अनुच्छेद-370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला परेशान करने वाला, जस्टिस नरीमन ने उठाए सवाल

जस्टिस नरीमन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश में इसलिए विभाजित किया गया ताकि अनुच्छेद-356 के प्रवधानों से बचा जा सके।

Updated: Dec 16, 2023, 12:08 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के शीर्ष अदालत के हालिया फैसले पर तीखा हमला बोला। जस्टिस नरीमन ने कहा कि इस फैसले का संघवाद पर असर पड़ा है और यह परेशान करने वाला निर्णय है। 

मुंबई में 'भारत का संविधान नियंत्रण एवं संतुलन' विषय पर व्याख्यान देते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश में इसलिए विभाजित किया गया ताकि अनुच्छेद-356 के प्रविधानों से बचा जा सके। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को अनुच्छेद 356 को दरकिनार करने की अनुमति दी है, जिसके अनुसार किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन केवल एक साल के लिए संभव है।

इस अनुच्छेद में प्रविधान है कि राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकते बशर्ते देश में राष्ट्रीय आपातकाल हो या चुनाव आयोग ने कह दिया हो कि चुनाव कराया जाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य में पहले से राष्ट्रपति शासन था और केंद्र सरकार इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए बिना वहां अपना शासन जारी नहीं रख सकती थी। जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को भी इस मामले में फैसला सुनाने में चार वर्ष लग गए। 

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'हम फैसला नहीं करेंगे' का मतलब है, वास्तव में, आपने फैसला कर लिया है। आपने इस असंवैधानिक अधिनियम को अनिश्चित काल के लिए आगे बढ़ने की अनुमति दी है और आपने अनुच्छेद 356 (5) को नजरअंदाज कर दिया है। ये सभी बहुत हैं परेशान करने वाली बातें हैं।

इस दौरान उन्होंने गुजरात दंगों से संबंधित बीबीसी की डाक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसके बाद टैक्स छापों के जरिये बीबीसी को परेशान किया गया। जस्टिस नरीमन ने कहा कि जब भी मीडिया पर कोई हमला हो तो अदालतों को इसकी पहचान के लिए सतर्क रहना चाहिए और यदि ऐसे छापे डाले जाते हैं तो उन्हें गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए। क्योंकि अगर वाचडाग को ही मार दिया जाएगा तो कुछ भी बाकी नहीं बचेगा।