असहमति को दबाने के लिए राजद्रोह और यूएपीए कानूनों का दुरुपयोग, SC के 4 पूर्व जजों ने बताया रद्द करने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व 4 जजों ने स्वीकारा है कि सरकार से सवाल पूछने वाले लोगों के आवाज को दबाने के लिए यूएपीए और राजद्रोह कानून का दुरुपयोग हो रहा है

Updated: Jul 25, 2021, 04:34 AM IST

Photo Courtesy: ABP
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चार पूर्व जजों ने राजद्रोह कानून और यूएपीए को रद्द करने की वकालत की है। न्यायाधीशों ने कहा है कि असहमति और सरकार से सवाल पूछने वाली आवाजों को दबाने के लिए आमतौर पर इन कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। पूर्व न्यायमूर्ति आफताब आलम का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संवैधानिक स्वतंत्रता, हमें इन दोनों मोर्चों पर यूएपीए ने नाकाम कर दिया है।

कैंपन फॉर ज्यूडिशल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफोर्म्स (CJAR) और ह्ममून राइट्स डिफेंडर्स अलर्ट (HRDA) द्वारा शनिवार को आयोजित एक वेबिनार के दौरान पूर्व जजों ने ये बातें कही है। इस परिचर्चा का विषय 'लोकतंत्र, असहमति और कठोर कानून- क्या यूएपीए और राजद्रोह कानून को कानून की किताबों में जगह देनी चाहिए?' था। वेबिनार में पूर्व न्यायाधीश आफताब आलम, दीपक गुप्ता, मदन बी लोकुर और गोपाल गौड़ा शामिल थे।

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इस दौरान जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि इन मामलों में फंसाए गए और बाद में बरी होने वालों के लिए मुआवजे की व्यवस्था होनी चाहिए। जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि लोकतंत्र में इन कठोर कानूनों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। जस्टिस गोपाल गौड़ा के मुताबिक ये कानून अब असहमति के खिलाफ हथियार बन गए हैं और इन्हें रद्द करने की आवश्यकता है। 

जस्टिस आलम ने एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि साल 2019 में न्यायालयों में यूएपीए के तहत 2,361 मामले लंबित थे। इनमें से 113 मामलों का निस्तारण हुआ। हैरानी की बात ये है कि महज 33 मामलों में दोषसिद्धि हुई जबकि 64 मामलों में आरोपी बरी हो गए और 16 में आरोप मुक्त हो गए। उन्होंने बताया कि यदि दर्ज मामलों या गिरफ्तार लोगों की संख्या से तुलना की जाए तो दोषसिद्धि की दर घटकर दो प्रतिशत रह जाती है और लंबित मामलों की दर बढ़कर 98 प्रतिशत हो जाती है।

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यूएपीए के आरोपी 84 वर्षीय स्टेन स्वामी की मौत और मणिपुर में गाय का गोबर कोरोना का इलाज नहीं है कहने पर, NSA के तहत एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए जस्टिस गुप्ता ने सवाल किया कि क्या 'भारत एक पुलिस राज्य बन गया है?' परिचर्चा के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि, 'यूएपीए और राजद्रोह कानून का इस्तेमाल असहमति को दबाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए किया जा रहा है। अब यह विचार करने का समय आ गया है कि क्या ये कानून संविधान के अनुरूप हैं?'