क्या किसान नेताओं और विपक्ष के आरोपों की पुष्टि नहीं करते दीप सिद्धू के ताज़ा बयान

लालक़िले में झंडा फहराने वाले दीप सिद्धू का दावा, उसे पुलिस ने नहीं रोका, न ही उसके साथ मौजूद लोगों पर लाठियाँ चलाईं, ये भी कहा कि पुलिस के बताए रूट पर परेड निकालने की किसान नेताओं की ज़िद ग़लत थी

Updated: Jan 28, 2021, 10:22 AM IST

Photo Courtesy : IndiaToday
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नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा भड़काने और लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने के आरोपी दीप सिद्धू ने फेसबुक लाइव के जरिए किसान नेताओं को धमकी दी है। खुद को गद्दार कहे जाने से भड़के सिद्धू ने कहा कि अगर उसने अपना मुंह खोला तो किसान नेताओं को दिल्ली से बाहर भागने का रास्‍ता नहीं मिलेगा। आरोपी सिद्धू का यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है।

ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर खालसा पंथ का झंडा लगाने के लिए लोगों को भड़काने के दोषी ठहराए जा रहे पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू ने बुधवार रात वीडियो जारी कर खुद को बेगुनाह बताया है। सिद्धू ने अपने वीडियो में कहा 'तुमने मुझे गद्दार का सर्टिफिकेट दिया है, अगर मैंने तुम्हारी परतें खोलनी शुरू कर दीं तो तुम्हें दिल्ली से भागने का रास्ता नहीं मिलेगा। आज मुझे इसलिए लाइव आना पड़ा, क्योंकि मेरे खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। बहुत कुछ झूठ फैलाया जा रहा है। मैं इतने दिनों से यह सब पी रहा था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि हमारे साझा संघर्ष को कोई नुकसान पहुंचे, लेकिन आप जिस पड़ाव पर आ गए हैं वहां कुछ बातें करनी बहुत जरूरी हो गई हैं।' 

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सिद्धू ने दावा किया कि 25 तारीख की रात को नौजवानों ने मंच पर रोष जताया था, क्योंकि उन्हें पंजाब से दिल्ली में परेड करने के लिए बुलाया गया था। उन्होंने कहा, 'रोष जता रहे नौजवानों ने कहा कि जब हम दिल्ली आ गए तो अब हमें सरकार की ओर से तय किए गए रूट पर जाना मंज़ूर नहीं है। उस दौरान मंच पर हालात ऐसे बन गए थे कि अगुआई कर रहे किसान नेता वहां से किनारा कर गए। फिर मुझे निहंग जत्थों ने हालात खराब होने की बात कहकर बुलाया। मैंने वहां मंच पर किसान नेताओं का समर्थन ही किया। मैंने भीड़ को समझाया कि किसान नेता बुजुर्ग हैं और बहुत परेशान हैं। इसलिए हम नौजवानों को समझना पड़ेगा।'

सिद्धू ने अपने वीडियो में यह भी कहा कि उन्होंने किसान नेताओं से भी कहा था कि वे लोगों की भावनाओं के हिसाब से  सामूहिक फैसला करें। लेकिन सिद्धू के मुताबिक 'इनसब के बावजूद उन्होंने अगले दिन तय रूट पर ही मार्च निकाला, लेकिन उनके साथ 3000 लोग भी नहीं गए। सिंघु-टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर से लोग खुद ही गलत रूट पर निकल गए और लाल किले की और चल पड़े, जहां उनकी अगुआई करने वाला कोई नहीं था। मैं जब  लाल किले पहुंचा तब तक गेट टूट चुका था। उसमें हजारों की भीड़ खड़ी हुई थी। जिस रोड से पहुंचा उस पर सैकड़ों ट्रैक्टर पहले से खड़े थे। मैं पैदल ही किले के अंदर पहुंचा था। वहां देखा तो कोई किसान नेता नहीं था। कोई भी वह व्यक्ति नहीं था जो पहले बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था। सोशल मीडिया पर लाइव आकर बड़े-बड़े ऐलान किए थे कि हम दिल्ली की गर्दन पर घुटना रख देंगे, लेकिन वहां पर कोई नहीं था।'

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सिद्धू कहते हैं कि, 'इसी बीच कुछ नौजवान मुझे पकड़कर ले गए जहां दो झंडे पड़े थे एक किसानी झंडा और दूसरा निशान साहिब। हमने सरकार के सामने रोष जताने के लिए दोनों झंडे वहां लगा दिए। हमने तिरंगा नहीं हटाया था। हमें कोई डर नहीं है, क्योंकि हमने कुछ गलत नहीं किया है।' पंजाबी सिंगर ने कहा कि रैली में प्रदर्शनकारियों के जत्थे ने किसी सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। उन्होंने कोई हिंसा नहीं की  और पुलिस ने भी उनके लोगों पर लाठीचार्ज नहीं किया था। दीप सिद्धू ने बीजेपी और आरएसएस से किसी तरह का संबंध होने के आरोप को भी गलत बताया है।

दीप सिद्धू पर क्या हैं आरोप?

दरअसल किसान संगठनों ने दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा के लिए दीप सिद्धू और गैंगस्टर से समाज सेवी बने लक्खा सिधाना पर आरोप लगाया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसान संगठनों का लाल किले पर जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। दीप सिद्धू ने किसानों को भड़काया और आउटर रिंग रोड से लाल किले तक ले गया। इस मामले में दर्ज FIR में सिद्धू के अलावा और 36 किसान नेताओं के नाम भी दर्ज हैं। विपक्ष ने भी आरोप लगाया है कि सिद्धू बीजेपी से जुड़ा है और उसे मोदी सरकार का संरक्षण प्राप्त है। अपने इस आरोप के समर्थन में विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी सांसद सन्नी देओल और हेमा मालिनी के साथ दीप सिद्धू की तस्वीरों को सबूत की तरह पेश कर रहा है।   

दीप सिद्धू के बयान से क्या साबित होता है? 

दीप सिद्धू ने वीडियो भले ही अपनी सफाई में जारी किया हो, लेकिन दरअसल उसने जो कुछ कहा है, उससे किसान नेताओं के लगाए आरोपों को ही मज़बूती मिलती है। मिसाल के तौर पर दीप सिद्धू ने माना है कि उसने ट्रैक्टर परेड के लिए सरकार द्वारा प्रस्तावित रूट को मानने के किसान नेताओं के फैसले का विरोध किया था। उसने यह भी माना है कि 25 जनवरी को उसने मंच से युवाओं को संबोधित किया था और किसान नेताओं से भी कहा था कि वे सरकारी रूट मानने की बजाय युवा किसानों की राय मानकर फैसला करें, जो सिद्धू के हिसाब से सरकारी रूट पर जाने के खिलाफ थे। 

सिद्धू ने यह भी कहा है कि परेड शुरू होने पर किसान नेताओं ने उसकी बात नहीं मानी और पुलिस द्वारा दिए गए रूट पर ही चल पड़े, जहां उनके साथ मुश्किल से तीन हज़ार लोग ही गए। उसके बयान से यह भी साफ होता है कि उसने लालकिले पर जाकर धार्मिक झंडा फहराया। साथ ही उसने यह दावा भी किया है कि पुलिस ने उसे और उसके साथ मौजूद लोगों को न तो रोका और न ही उन पर लाठियां बरसाईं। उसके इस दावे से सवाल उठता है कि क्या दीप सिद्धू के प्रति पुलिस प्रशासन की नरमी या उसे सरकारी संरक्षण मिलने के विपक्ष और किसान नेताओं के आरोप क्या वाकई सही हैं?