एटॉर्नी जनरल ने माना, सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

केके वेणुगोपाल ने कहा, सोशल मीडिया पर अदालत के फैसलों की आलोचना होना स्वाभाविक, हर आलोचना को अवमानना नहीं माना जा सकता

Updated: Dec 08, 2020, 01:21 AM IST

Photo Courtesy : India Legal
Photo Courtesy : India Legal

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के सर्वोच्च कानूनी सलाहकार और अधिकारी एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने माना है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मीडिया पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा है कि सोशल मीडिया पर होने वाली खुली बहसों पर अंकुश लगाना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। वेणुगोपाल ने मीडिया के एक प्रमुख संस्थान से बातचीत के दौरान यह बात कही। एटॉर्नी जनरल ने कहा कि इससे केवल मुकदमेबाज़ी बढ़ेगी। हालांकि वेणुगोपाल ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट बहुत कम मामलों में ही अवमानना की पहल करता है।

यह भी पढ़ें : प्रशांत भूषण भरेंगे 1 रुपये का जुर्माना, फ़ैसले के खिलाफ जारी रखेंगे लड़ाई 

हद पार होने पर ही कार्रवाई करता है कोर्ट : वेणुगोपाल 

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर ट्विटर सहित सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर होने वाली आलोचनाओं के बारे में  वेणुगोपाल ने कहा कि, 'स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सोशल मीडिया पर खुली चर्चा पर रोक नहीं लगानी चाहिए। आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करता है जब तक सीमा रेखा पार नहीं होती। उन्होंने आगे कहा, 'न्यायपालिका और सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया और मीडिया में आलोचना होती रहती है। हमें खुले लोकतंत्र और खुली चर्चा की जरूरत है। सोशल मीडिया या बोलने की आजादी पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए। स्वस्थ लोकतंत्र में सोशल मीडिया की बहस पर सरकार को अंकुश नहीं लगाना चाहिए।'  

यह भी पढ़ें : Prashant Bhushan: जुर्माना भरने का मतलब यह नहीं कि कोर्ट के फैसले को स्वीकार कर लिया

वेणुगोपाल ने कहा कि अगर आलोचनाओं से यह पता चलता है कि अदालत से कुछ छूट गया है तो वाकई अदालत को इससे ख़ुशी होगी। बता दें कि कुछ समय पहले सीनियर वकील प्रशांत भूषण पर मुख्य न्यायाधीश की एक तस्वीर को ट्वीट करने के मामले में अवमानना का मामला चलाया गया था। कोर्ट ने उस मामले में प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया था, लेकिन सज़ा के तौर पर उनसे एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना वसूला गया था।