग्य करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष याचिका पेश की गई थी। बाद में विधायकों के त्यागपत्र तो मंजूर कर लिए गए लेकिन उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए दायर याचिका पर विचार नहीं किया गया, जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन माह का समय तय किया है।

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार न करने के मामले में मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सहित अन्य को नोटिस जारी करके 21 सितंबर तक जवाब देने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान विधानसभा सचिव ने तीन सप्ताह का समय मांगा। इस पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि तीन हफ्ते का समय क्यों चाहिए? बाद में कोर्ट ने एक हफ्ते का समय दिया था। हालांकि इसी बीच चुनाव आ गए। 

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बता दें कि याचिकाकर्ता विनय सक्सेना ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया था कि कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने वाले विधायकों को नियमानुसार मंत्री नहीं बनाया जा सकता, लेकिन अयोग्यता मामले का निराकरण किए बिना ऐसा कर दिया गया है, जो कि न्यायालय में चुनौती के योग्य है। मणिपुर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि विधानसभा अध्यक्ष को अयोग्यता की कार्रवाई अधिकतम तीन माह में पूरी कर लेनी चाहिए। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में इस आदेश की अनदेखी की गई।